Thursday, September 29, 2016

इंदौर में ज्ञान-आंदोलन

लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर ने लोकविद्या-ज्ञान-आंदोलन के तहत इंदौर ज़िले में सितंबर महीने में  दिनांक 21 से 27  के बीच कई  स्थानों पर ज्ञान-पंचायतें कीं । ये ज्ञान-पंचायतें किसानों, कारीगरों, आदिवासियों और पटरी- ठेले पर छोटे -छोटे धंधे करने वालों की बस्तियों-बाज़ारों में हुईं ।  इन ज्ञान पंचायतों में शामिल होने के लिये कर्नाटक से ज. क. सुरेश और सिवरामकृष्णन, तेलंगाना-हैदराबाद से कृष्णराजुलु, उत्तर प्रदेश से दिलीप कुमार 'दिली' और महाराष्ट्र से टाइनी इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के डी. एम.शिंदे शामिल हुए। संजीव दाजी के प्रयासों से हुई इन विभिन्न स्थानों पर आयोजित ज्ञान-पंचायतों का आयोजन वहाँ के स्थानीय किसान, कारीगर, आदिवासी  छोटे-छोटे दुकानदारों ने किया। इंदौर के प्रेस क्लब में भी पत्रकारों के साथ एक ज्ञान-पंचायत की गयी।     

 अखबार प्रभात किरण के 24 सितंबर अंक में प्रकाशित
 कर्णाटक से लोकविद्या आंदोलन के प्रवक्ता ज. क. सुरेश से वार्ता 

इन ज्ञान-पंचायतों में प्रमुखतः निम्नलिखित बिंदुओं पर ज्ञान-वार्ता हुई --
  • ज्ञान-पंचायत क्या हैं और इनका स्वरुप व लक्ष्य क्या है। 
  • लोकविद्या को विश्वविद्यालय की विद्या के बराबर का मूल्य मिले। 
  • लोकविद्या बाजार की अवधारणा 
  • लोकविद्या-स्वराज का विचार 
  • मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लोकविद्या-समाज में संवाद खोलने के प्रयास 
  • वाराणसी में 16 अक्टूबर 2016 को प्रस्तावित किसान-कारीगर महापंचायत में भागीदारी 

दिनाकं 21 सितंबर को मिल इलाके में दो ज्ञान-पंचायतें हुई। एक शिवाजी नगर की कारीगर बस्ती में और  दूसरी इसी इलाके में बुधवारिया हाट में छोटे दुकानदारों के बीच। पहली पंचायत में निर्मला देवरे , वंदना वाघमारे , गंगा बाई , कैलाश अमृते,  भाऊ ने सक्रिय हिस्सा लेकर अपनी बात रखी तो दूसरी में असलम भाई , बघेल व अन्य दुकानदारों ने। 
22 सितंबर को चंपाबाग और दौलत गंज के कारीगरों के बीच हुई ज्ञान-पंचायत में सिराजभाई जालीवाले, आपा, शेरसिंह आदि ने कारीगरों के पास के ज्ञान को सही मूल्य मिलने की आवाज़ को उठाने का आग्रह किया। इसी दिन इंदौर प्रेस क्लब में पत्रकारों से एक वार्ता हुई जिसमें ज. क. सुरेश , बी. कृष्णराजुलु, दिलीप कुमार 'दिली', शिवराम कृष्णन और डी. एम. शिंदे ने पत्रकारों को इस ज्ञान-आंदोलन के बारे में विस्तार से जानकारी दी और उनके सवालों के जवाब दिये। 
 पत्रकारों से प्रेस क्लब इंदौर में ज्ञान-वार्ता 
बायें से दिलीप कुमार 'दिली', बी. कृष्णराजुलु, ज. क. सुरेश और शिवराम कृष्णन 

