Thursday, November 16, 2023

 

 

वर्ष 1, अंक 5,  नवम्बर 2023

सहयोग राशि रु. 10/-

सुर साधना

समाज में और प्रकृति के साथ सुर-ताल की साधना

ज्ञान मार्ग

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अनियमित पत्रक    .   वाराणसी ज्ञान पंचायत की पहल  .  सीमित वितरण के लिए

साईं  वही   ज्ञानी   है ,   जो  जाणे   पर   पीड़

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सम्पादकीय : भाईचारे की ज्ञान परम्परा

पिछले कुछ महीनों से वाराणसी ज्ञान पंचायत की पहल पर नगर के विविध इलाकों में लोकनीति संवाद चल रहा था. वाराणसी नगर निगम के चुनावों के सन्दर्भ में चलाये गए इस संवाद का उद्देश्य इस नगर की विविध ज्ञान परम्पराओं के बीच सक्रिय ज्ञान-संवाद स्थापित कर नगर-व्यवस्थाओं में विविध ज्ञान और ज्ञानधारियों की भागीदारी के रास्ते खोजना था. इन वार्ताओं में सामान्य नागरिकों की भागीदारी ने ऐसे संवाद की सार्थकता को सामने लाया है. वाराणसी नगर की ज्ञान-परंपरा और महिमा के अनुकूल अब इस प्रयास को जारी रखने और विविध विषयों पर ज्ञान पंचायतों के आयोजनों की अगली कड़ियाँ गढ़ने का सोचा गया है. 

हम नगर निवासी जानते हैं कि ज्ञान की इस नगरी के आधार स्तंभ शिव-अन्नपूर्णाजी हैं. इनके ज्ञान-सन्देश को हम कितना सुनते और गुनते हैं? शिवजी और अन्नपूर्णाजी के परिवार, गण और विविध समाजों  से सजे  बृहत् समाज के ढाँचे से एक महत्वपूर्ण सन्देश का घोष हो रहा है. वह यह कि सभी समाजों की स्वायत्त, बराबरी और भाईचारे की भागीदारी ही न्याय की बुनियाद है और सबको भोजन की व्यवस्था राजनीति और मुनाफे (बाज़ार) से स्वतंत्र होनी चाहिए. दुनिया में नैतिक सत्ता की स्थापना का यही रास्ता है. हर वर्ष आयोजित शिवजी की बारात से यह सन्देश हम क्यों नहीं पढ़ पाते ? क्यों उसे हम केवल धार्मिक उत्सव बना देते हैं?

महात्मा बुद्ध ने ज्ञान का सन्देश वाराणसी से ही दिया. उनका परिवर्तन का ज्ञान-दर्शन सतत् नवीनता और बदलाव की प्रेरणा का स्रोत है और यह बदलाव न्याय की दिशा में बढ़ने का बना रहे, यही महापुरुषों का प्रयास रहा है. आज शिव-अन्नपूर्णा और बुद्ध के दर्शन को समकालीन बनाना धार्मिक नहीं ज्ञान-कर्म कहलायेगा.

विद्या की इस नगरी  में चार-पांच विश्वविद्यालय हैं, विविध धर्म और सम्प्रदायों के आस्था-दर्शन-अध्ययन की संस्थाएं हैं. साथ ही यह साहित्य, संगीत, नाट्य, शिल्प, विविध कलाओं की उर्वर और राजनीतिक व सामाजिक आन्दोलनों की चेतना स्थली रही है. इस नगरी का मूल स्वभाव विविध ज्ञान दर्शनों की स्वायत्तता और इनके बीच भाईचारे और बराबरी के रिश्तों का सृजन करना है. ज्ञान पंचायत यही उद्देश्य रखती हैं.

सामान्यत: अब संगठित-धर्म, विश्वविद्यालय और आधुनिक उद्यम (कंप्यूटर) इनको ज्ञान के स्थान मान लिया गया  है और इनमें कार्यरत लोगों को ज्ञानी. लेकिन खेत, छोटे कारखाने, दुकान, घर और घरेलू कार्यों को ज्ञान का स्थान मानने से इनकार किया जाता है. नतीजा  किसान, कारीगर, मजदूर और घरों में रहनेवाली स्त्रियों को ज्ञानी नहीं माना जाता. इन समाजों (जो बहुसंख्य भी हैं) के ज्ञान और राय को देश के विविध कार्यों और निर्णयों में भागीदारी का कोई भी स्थान नहीं है.

वाराणसी ज्ञान पंचायत वाराणसी के मूल स्वभाव की परम्परा के संवर्धन में इन समाजों  के ज्ञान, यानि लोकविद्या की स्वायत्त, बराबरी और भाईचारे की भागीदारी का आग्रह प्रस्तुत करती है.


समाज में जन्मा और विकसित होता ज्ञान, सत्य और न्याय के नजदीक होता है. ज्ञान को धार्मिक मठों, विश्वविद्यालय और कालेजों की दीवारों, पोथियों और लाइब्रेरियों, कम्प्यूटर और इन्टरनेट की कैद से मुक्त कर समाज के बीच पनपने और बढ़ने दें, तो मनुष्य, समाज और देश के लिए सत्य के पथ खुलेंगे.

