Tuesday, January 29, 2013

लोकविद्या ताना-बाना और आदिवासी-किसान एकता

इंदौर क्षेत्र में लोकविद्या जन आन्दोलन 
19-20 जनवरी 2013


यह इंदौर क्षेत्र के दो दिन के कार्यक्रम का एकदम संक्षिप्त वर्णन है। पहले दिन खुर्दी गाँव में लोकविद्या ताना-बाना के अंतर्गत लोक-कला प्रस्तुति का कार्यक्रम हुआ और दूसरे दिन मानपुर में लोकविद्या जन आन्दोलन के कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय किसान संघर्षों के प्रतिनिधियों के बीच आदिवासी-किसान एकता पर बैठक हुई। 

मालवा और निमाड़ के गांवों में सभी ओर कबीर को गाने वाले मिलते हैं। गाँव-गाँव में ऐसी गायकी की मंडलियाँ हैं। कुमार गन्धर्व की कबीर गायकी का आधार इसी क्षेत्र की कबीर गायकी में रहा है। इसी क्षेत्र में विस्थापन के खिलाफ संघर्ष कर रहे किसानों के बीच लोकविद्या जन आन्दोलन भी पिछले तीन साल से सक्रिय है। क्षेत्रीय मिजाज़ और जज़्बे की खोज में आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का कबीर गाने वालों से सहज ही परिचय हो गया। और अब जब लोकविद्या ताना-बाना का विचार बनाना शुरू हुआ तो हमने भी कला और दर्शन के इस माध्यम और किसानों के आन्दोलन के बीच कड़ियाँ खोजना शुरू किया। इसी दृष्टि से लोकविद्या जन आन्दोलन के क्षेत्रीय कार्यक्रम की रचना की गयी जिसे  दो दिन के इस कार्यक्रम में पहली अभिव्यक्ति मिली। 
कार्यक्रम के कुछ फोटो।



दिनभर के गायकी के कार्यक्रम का अद्भुत अनुभव रहा। इंदौर से लगभग 50 किलो मीटर दूर दक्षिण की ओर मानपुर क़स्बा है और  मानपुर से लगभग 6 किलोमीटर अन्दर खुर्दी गाँव। खुर्दी के मुख्य चौक पर पंडाल लगाकर दिन में 12.00 बजे से शाम 6.00 बजे तक लोकसंगीत का कार्यक्रम आयोजित हुआ। मानपुर के आस-पास के 25 गाँवों से कलाकार मंडलियाँ आयी थीं। कुछ कलाकार धार, झाबुआ, खरगोन, अलीराजपुर और बडवानी से भी थे। करीब 80 कलाकार थे, साज़ और आवाज़ मिलाकर। उतने ही श्रोता भी थे। स्थानीय श्रोताओं के अलावा इंदौर से भी लगभग 15 जने आये थे। 

नवरंगपूरा के चन्द्र शेखर वर्मा ने कार्यक्रम का सञ्चालन किया और वाराणसी के दिलीप कुमार 'दिली' ने बीच-बीच में समाज में बदलाव की दृष्टि से लोकविद्या और संत दर्शन के बीच सम्बन्ध की चर्चा की। चन्द्रशेखर वर्मा के साथ रायकुंडा  के  गिरवर सिंह तिन्गारे, झारी के तूल सिंह  और बकलाई के घनश्याम को लेकर एक समिति बनायी गयी जिसके साथ लोकविद्या समन्वय समूह आगे की बात करेगा। इनके अलावा खुर्दी के जगदीश भूरिया और अमरसिंह, रायकुंडा  के लाल सिंह तिन्गारे, गोंडकुआ  के गुलाब, बकलाई के फूलचंद, सिरसिया के चंदू सिंह, औलिया तलाव के देवराज तथा भिलामी के रमेश और जगदीश बाबा के नाम सक्रिय भागीदारी के लिए उल्लेखनीय हैं। 


 सारा कार्यक्रम मंडलियों ने खुद आयोजित किया। उनके अपने शब्द हैं, अपना संगीत और अपने तौर तरीके। सभी किसान और आदिवासी समाजों से थे। लगता है लोकविद्या ताना-बाना का वैचारिक सहारा ग्रामीण क्षेत्रों के उस दर्शन और शक्ति से सहज सामना कराएगा जिसमें लोकविद्या आधारित ज्ञान आन्दोलन खड़ा करने की क्षमता हो। इंदौर के लोकविद्या समन्वय समूह की सहयोग की भूमिका रही।

दूसरे दिन मानपुर के एक विद्यालय के प्रांगण  में बैठक हुई। विषय आदिवासी किसान एकता था। स्थानीय किसान संघर्षों से आदिवासियों और किसानों के साथ उनके संगठनकर्ता आये थे तथा इंदौर, वाराणसी, नागपुर और सिंगरौली से लोकविद्या जन आन्दोलन के कार्यकर्त्ता उपस्थित थे। चर्चा का मुख्य विषय यह बना कि किस तरह मध्य प्रदेश में किसानों और आदिवासियों के जगह-जगह हो रहे संघर्ष आपस में एकता कायम कर सकते हैं। इस सिलसिले में एक बात यह भी हुई कि किसान नेताओं को जन आंदोलनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर इस एकता के लिए प्रयास करने का दबाव लाना चाहिए। 


मानपुर बैठक का एक दृश्य 


संजीव दाजी
संयोजक, लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर



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