लोकविद्या जन आंदोलन (लोजआ) मुलताई समागम
11 जनवरी 2014 को आशीर्वाद लॉन, मुलताई, जिला बैतूल, मध्य प्रदेश में हुए लोजआ समागम ने इस बात पर ज़ोर दिया कि देश भर में हो रहे किसानों के आंदोलनों के अंतर्गत यह ज्ञान आंदोलन एक नई राजनीतिक सोच बनाता है। इन संघर्षों के बीच समन्वय के प्रयासों के मार्फ़त लोकविद्या अपने ज्ञान के दावे पेश करेगी और दोनों मिलकर फिर लोकविद्याधर समाज की एक नई राजनीति की ओर कदम बढ़ाएंगे।
किसान संघर्ष समिति के साथ मिलकर आयोजित इस जमावड़े में करीब 150 लोगों ने भाग लिया। इंदौर, नागपुर, वाराणसी, सिंगरौली और मुलताई के क्षेत्रों से किसान और दस्तकार भाग लेने आये। इन सभी स्थानों तथा हैदराबाद और चिराला के सभी लोजआ कार्यकर्त्ता उपस्थित थे। समागम लोकविद्या सत्संग से शुरू हुआ। वाराणसी के हीरामनपुर और बभनपुरा तथा इंदौर के खुर्दी गाँवों से आई मंडलियों ने कबीर-लोकविद्या पदों के मार्फ़त वह लोकविद्या दर्शन पेश किया जिसमें संगठित विद्या की माया की तुलना में लोकविद्या की वास्तविकता उजागर होती है। वर्धा के खुर्सापुर से आये कार्यकर्ताओं ने उत्साहवर्धक संघर्ष गीत पेश किये। सत्संग ने समागम का सुर निर्धारित कर दिया।
सुनील सहस्रबुद्धे, डा. सुनीलम, कृष्णा ठाकरे , संजीव दाजी , अवधेश कुमार , लक्ष्मीचंद दुबे , रवि शेखर , डा. गिरीश सहस्रबुद्धे , विलास भोंगाडे , डा. बी. कृष्णराजुलु , मोहन राव , नारायण राव , दिलीप कुमार , लक्ष्मण प्रसाद , सुरेश यादव, एहसान अली और डा. चित्रा सहस्रबुद्धे ने सभा को सम्बोधित किया। इन लोगों के वक्तव्यों में सभा के लिए तय मुद्दों के अनुकूल ही निम्नलिखित बातें विस्तार पाईं।
- किसानों के संघर्षों के बीच समन्वय और लोकविद्याधर समाज में व्यापक एकता की दृष्टि से इन संघर्षों के बारे में बात करने के लिए लोकविद्या विचार से अनुप्राणित ज्ञान की भाषा के इस्तेमाल का बड़ा महत्व है।
- सिंगरौली , इंदौर , वाराणसी , नागपुर , हैदराबाद और चिराला के क्षेत्रों में लोजआ की गतिविधियों के बारे में बताया गया। मुलताई के किसानों का संघर्ष विस्तार से प्रस्तुत किया गया।
- लोकविद्या दर्शन पर बात हुई तथा व्यावहारिक सामाजिक और राजनैतिक दावों पर चर्चा की गई।
इस मौके पर प्रकाशित पुस्तिका और पर्चे के मार्फ़त तथा भाषणों के जरिये नीचे दिए लोकविद्या के दावे समझाए गए और प्रचारित किये गए।
- लोकविद्या के आधार पर अपनी ज़िन्दगी संगठित करना यह हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसलिए विस्थापन पूरी तरह बंद हो और किसान , कारीगर व आदिवासियों के उत्पादन को जायज मूल्य मिले।
- ज्ञान की दुनिया में ऊँच-नीच सर्वथा नाजायज़ है। लोकविद्या के सहारे जीने वालों की भी उतनी ही आय होनी चाहिए जितनी पढ़े-लिखे लोगों की होती है।
- राष्ट्रीय संसाधनों का बराबर का बंटवारा हो - बिजली , पानी , वित्त , स्वास्थ्य और शिक्षा, सभी का।
- स्थानीय व्यवस्थाओं पर स्थानीय समाजों का नियंत्रण हो - प्रशासन, बाज़ार , संसाधन , सभी कुछ।
- गाँव -गाँव में मीडिया स्कूल हो। यह एक नव-निर्माण का प्रयास है, जिसमें गाँव के युवाओं को लोकविद्या दृष्टिकोण से अपनी बात कहना, प्रस्तुत करना , सम्प्रेषित करना आदि सिखाया जायेगा।
इन सभी बिंदुओं पर हिंदी पुस्तिका जनसंघर्ष और लोकविद्याधर समाज की एकता ( पृष्ठ 26 -30 ) में विस्तार से चर्चा की गई है।