वार्ड ज्ञान पंचायत क्या है?

वाराणसी ज्ञान पंचायत द्वारा आयोजित लोकनीति संवाद की कड़ियों से एक महत्वपूर्ण राय निकल कर आई कि नगर के विविध वार्डों में उनकी अपनी ज्ञान पंचायत लगनी चाहिए. इस दृष्टि से समूह ने सोचना शुरू किया और वार्ड ज्ञान पंचायत के प्रारंभिक चरणों को रेखांकित करना शुरू किया. 

मनुष्य की शाश्वत शक्ति का एक स्रोत उसके ज्ञान में है. ज्ञान हमारे अस्तित्व, स्वाभिमान, स्वायत्तता और रचनात्मकता का एक ऐसा प्रमुख आधार है, जो जन्म से हर स्त्री-पुरुष को प्राप्त है और जिसे वह अपने जीवन भर निरंतर  निखारता और नवीन करता है. मनुष्य किसी भी जाति या धरम का हो, अमीर हो या गरीब, स्त्री हो या पुरुष, पढ़ा-लिखा हो या नहीं, राजनीतिक हो या अराजनीतिक; सभी ज्ञानी हैं. इस शक्ति स्रोत को जीवंत बनाये रखना ही वार्ड ज्ञान पंचायत का प्रयास है.

वार्ड ज्ञान पंचायत वार्ड के सभी निवासियों के ज्ञान की भागीदारी का स्थान है. वार्ड के निवासियों के तरह-तरह के ज्ञान को सामने लाने का यह सांस्कृतिक मंच है. एक ऐसा मंच जो  विविध प्रकार के  ज्ञान और ज्ञानियों  के बीच संवाद स्थापित करे, उनके संवर्धन और उपयोगिता के रास्ते बनाने के अवसर सुझाये और उसे वार्ड की बेहतरी में कैसे लगाया जा सकता है इसे सार्वजनिक तौर पर उजागर करे. ज्ञान पंचायत एक वार्ड में होने वाली हर गतिविधि और व्यवस्था के ज्ञानगत पक्षों को सामने लाने और जीवन व ज्ञान के संवर्धन की एक गतिशील, अराजनीतिक और लोकस्थ परम्परा का हिस्सा है.

कहावत है ‘जितने मुंड उतनी मति’  यानि मनुष्य समाज में लोगों के बीच अलग-अलग प्रकार का ज्ञान बिखरा है और इनका समुच्चय ही समाज के लिए  सही रास्ता प्रकाशित करता है. पढ़े-लिखे लोगों के लिए स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय जैसे मंच ज्ञान वार्ता के लिए उपलब्ध हैं, संगठित धर्मों के ज्ञान-चर्चा के अपने-अपने स्थान हैं, कंप्यूटर, इन्टरनेट के ज्ञान के अपने अलग स्थान हैं, लेकिन आम लोगों को जीवन और समाज से मिल रहे अपने ज्ञान पर चर्चा के कोई स्थान नहीं हैं. 

हमारी अपील यही है कि वार्ड के विविध लोग आकर इस वार्ड ज्ञान पंचायत में अपने ज्ञान का दावा रखें,  इसमें ज्ञान-दान करें और वार्ड को अपनी ज्ञान-ज्योति से प्रकाशित करें.

 इस अंक में हम वाराणसी के कुछ वार्डों की जानकारी और वहां के ज्ञानी निवासियों के साथ हुई वार्ता को साझा करेंगे. आयें, ज्ञान के बल पर  वार्ड ज्ञान पंचायत को बनाने में सहयोग करें.                                  

-सुर साधना संयोजक समूह

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गाँव, शहर और सभ्यता

-चित्रा सहस्रबुद्धे , संयोजक, लोकविद्या जन आन्दोलन

भारत के गाँव की औसत आबादी शायद पांच हज़ार के आसपास होगी. उत्तर प्रदेश के गाँव अधिक घने हैं लेकिन अन्य अनेक प्रदेशों में विरल आबादी के गाँव हैं.  वाराणसी के अधिकांश  वार्डों की आबादी गांव की औसत आबादी से अधिक है. अक्सर शहर के वार्ड-निवासी गांवों  में रहने वाले लोगों से अधिक समझदार और जागरूक समझे जाते हैं. माना कि पंचायती राज आज विकृत स्थिति में  है, लेकिन पंचायती राज की मूल अवधारणा  यह है कि गाँव-समाज के लोग  मिलकर अपने जीवन और गाँव की व्यवस्थाओं का सृजन और सञ्चालन खुद करने में समर्थ हैं. दार्शनिकों की राय तो यह है कि ’जहाँ गाँव नहीं वहां सभ्यता नहीं. निस्संदेह ग्रामीण समाज ज्ञानी और सभ्य है.

नगर-समाज गांवों पर जिंदा रहता है. आधुनिक शहर तो गांवों को निचोड़कर और सभ्यता को ख़त्म कर बनाए  जा रहे हैं.  पानी, अन्न, बिजली, वित्त, श्रम, उर्वर ज़मीन, शुद्ध वायु आदि लगभग सभी संसाधनों को गांवों और कस्बों से चुराकर शहरों को बसाया जा रहा है. हम कैसे इस अनैतिक जीवन निर्माण को विकास कह सकते हैं ? इंसान और इंसानियत को मारकर, चोरी और डकैती के बल पर सभ्यताएं नहीं खड़ी होतीं.