 23 सितंबर को तीन जगह किसानों और आदिवासियों के बीच ज्ञान-पंचायतें हुई। पहली ग्राम पालड़ी (इंदौर के उत्तर-पश्चिम 30 किलोमीटर) में, दूसरी ग्राम कालीबिल्लोद (इंदौर के पश्चिम 35 किलोमीटर) में और तीसरी ग्राम खुर्दी (इंदौर के दक्षिण 70 किलोमीटर) में।
ग्राम पालड़ी में  सरपंच सुमेर सिंह राठौर और कैलाश सूर्यवंशी  ने  और  कालीबिल्लोद में सरपंच गणेश परमार और यादवजी ने गाँव समाज के सामने किसान के ज्ञान और उसके मूल्य की बात रखी। खुर्दी में आदिवासी-किसान हैं। यहाँ ज्ञान-पंचायत में ग्राम भिलामी, भकलाय, गोंड़कुआं और खुर्दी के लोग शामिल हुए।  सीताराम कटारे ,  अमरसिंह निनामा, जगदीश भूरिया, जगदीश बाबा, रमेश भाबर, गुलाबसिंह कटारे, फूलचंद और घनश्याम भाबर ने बातों को समाज के बीच स्पष्टता के साथ रखा। 
24 सितंबर को सामाजिक संगठनों के  प्रतिनिधि प्रकाश महावर,  डॉ. तपन भट्टाचार्य,   कालीबिल्लोद के सरपंच गणेश परमार और  यादवजी के साथ इंदौर शहर के दलित-कारीगर बस्ती में ज्ञान-पंचायत हुई। 25  सितंबर को चन्दन नगर के सिराज भाई जालीवाले और बाबु भाई की पहल पर मुसलमान बहुल कारीगरों के बीच और राजेश धौलपुरे, सचिन पथरोड़, विशाल डागर व अन्य की पहल पर राजमोहल्ला वाल्मिकी नगर में ज्ञान पंचायतें हुई। तीनों ही पंचायतों में ज्ञान के सवाल को प्रमुख बनाते हुए सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी का हल खोजने का आग्रह सामने आया। 
इन सभी ज्ञान -पंचायतों में 16 अक्टूबर 2016  की वाराणसी में हो रही किसान-कारीगर महापंचायत में भागीदारी का फैसला लिया गया और साथ ही यह भी कि इसी नवम्बर मेंऔरंगाबाद में ज्ञान-पंचायत में भागीदार होंगे और दिसंबर में इंदौर में एक महापंचायत करेंगे। 

विद्या  आश्रम     

Tuesday, September 20, 2016

वाराणसी ज्ञान पंचायत 18 सितंबर 2016


ग्राम सलारपुर, वाराणसी में 18 सितंबर 2016  को एक  वाराणसी ज्ञान-पंचायत हुई। 'हर किसान और कारीगर के परिवार में सरकारी कर्मचारी जैसी आय होनी चाहिये' इस विषय को केंद्र में रख कर हुई इस ज्ञान-पंचायत में लगभग 20 स्थानीय  कार्यकर्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। 

आलम अंसारी बोलते हुए  

लोकविद्या जन आंदोलन के राष्ट्रीय प्रवक्ता दिलीप कुमार 'दिली' , भारतीय किसान यूनियन की ओर से वाराणसी जिलाध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद , शहर के कारीगरों की ओर से आलम अंसारी, पटरी के दुकानदारों की ओर से चिंतामणि सेठ ने अपने विचार रखे और इस ज्ञान-आंदोलन में अपनी-अपनी भागीदारी को सबके बीच रखा।  विद्या आश्रम की ओर से सुनील सहस्रबुद्धे ने जोर देकर कहा कि किसानों और कारीगरों  को सार्वजनिक स्थलों पर , पंचायतों और बैठकों में , चाय की दुकानों और चौराहों पर, सभी जगह यह दावा  पेश करना चाहिये कि उनका ज्ञान किसी और के ज्ञान से कम नहीं है।

ग्राम प्रधान श्री बच्चेलाल बोलते हुए
सलारपुर के ग्रामप्रधान श्री बच्चेलाल राजभर, प्रेमलता सिंह, चित्रा  सहस्रबुद्धे ,  शिवमूरत , 
पंचम आदि ने अपने विचार रखे।  
शोषित समाज दल के  वरिष्ठ विचारक, नेता और संरक्षक श्री जयराम प्रसाद ने जनता के इस ज्ञान आंदोलन में अपने पूरे सहयोग की घोषणा की। 

 
प्रेमलता सिंह और दिलीप कुमार 

अंत में 16 अक्टूबर 2016 को वाराणसी में प्रस्तावित किसान कारीगर महापंचायत के लिए देश भर में घूम कर की जा रही तैयारी को ज्ञान-पंचायत में रखा गया और देश भर के कार्यकर्ताओं की एक 60 सदस्यीय आयोजन समिति की घोषणा की गई।  


