Monday, May 5, 2014

जनाब, लोकविद्या समाज वाले सरकारी कर्मचारी से ज्यादा के हक़दार हैँ

जून अन्त की नागपुर की बैठक सही दिशा में है.

सरकारी कार्यालय में एक चपरासी का क्या काम है? कुछ कागजात यहाँ से वहाँ  ले जाना, अफसरों के लिए चाय पानी लाना या फिर अफसरों के लिए कुछ ऐसा बंदोबस्त करना जो खुले आम नहीं किया जा सकता ! इस प्रकार के कार्यों में किसी खास विद्या या हुनर की जरूरत नहीं है।  चपरासी का वेतन लगभग 15000 रूपये होगा।  एक किसान जो कृषि करता है , बुनकर जो कपडा बुनता है , लोहार और बढ़ई ( तरखान ) जो सामान बनाते हैं , फुटकर का व्यवसाय करने वाले , आदि ; इन सब के कार्यों में विद्या और हुनर की जरूरत होती है।  इसलिए इनका न्यूनतम वेतन चपरासी के वेतन से अधिक होना चाहिये।

कारीगर कच्चे माल और अन्य पदार्थों का प्रबंध करके कई हाथ जुटा कर पक्के माल को निर्मित करते हैं।  यह हर जरूरी यंत्र वस्तु आदि का खुद प्रबन्ध करते हैं और प्रबन्धकर्ता का कार्य भी खुद ही करते हैं।  इसलिए इनका न्यूनतम वेतन किसी भी सरकारी कार्यालय के प्रबन्धक  के बराबर का होना चाहिए।  इनकी एक और विशेषता यह है कि यह प्रबन्धकर्ता की विद्या किसी विशेष विद्यालय से हासिल नहीं करते बल्कि अपने अपने जीवन के संघर्ष से सीखते हैं।  इनका विद्या हासिल करने का ढंग ऐसा है कि किसी दूसरे पर कोई लागत नहीं आती।  ऐसे बिना किसी पर  बोझ  बने यह विद्या सीखते हैं जिसकी पूर्ति इन्हे होनी चाहिए।  इसलिए इनका वेतन सरकारी संस्था के प्रबंधक  से अधिक होना चाहिए।

मै इस बात से पूरी  तरह से सहमत हूँ कि " नया समाज गढ़ने के विचार की शुरुवात विकास की अवधारणा और भाषा को त्याग कर तथा आम लोगों की क्षमताओं , उनके शक्ति के स्थानों और ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करके एक नये सिरे से होनी होगी "

ललित कौल
लोकविद्या जन आंदोलन, हैदराबाद 

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