ऐसा नहीं है कि शहर हमेशा से ऐसे ही रहे हैं और यह भी नहीं कि शहरों की इस पापपूर्ण नियति को अब बदला नहीं जा सकता. शहर में ऐसे लोग और समाज भी बसते हैं, जो इंसानियत और नैतिक जीवन-मूल्यों की फसल पैदा करते रहते हैं. इन्हीं लोगों के ज्ञान और जीवनमूल्यों  के बल पर शहरों को पुनर्संगठित किया जा सकता है. लेकिन इसकी एक अनिवार्य शर्त यह है कि गाँव और शहर के रिश्तों को बराबरी और भाईचारे का बनाने का मार्ग खोजें. शायद ग्राम पंचायतें भी इस क्रिया में अपने नैतिक स्वरुप को फिर से हासिल कर सकेंगी. वाराणसी ज्ञान पंचायत और वार्ड ज्ञान पंचायतें ऐसे मार्गों को अपनी ज्ञान-चर्चाओं में लायें तो शहर निवासी भी सभ्यता गढ़ने में शामिल हो सकेंगे.

मेरा गाँव मेरा देश

भारत आज़ाद गांवों का आज़ाद देश था. मुगलों के समय आज़ाद गांवों का गुलाम देश हो गया. और फिर अंग्रेजों ने गुलाम गांवों का गुलाम देश बनाया. अंग्रेजों के जाने के बाद गुलाम गाँवों का आज़ाद देश हो गया. हमें आज़ाद गांवों का आज़ाद देश बनाना है.

- विनोबा  के कथन पर आधारित

 

 

 


वाराणसी वार्ड-समाज 

वार्ड नंबर 5, सलारपुर का समाज

वार्ड और नगर की व्यवस्था सुंदर कैसे बने ?

-लक्ष्मण प्रसाद, भारतीय किसान यूनियन

देश की सबसे छोटी इकाई ग्राम पंचायत और नगर पालिका/नगर निगम की व्यवस्थायें मानी गई हैं. उद्देश्य यह रहा कि सामान्य व्यक्ति की पहुँच में ये हों. गांव पंचायत की व्यवस्था में ग्राम प्रधान के पास चुने हुए सदस्य होते हैं, जिनसे एक समिति बनती है. किसी भी प्रस्ताव  को  ग्राम प्रधान अपने सदस्यों के बहुमत से पारित करवाता है और उसे क्रियान्वित करवाता है. साथ ही साथ पंचायत की कुछ बातें और कुछ प्रस्ताव गांव की खुली पंचायत (ग्राम सभा) में रखे जाते हैं, जिसमें  गांव के सभी लोग भाग ले सकते हैं. इस पंचायत में किसी भी प्रस्ताव को बहुमत या सर्वसम्मत के आधार पर पारित किया जा सकता है या उसे रद्द किया जा सकता है. आज की ग्राम पंचायतें राजनीतिक दबाव में आ गई हैं वरना वास्तव में यह एक अच्छी व्यवस्था है.

    नगर पंचायत की व्यवस्था में यह खामी है कि पार्षद या सभासद के सहयोग के लिए कोई कमेटी नहीं होती, जहाँ वह अपने वार्ड के मसलों  पर चर्चा, विचार-विमर्श कर सके. वार्ड में एक ऐसी कमेटी होनी चाहिए, जिसमें कई  सदस्य हों. सभासद या पार्षद का इस समिति के प्रति उत्तरदायित्व होगा.

हमारे सलारपुर वार्ड में तीन मोहल्ले हैं- सलारपुर, रसूलगढ़ और खालिसपुर. लगभग पैंतीस हज़ार की आबादी वाले इस वार्ड में किसान, कारीगर और दिहाड़ी पर काम करने वाले मिलाकर लगभग पचहत्तर से अस्सी फीसदी हैं. कई धर्मों और समाजों के लोगों से इस वार्ड का समाज बना है.   

अपने वार्ड सलारपुर में कुछ लोगों से जब इस विषय पर बातचीत हुई तो कई विचार सामने आये. एक तो यह कि नगर निकाय के चुनाव में वार्ड सभासद का नाम वार्ड प्रमुख होना चाहिए और वार्ड में एक समिति का प्रावधान होना चाहिए. जिनकी सहमति और सलाह से वार्ड प्रमुख काम करे. जब गाँव के लोग मिलकर अपने गाँव की व्यवस्था चला सकते हैं तो वार्ड, जिसमें की एक गाँव से कई गुना अधिक लोग रहते हैं, क्यों महज एक व्यक्ति (सभासद/पार्षद) को अपने रोज़मर्रा जीवन के सञ्चालन को सौंप दें ? वार्ड में ही तरह-तरह के कार्य करने वाले ज्ञानी समाज होते हैं, इनसे सलाह और राय लेने की कोई जगह नगर निगम और नगर पालिकाओं की व्यवस्थाओं में नहीं है. वार्ड के लोग मिलकर वार्ड की आवश्यकताओं और समस्याओं पर सोचें और वार्ड की बेहतरी में अपना योगदान दे सकें इस विचार को ही स्थान नहीं है. इसका एक कारण यह भी है कि वार्ड के सामान्य व्यक्ति को ‘कुछ नहीं आता यह मान लिया गया है.

