Friday, April 15, 2011

विस्थापन रोको



विस्थापन रोको सम्मलेन, वाराणसी
१० अप्रैल २०११

गंगा और वरुणा के संगम पर १० अप्रैल २०११ को दिन भर चले इस विस्थापन रोको सम्मलेन में मुख्य रूप से यह बात हुई कि विस्थापन विरोधी संघर्ष पूरे लोकविद्याधर समाज की एकता के स्थान हैं। आज सरकार बड़े व्यवस्थित ढंग से लोकविद्याधर समाज को विस्थापित करके ज़मीनें, खनिज, बाज़ार और धंधे पूंजीपतियों को सौप रही है। किसान, कारीगर, आदिवासी और ठेला-गुमटी वाले जब चाहे तब उजाड़ दिए जाते हैं। वे अपनी जमीनों, संसाधनों, धंधों और घरों तक से बड़े पैमाने पर बेदखल किये जा रहे हैं। गाँव के गाँव उजाड़ दिए जाते हैं और बस्तियों के नामों-निशान मिट जाते हैं। ये सब वही लोग हैं जो लोकविद्या के बल पर जीवन यापन करते हैं। लगभग १०० की भागीदारी के इस सम्मलेन में सभी वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि विस्थापित समाजों का पुनर्वास एक धोखा है। मुआवजे, फिर से बसाने और नौकरी देने की राजनीति में कोई समाधान नहीं है।

विस्थापन मनुष्य को उसकी विद्या, लोकविद्या से अलग कर देता है और इसी में उसकी ज़िन्दगी बर्बाद होने का पैगाम होता है। लोकविद्याधर समाज का लोकविद्या से अलगाव , यही गरीबी और मजबूरी का सबसे बड़ा कारण है। लोकविद्या के आधार पर जीवनयापन करना मनुष्य का मौलिक अधिकार है। वास्तव में यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। अपनी विद्या के बल पर हर कोई अपनी ज़िन्दगी चला सके इसको संवैधानिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। ये बातें विस्थापन से गहरे से जुडी हुई हैं, इसलिए विस्थापन के सक्षम विरोध के लिए पूरे लोकविद्याधर समाज को एकजुट होना होगा।

सम्मलेन बुलाया ही यह कह कर गया था कि लोकविद्याधर समाज की व्यापक एकता के रास्तों पर बातचीत होगी। सभी ने इस पर राय दी और अंत में एक लोकविद्या मंच का गठन किया गया जिसमें विभिन्न भागीदार संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए। तय हुआ कि हर महीने एक बार लोकविद्या मंच कि बैठक होगी।

सम्मलेन में विद्या आश्रम, डिबेट सोसायटी, गांधियन इंस्टिट्यूट आफ स्टडीस, भारतीय किसान यूनियन वाराणसी व चंदौली, अखिल भारतीय किसान महासभा चंदौली , किसान संघर्ष समिति मोहन सराय, किसान संघर्ष समिति करसडा, बुनकर वेलफेयर संघर्ष समिति वाराणसी, नाई समाज दशाश्वमेध घाट, मत्स्यजीवी सहकारी समिति सराय मोहाना, पटरी व्यवसायी संगठन इंगलिशिया लाइन और लोकविद्या नौजवान सभा शामिल रहे। इनके अलावा कई सामाजिक कार्यकर्ता, महिलाएं, कारीगर और किसान व्यक्तिगत रूप में भी शामिल हुए।

इस मौके पर विद्या आश्रम ने विस्थापन रोको के नाम से एक पुस्तिका का प्रकाशन किया।

विद्या आश्रम

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