अंत में लोजआ और किसान संघर्ष समिति ने मिलकर यह तय किया कि विभिन्न राज्यों में लोकविद्या समूह बनाये जायेंगे जो लोकविद्या के इन पाँच दावों को पेश करेंगे और किसानों , आदिवासियों , कारीगरों , महिलाओं और पटरी के दुकानदारों के संघर्षों में घुल-मिल कर काम करेंगे। वहाँ उपस्थित मध्य प्रदेश के साथियों ने वहीँ ऐसा समूह बना लिया और यह तय किया गया कि लोजआ लोकविद्याधर समाज के संघर्षों के साथ मिलकर महारष्ट्र , आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में ऐसे समूह बनाएगा।
जन आंदोलन और नई राजनीति
अब कई दशकों से किसान आंदोलन और जल-जंगल-ज़मीन आंदोलन के मार्फ़त इस देश के जन आंदोलन आकार लेते रहे हैं। लोजआ अपने को जनता के एक ऐसे ज्ञान आंदोलन के रूप में देखता है जो इन दो धाराओं को एक करके उस अगले चरण में ले जाये, जहाँ इनके अपने मुद्दों के इर्द-गिर्द राजनीति खड़ी की जा सके। इस समागम का समय और स्थान दोनों इस उद्देश्य के अनुकूल थे। यह वही स्थान है जहाँ 1998 में 24 किसान पुलिस की गोली से मारे गए थे। आज समय वह है जब दो नई राजनैतिक धाराएं उभरती नज़र आ रही हैं। एक वह है जो ज्ञान के नए संगठन, सूचना प्रौद्योगिकी और नए व्यावसायिक वर्गों के बीच से उभर रही है और दूसरी किसान संघर्षों की निरंतरता लेते हुए लोकविद्याधर समाज और लोकविद्या में अपनी ताकत , समझ और दर्शन का स्रोत देखती है। हिंदी पुस्तिका जनसंघर्ष और लोकविद्याधर समाज की एकता ( पृष्ठ 21-24 ) में इसकी थोड़ी चर्चा की गई है। लिंक : http://vidyaashram.org/papers/Jansangharsh_Unity_%20Multai_Conf.pdf
शहीद किसान स्मृति सम्मलेन
किसान संघर्ष समिति ने 12 जनवरी को शहीद किसानों की स्मृति में एक सम्मलेन आयोजित किया जिसमें कई जगह से किसान और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए। पहले बड़ी संख्या में लोग बस स्टेशन के पास शहीद स्मारक स्तम्भ पर 12 जनवरी 1998 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए इकठ्ठा हुए। डा. सुनीलम ने दस मिनट में अपनी बात रखी, फिर सब एक जुलूस की शक्ल में पास ही के हाई स्कूल के मैदान जा कर एक सभा में तब्दील हो गए जिसकी अध्यक्षता किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष श्री टंटी चौधरी ने की। इस सभा को किसान नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सम्बोधित किया। ये सब शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने आये थे। सभा को एक अति संवेदनशील समारोह के रूप में आयोजित किया गया। शहीदों की माता या पत्नी या परिवार के किसी सदस्य को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया। एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया और छोटी-छोटी मेधावी छात्राओं को पुरस्कार और प्रमाण पत्र देकर प्रोत्साहित किया गया। एक विस्तृत मुलताई किसान घोषणापत्र पढ़ कर सुनाया गया और पारित किया गया। यह इस किस्म का 16 वाँ आयोजन था। यह कार्यक्रम एक उम्मीद ज़िंदा रखता है। लोकविद्या जन आंदोलन ऐसे मौके के लिए आमंत्रित किये जाने पर और यहाँ उपस्थित हो कर अपने को सम्मानित महसूस करता है।
इन कार्यक्रमों के फ़ोटो 15 जनवरी 2014 को इस ब्लॉग पर छपी अंग्रेजी रपट के साथ दिए हुए हैं।
विद्या आश्रम
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