हमारे ही वार्ड के अलग-अलग मोहल्लों में तरह-तरह के ज्ञानी समाज बसे हैं. बुनकर, धोबी, जल और  नदी का ज्ञानी मल्लाह, मिट्टी के समान बनाने वाले प्रजापति, लोहे के समान बनाने वाले विश्वकर्मा, लकड़ी के सामान बनाने वाले कारीगर, पत्थर के  कारीगर, जरदोजी का काम करने वाले, रंगरेज़, चमड़े का काम करने वाले, वाल्मीकि, ठेला पटरी व्यवसायी, नाई, वनवासी और नट, इसतरह और भी अनेक  काम करने वाले समाज हैं. इनके ज्ञान और कार्यों को वार्ड की बेहतरी में लाया जाना चाहिए.

नगर सुन्दर ही नहीं बल्कि न्यायपूर्ण भी कैसे बने? हम इसके लिए वार्ड ज्ञान पंचायत के गठन का प्रस्ताव रखते हैं. ज्ञान पंचायत की अवधारणा किसी कार्य को सही ढंग से करने के लिए उचित ज्ञान की क्षमता का सहयोग हासिल करने से है. यह गैर-दलीय और गैर सरकारी है, जो वार्ड के हर कार्य के ज्ञानगत आधार को सामने रखती है. अगर वाराणसी के ज्ञानियों के बारे में बात की जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि बनारस की पहचान केवल पढ़े-लिखे लोगों की विद्वत्ता से ही नहीं बल्कि उपरोक्त सभी प्रकार के ज्ञानी समाजों से है. न्याय संगत यह होगा कि सभी ज्ञानियों को शामिल कर वार्ड की ज्ञान पंचायत बने. यह ज्ञान पंचायत न केवल वार्ड बल्कि नगर की अवधारणा पर भी अपनी राय को सामने लाये. वार्ड ज्ञान पंचायत वार्ड समिति बनाने के मार्ग खोलेंगी.

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वाराणसी-वार्ड-समाज

वार्ड नंबर 63, जलालीपुरा का समाज

-फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, बुनकर साझा मंच

वाराणसी के जलालीपूरा वार्ड में  तीन मोहल्ले हैं-अमरपुर मढ़ीया, अमरपुर बटलोईया और जलालीपुरा. सरैया का आंशिक हिस्सा भी इसमें शामिल है. वार्ड के पूरब में सरैया मेन रोड, पश्चिम में शैलपुत्री रोड, उत्तर में तेलियाना रेलवे क्रासिंग और दक्षिण में वरुणा नदी है. वार्ड की कुल आबादी लगभग तीस हज़ार है और कुल मतदाता लगभग चौदह हज़ार. इनमें 85 फ़ीसद बुनकर और 14 फ़ीसद छोटे दुकानदार हैं. सरकारी कर्मचारी बहुत ही कम हैं.

वार्ड की स्थिति के बारे में वार्ड ज्ञान पंचायत के विचार से परिचित कुछ लोगों से हमने बात की, जिनमें अख्तर, सेराज अहमद, सफी अहमद महतो, सरदार महमुदुल हसन, जुबैर अहमद जैसे अनुभवी और ज्ञानी लोग शामिल हुए. शहनवाज़ अख्तर कहते हैं कि नगर के अन्य वार्डों की तरह इस वार्ड में समस्यायें बहुत हैं. एक बड़ी समस्या तो ये है की यहां पर कोई भी नगरीय स्वास्थ केंद्र नही है और ना ही कोई खेल का मैदान है. कूड़े को उठाने की कारगर व्यवस्था नहीं है.

हमारे वार्ड में 2200 के लगभग मकान हैं. उनका हाऊस और जलकल, टेक्स के रूप में नगर निगम को सालाना लगभग लाखों रुपयों की आय है, वार्ड के दुकानों का टैक्स अलग से जाता है; और भी कई टेक्स हैं. बदले में हमारे वार्ड में उसका 10 फीसद विकास के नाम पर पैसा आता है, उसमें भी आधा भ्रष्टाचार की भेट चढ़ जाता है. इतने बड़े वार्ड में सालाना इतने कम पैसे से कैसे नागरिकों को सुविधाएँ मिल सकती है?

मेरा मानना है कि वार्ड की व्यवस्थायें अगर स्थानीय लोगों की भागीदारी से निर्मित हों तो अधिक कारगर ढंग से चलाई जा सकती हैं. महात्मा गाँधी ने ग्राम पंचायतों को इसी तरह का बनाने का विचार रखा था. ग्राम पंचायतों की तरह वार्ड पंचायतें क्यों नहीं हो सकती? वार्ड पंचायतों का कभी विचार ही नहीं किया गया है. वार्ड पंचायतों के होने से स्थानीय स्तर पर बहुत सी समस्याओं के हल निकल सकते हैं. स्थानीय संसाधनों और स्थानीय ज्ञान के बल पर बहुत से काम किये जा सकते हैं और इससे रोज़गार तो बढेगा ही वार्ड भी अधिक बेहतर होंगे.

 हमारी समझ से न्यायी व्यवस्था का मतलब है आम आदमी के सबसे नज़दीक की व्यवस्था. स्थानीय लोगों की भागीदारी का मतलब है आम आदमी की समस्याएं और रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़े सवालों के सरलतम हल. स्थानीय व्यवस्था का यह भी मतलब है कि स्थानीय ज्ञान, स्थानीय हित और लोकतांत्रिक फैसला लेने की शक्ति का विकास. वार्ड में जो भी संसाधन हैं, सरकारी और प्राकृतिक, उनके सही और लोकपरक इस्तेमाल पर वार्ड के निवासियों की राय को शामिल करने के कारगर तरीके आज उपलब्ध नहीं हैं. इसके लिए वार्ड के लोगों के ज्ञान और उनकी काबिलियत पर वार्ड-समाज का विचार स्थिर होना चाहिए और इसके लिए वार्ड ज्ञान पंचायत जैसा मंच आवश्यक है.

हमारा वार्ड बुनकर बहुल है, इसलिए यहां स्थानीय बनारसी साड़ी का बाज़ार भी होना चाहिए. ये वार्ड गांव को शहर से भी जोड़ता है और किसान अपनी फसलों को बेचने इसी वार्ड से होकर गुजरते हैं. बुनकरों के साथ ही किसानों को अपने उत्पादन बेचने का बाज़ार भी यहाँ होना चाहिए.


निराश क्यों हों?

-प्रेमलता चकियावी

 

इन दिनों

आडंबर के खेत में

फरेब की फसल लहलहा रही.         अरे नहीं!

हो रही अब पांडुर

शायद सूख जायेगी.

तब तो उसमें

फूल पराग बीज भी होंगे,

यहाँ वहाँ छिटकेंगे,

हवा संग उड़ेंगे?

झूठ फरेब पुनः पुनः उगेगा

दंभ से चूर होकर?                        नहीं नहीं!

फूल पराग बीज नहीं,

बाँझ फसल है वह.

क्या कहा?

फरेब झूठ अब नहीं उगेगा?

जब तक लोभ मोह दंभ रहेगा

उगने से उसे रोकोगे कैसे?             दोस्त सुनो!

 हाथ से हाथ मिलाओ,

उगने न देंगे नफरत फरेब,

सत्य-प्रेम से पूरित भूमि,

 उर्वर आबाद रखेंगे,

न्याय की फसल उगायेंगे.

देखो, बूझो तो सही

हमारी मुट्ठियाँ उर्जस्वित हैं.

वाराणसी ज्ञान पंचायत

वाराणसी ज्ञान पंचायत एक अराजनैतिक, सांस्कृतिक  ज्ञान-वार्ता का मंच है, जो वाराणसी की व्यवस्थाओं को गढ़ने में सभी समाजों के ज्ञान की भागीदारी और सभी के ज्ञान को बराबर की प्रतिष्ठा का आग्रह करती है. 

गाँव-गाँव में और घाट-घाट पर

जंगल बस्ती हर पनघट पर,

मेला हाट और बाट-बाट पर

पग-पग पर हैं विविध ज्ञानधर.

यहीं से अलख जगाना है, कौन है ज्ञानी ?

ज्ञान कहाँ कहाँ ? फैसला यह करवाना है.

 

 



























लोकविद्या जन आन्दोलन एक ज्ञान आन्दोलन है.

लोकस्थ ज्ञान लोककल्याणकारी होता है.




 

वाराणसी ज्ञान पंचायत के लिए लोकविद्या जन आन्दोलन, भारतीय किसान यूनियन, स्वराज अभियान, बुनकर साझा मंच, माँ गंगाजी निषादराज सेवा समिति और कारीगर नजरिया द्वारा संयुक्तरूप से संयोजित. [संपर्क : चित्रा सहस्रबुद्धे (9838944822), लक्ष्मण प्रसाद (9026219913), रामजनम (8765619982), फ़ज़लुर्रहमान अंसारी (7905245553), हरिश्चंद्र बिन्द (9555744251)]

पता : विद्या आश्रम, सा 10/82 अशोक मार्ग, सारनाथ, वाराणसी-221007

 

Thursday, December 15, 2022

समाज के पुनर्निर्माण का कला-मार्ग

दो दिवसीय कला शिविर

समाज के पुनर्निर्माण का कला-मार्ग

शनिवार 17 - रविवार 18 दिसंबर 2022
विद्या आश्रम, सारनाथ

औद्योगिक क्रांति के बाद से दुनिया में साईंस आधारित समाजों ने आकार लेना शुरू किया और आज दुनिया के लगभग सभी देशों में ये समाज फैल चुके हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया और जीवन को देखने, समझने और रचना आदि के क्षेत्रों पर आज साईंस का एकाधिकार हो गया है.  हालांकि साइंस मात्र भौतिक जगत की समझ का दायरा है और भाव जगत को ज्ञान क्षेत्र का अंग मानने से इनकार करता है. साईंस की इस संकुचित क्षमता को नज़रअंदाज़ कर उसे एकमात्र सही, जायज़ और सम्पूर्ण ज्ञान का दर्जा दे दिया गया है. नतीजा यह है कि आज संगठित देशों की व्यवस्थायें बेलगाम होकर मनुष्य और प्रकृति विरोधी बन गई हैं और संवेदनहीन, लालची, हिंसक और विध्वंसक हैं.
इस बेरहम और हिंसक समाज-व्यवस्था को बदलना है तो भौतिक जगत और भाव जगत दोनों को समाहित करनेवाले दृष्टिकोण की ज़रूरत है. हमारा मानना है कि कला दृष्टिकोण एक ऐसा ही मार्ग है. 


समाज के पुनर्निर्माण का कला मार्ग दिल और दिमाग की एकीकृत संयोजित पहल है. एक ऐसी पहल जिसमें तर्क और रचना के ताने-बाने की बुनाई गतिशील और न्याय संगत होने का स्पष्ट आग्रह रखती है. इसमें मनुष्य और प्रकृति के परस्पर सहयोगी और सहजीवन के मूल्य जन्म लेते हैं, खिलते और विकसित होते हैं. जीवन संगठन की व्यवस्थायें ऐसे मूल्यों पर खड़ी की जायें तो ये दुनिया निश्चित ही बेहतर बनेगी. 


विद्या आश्रम ऐसे कला मार्ग को बनाने में अपनी भूमिका देखता है. इस दिशा में बढ़ने के क्रम में विद्या आश्रम पर 17-18 दिसम्बर 2022 को दो दिवसीय एक कार्यक्रम रखा गया है जो नीचे दिया जा रहा है.
आप इस कला शिविर में सादर आमंत्रित हैं, अवश्य आयें.

निवेदक
कला शिविर आयोजन समिति की ओर से
चित्रा सहस्रबुद्धे (9838944822), प्रेमलता सिंह, मुनीज़ा खान, अपर्णा (9479060031) , इंदु पाण्डेय, हरिश्चंद्र बिन्द

कार्यक्रम

पहले दिन : शनिवार, 17 दिसंबर 2022, दोपहर 2.00 बजे से

विषय: कला दृष्टि और न्यायोन्मुख समाज परिवर्तन के विषय पर चर्चा
वक्ता:
1.    नूर फातमा         :    मजरूह सुलतानपुरी की कला दृष्टि
2.    सलीम राजा        :    नाट्य निर्देशन की रचना यात्रा  
3.    रामजी यादव      :    कला, आधुनिक मल्टी मीडिया और परिवर्तन की बिछायत
4.    चित्रा सहस्रबुद्धे   :    समाज निर्माण का वैचारिक आधार   
5.    प्रसन्ना, बंगलुरु    :    समाज के न्यायोन्मुख बदलाव की दृष्टि के निर्माण में कला की भूमिका
 

दूसरे दिन : रविवार, 18 दिसंबर 2022, सुबह 11.00 बजे से

1.    नाट्य शिविर : प्रसन्नाजी के मार्ग दर्शन में भारतीय नाट्य कला के पक्ष  
2.    नाट्य प्रस्तुति : ‘समता नगर चौपट राज’ नाटक की प्रस्तुति और इस पर चर्चा.

Monday, November 21, 2022

लोकनीति संवाद

वाराणसी ज्ञान पंचायत की पहल : लोकनीति-संवाद 

लोक और लोकनीति के समकालीन अर्थ  की खोज में वाराणसी ज्ञान पंचायत की ओर से लोकनीति-संवाद की एक श्रृंखला  चली.  पहला लोकनीति-संवाद 11 अक्तूबर 2022 से चलाया जा रहा है. वाराणसी नगर निगम के चुनाव नवम्बर-दिसंबर में होने जा रहे हैं, इस मौके पर यह संवाद चलाना प्रासंगिक मालूम हुआ. प्रत्येक गुरुवार और रविवार को क्रमश: राजघाट और अस्सीघाट पर लोकविद्या सत्संग के साथ यह संवाद चलाया जाता है. संवाद की अब तक दस कड़ियाँ हो चुकी हैं. हर कड़ी में दो-तीन वक्ता आमंत्रित किये जाते रहे हैं.

लोकनीति : लोकनीति के मायने प्रकृति के साथ तालमेल में जीवन गढ़ने के प्रकारों में हैं. इसी में जीवन और समाज के नैतिक उत्थान और विकास का रास्ता है. लोकनीति में सम्पूर्ण लोक के खुशहाली की नीतियाँ निहित है जबकि राजनीति मात्र कुछ ही लोगों के स्वार्थ की सेवा करती रही है. ऐसे में लोकनीति को मज़बूत करना आवश्यक है. लोकनीति के बल पर ही राजनीति को मर्यादित करने के रास्ते खुलते हैं. सामान्य लोगों के पास ज्ञान होता है और इनके ही जीवन में समकालीन नैतिक मूल्य भी पलते हैं. इन्हीं के बल पर लोकनीति को गढ़ा जा सकता है.

लोकनीति-संवाद का उद्देश्य : समाज में ज्ञान की उन विविध धाराओं को, जो लोकहित में हैं, जीवंत हैं, नैतिक शक्तियों को बल प्रदान करती हैं, उन्हें पहचानना और समाज के बीच लाना इस संवाद का उद्देश्य है. इस दिशा में अभी तक आठ कड़ियों में जिन विषयों पर संवाद हुए हैं, उनमें प्रमुख हैं--- लोकनीति बनाम राजनीति, स्थानीय निकायों की नगर और नागरिकों के प्रति ज़िम्मेदारी, लोकविद्या और लोकनीति के बीच अन्योन्याश्रित रिश्ता, नगर विकास और व्यवस्थाओं में विविध ज्ञान-धाराओं के समावेश का आग्रह, नगर की नैतिक विरासत और दर्शन, गाँव-शहर के बीच सम्बन्ध, नगर का धार्मिक-सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना, जैसे विषयों की वैचारिकी के प्रकाश में नगर का पर्यावरण, गंगाजी और घाटों की स्वछता और रखरखाव, मल्लाहों और नाविकों के विस्थापन का सवाल, नगर में ऑटो चालकों की परेशानियाँ, सीवर और कूड़े का निस्तारण आदि जैसे दैनिक जीवन की महत्वपूर्ण समस्याओं के प्रति सभासद की जिम्मेदारियों पर संवाद को गति मिली.

वक्ता : कारीगर नजरिया की  प्रेमलता सिंह, भारतीय किसान यूनियन के नगर अध्यक्ष कृष्ण कुमार क्रांति, राजघाट के नाविक दुर्गा प्रसाद सहनी, ऑटो चालक यूनियन के अध्यक्ष ज़ुबेर खान, पर्यावरण रखरखाव स्वयंसेवी संगठन के रवि शेखर और एकता शेखर, दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र पुनीत, वार्ड 63 के सभासद उम्मीदवार फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, काशी हिन्दुविश्वविद्यालय के छात्र प्रत्यूष, ‘गाँव के लोग’ पत्रिका के संपादक रामजी सिंह, गाँधी विद्या संस्थान संकाय सदस्य और रजिस्ट्रार डॉ. मुनीज़ा खान, दर्शन अखाड़ा के संयोजक गोरखनाथ, सलारपुर से बौद्ध विचारक महेंद्र प्रताप मौर्य, छित्तनपुरा के बुनकर एहसान अली, अस्सी घाट के निषाद देशराज , माँ गंगाजी निषाद सेवा समिति के हरिश्चंद्र बिन्द, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता अरुण कुमार, चंदवक के विद्या आश्रम के सदस्य विनोद कुमार, भारतीय किसान यूनियन के वाराणसी जिला अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद, नाटीइमली के बुनकर मोहम्मद अहमद, रामनगर कालेज की अध्यापिका डॉ. चटर्जी, डॉ. पारमिता, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह प्रमुख रहे हैं. प्रत्येक संवाद में स्थानीय लोग शामिल होते रहे हैं.  

वाराणसी ज्ञान पंचायत की ओर से चित्रा सहस्रबुद्धे और रामजनम ने सञ्चालन किया और लक्ष्मण प्रसाद, फ़ज़लुर्रहमान और हरिश्चंद्र बिन्द ने संवाद को स्थानीय समाजों के नज़रिये के साथ तराशा और निखारा. लोकनीति संवाद का क्रम आगे भी जारी रहेगा.

इस संवाद के साथ ही सुर साधना पत्रिका के दो अंक भी प्रकाशित हुए. 

चित्रा सहस्रबुद्धे 

विद्या आश्रम  


Saturday, August 6, 2022

रपट: स्वराज ज्ञान पंचायत 2 अगस्त 2022

विद्या आश्रम और वाराणसी ज्ञान पंचायत के संयुक्त प्रयास से 2 अगस्त 2022 को एक स्वराज ज्ञान पंचायत का आयोजन हुआ.  विद्या आश्रम स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित इस ज्ञान पंचायत में किसान यूनियन के नेताओं व कारीगरों के आलावा सामाजिक कार्यकर्त्ता, छात्र और नौजवानों की भागीदारी हुई.

ज्ञान पंचायत शुरू होने के पहले लोकविद्या सत्संगके गायकों ने लोकविद्या के पद गाकर लोकविद्या और किसान तथा कारीगर समाजों  को ज्ञानी समाजों के रूप में प्रतिष्ठित किया. 
स्वराज ज्ञान पंचायत की शुरुआत विद्या आश्रम द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘न्याय, त्याग और भाईचारा: किसान आन्दोलन और भावी समाज दृष्टि’ के विमोचन के साथ हुई. वाराणसी और आस-पास जिलों के किसान यूनियन के नेता और वाराणसी के कार्यकर्त्ता अच्छी संख्या में उपस्थित थे. पुस्तक का विमोचन भारतीय किसान यूनियन के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष श्री राजपाल शर्मा ने किया. 

उन्होंने अपने वक्तव्य में केन्द्र सरकार को घोर किसान विरोधी बताते हुए कहा कि वे किसान आन्दोलन के चलते किसानों के साथ हुए हर समझौते और आश्वासन के खिलाफ जा रहे हैं. एम.एस.पी. की लड़ाई को केन्द्रीय महत्त्व का बनाते हुए संगठन और  संघर्ष पर विशेष जोर दिया. साथ में उपस्थित राष्ट्रीय सचिव श्री सुरेश यादव का भी सहृदय और तर्कपूर्ण भाषण सुनने को मिला.

श्री सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि पुस्तक किसान आन्दोलन का सन्देश बताती है. पुस्तक में जिन लोगों के लेख हैं वे सब पूरी ज़िन्दगी किसान आन्दोलन में रहे हैं और इस आस्था के लोग 
हैं कि किसानों के नेतृत्व में ही एक सभ्य समाज का निर्माण हो सकेगा.उन्होंने पुस्तक के नाम में न्याय, त्याग औरभाईचारा का विशेष महत्त्व रेखांकित किया है और बताया कि इन्हीं विचारों के अंतर्गत किसानों ने भारत की संत परंपरा को जिंदा रखा है. मूल सन्देश यही है कि इन विचारों में एक सभ्य समाज का आधार है, जिसका निर्माण किसान भारत की ज्ञान और तर्क परंपरा के जरिये करेगा, जो उसमें रची-बसी है.

भोजन के पहले के सत्र में चर्चा का विषय रहा ‘हर किसान परिवार की आय सरकारी कर्मचारी जैसी होनी चाहिए’. इसका सैद्धांतिक आधार यह बताया गया कि किसान ज्ञानी है और उसका ज्ञान विश्वविद्यालय की विद्या से कमतर नहीं है. इसलिए उसके ज्ञान से होने वाले कामों में भी वही आय होनी चाहिए जो विश्वविद्यालय की डिग्री से मिलने वाली नौकरियों में होती हैइस सत्र के मुख्य वक्ता रहे -लक्ष्मण प्रसाद, भाकियू अध्यक्ष वाराणसी जिला, राजेश आज़ाद, संयोजक संयुक्त किसान मोर्चा आजमगढ़ (उ.प्र.) और फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, संयोजक बुनकर साझा मंच. लक्ष्मण प्रसाद ने किसान के ज्ञान के विभिन्न आयामों को सामने लाया और बताया कि किसतरह इसके तिरस्कार और शोषण से वर्तमान सामाजिक और आर्थिक व्यवस्थाएं संचालित होती हैं. 

          

राजेश आज़ाद ने विषय को महत्वपूर्ण मुद्दा कहकर इसका पुरजोर समर्थन किया साथ ही किसान समाज के अंतर्गत ही गरीब किसानों और खेतिहर मज़दूरों की परिस्थितयों और शोषण की ओर ध्यान आकर्षित किया, जबकि फ़ज़लुर्रहमान अंसारी ने किसान के ज्ञान की तरह ही कारीगर के ज्ञान की व्याख्या की और हर कारीगर परिवार के लिए भी सरकारी कर्मचारी जैसी आय होने के लिया सुसंगत तर्क प्रस्तुत किये.

दोपहर के सत्र में विषय था – ‘किसान-नौजवान एकता में स्वराज के सूत्र हैं’. सत्र का सञ्चालन पारमिता ने किया और स्वराज अभियान के रामजनम ने विषय प्रवेश किया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसानों की आय और नौजवानों के लिए रोज़गार दोनों ही सवालों का हल चल रही व्यवस्था में नहीं हो सकेगा और यह कि एक नए राजनैतिक और आर्थिक ढांचे का विचार बनाना पड़ेगा जिसमें इन दोनों सवालों का हल हो. यह राजनैतिक-आर्थिक ढांचा स्वराज के नाम से जाना जा सकता है. 
 
वर्तमान के किसान आन्दोलन और नौजवानों के रोज़गार आन्दोलन की आपसी दोस्ती को केवल फौरी न मान कर इस नज़र से देखा जाए तो स्वराज के सूत्र खोजने में मदद हो सकती है. इस सत्र के प्रमुख वक्ता रहे- धनञ्जय त्रिपाठी, बीएचयू, संयोजक, ज्वाइंट एक्शन कमिटी, हरिश्चंद्र बिन्द,राष्ट्रीय महासचिव, माँ गंगा निषाद सेवासमिति, और इप्शिता, भगत सिंह छात्र मोर्चा, बीएचयू. गोष्ठी का समापन वरिष्ठ समाजवादी चिन्तक और विद्या आश्रम के मित्र श्री विजयनारायण ने किया. न्होंने कहा कि वार्ता बहुत अच्छी हुई  है, कुछ स्पष्ट निर्णय कीजिये और आगे बढ़ें.
 

                

ज्ञान पंचायत का अंत इस उद्घोष के साथ हुआ कि

 "राजपाल तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं."


आशा है कि विश्वविद्यालय के छात्र, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं की यह संयुक्त उपस्थिति और चर्चा, देश और समाज के भविष्य पर विमर्श के नए द्वार खोल सकती है. विद्या आश्रम स्वराज ज्ञान पंचायत की अगली कड़ियाँ बनाने के प्रयास में रहेगा.


---विद्या आश्रम