विद्या आश्रम 



Sunday, September 11, 2016

The Singur Judgement and LJA


The 10 year agitation of the farmers of Singur, West Bengal, over the acquisition of about 1000 acres of fertile agricultural land by the Government, for providing land to the Tata company for setting up an automobile industry, has come to a fitting conclusion. The Supreme Court, in a recent judgement, has ruled on the validity of the demands and upheld the rights of the displaced farmers. The relevant portions of the judgement reads as follows:

“...In the facts of this case it would be appropriate to direct that land is given back to all land
owners since they have been deprived of the usufruct of the land for a decade as
such the compensation paid to them shall not be recovered. They are permitted to
retain it or claim it in full and final settlement of claim towards damages for
deprivation of use of their land etc……...
The land shall be given back to the land owners and compensation if any paid to them
shall not be recovered from them those who have not collected it are free to
collect the same in lieu of damages for deprivation of possession for ten years...”

All the farmers, whose lands were acquired, will get back their lands and any compensation paid (or promised to be paid which will now be paid) will be retained by the farmers in lieu of their being deprived of their fundamental right to practise their livelihood by virtue of their being dispossessed of their lands.

The import of the judgement for Lokavidya Samaj

This judgement is NOT about procedural lapses, compensation for displacement or loss thereof. This judgement lies at the heart of LJA viz

i) Every individual has a fundamental right to practise a livelihood in order to lead a life of dignity. 
ii)Every individual has the right to choose his profession/livelihood.
iii)Such choice is normally made on the basis of the individual’s knowledge and skills. (Such knowledge/skill may be acquired by working with family, elders of the community or through undergoing courses of instruction and training in institutions set up for these purposes)
iv)All ‘products’ based on such knowledge/skills are equally valuable and are entitled to the same     pay/remuneration

All members of Lokavdiya Samaj have acquired, and continue to practice, knowledge and skills through working with their family,elders and the community they live in. Whereas, all members who belong to the educated sections acquire their knowledge and skills from Schools, Colleges, Universities etc and practise professions/livelihoods based on such institution-acquired knowledge/skills. The farmers of Singur, (and in fact all over the country who are part of Lokavidya Samaj), are dependent on land (a natural resource) for their livelihood i.e they practise their knowledge and skills using this natural resource. Whereas, the demand of the ‘educated-unemployed’ (whose interests were apparently being catered to by the West Bengal Government through this acquisition),is for the setting up of industries and workplaces that would provide them employment where they would practise their acquired knowledge/skills.

The Supreme Court judgement indicates a recognition of this dire need of the farmers of Singur and has sought, through this judgement, to annul the disasterous effects of the displacement of these farmers.


The Right to Life and The Right to a livelihood based on( live by) Lokavidya

The fundamental Right to Life is recognised by all societies the world over. This Right is enshrined in all Constitutions and held sacrosanct by all religions.

When a child( or any living being) is born into this Earth ; it has a fundamental right of access to all resources that are required to sustain its life such as clean air, water, food, clothing, shelter etc. It is also incumbent on members of the society into which it is born to provide it means to grow( from a dependent) and acquire an independent status; which implies acquisition and practice of knowledge/skills and livelihood that would enable it to live a life of (minimal) dignity and become a contributing member of societal growth, sustenance and development. The Right to Life is really a Right to a Sustainable Life of Dignity.

The current demand of ordinary people, the world over, is a guarantee of gainful livelihood/ employment that would provide a minimum wage to ensure a life of dignity. This demand is considered a just and honourable demand. Today, however, we see that vast sections of humanity are being deprived of access to natural resources – clean air, water, environment which are essential to healthy Life, and to natural and other resources that are essential for their Livelihoods. This is because the current planners and controllers of development, while ignoring the knowledge claim (Lokavidya) of Lokavdiya Samaj, consider their acquired knowledge to be far superior to Lokavidya, which is termed backward, obsolete and unscientific and a thing of the past and having no relevance today and incapable of contributing whatsoever to human and social development. Hence, it is concluded that all livelihoods based on Lokavidya need to be sub-planted by more ‘modern’ occupations and livelihoods. This model of development leads to acquisition of every natural resource - land,water, forest, mineral wealth etc for industry-related purposes and, most often ruthlessly, displaces ordinary people from all natural resources thus depriving them of the right to practise their chosen professions/livelihood.

However, the great spread of growing poverty, sickness, environmental degradation and violent conflict the world over, is witness to the fact of the failure of this attitude and outlook and to the inherent degeneracy of this model of development. These results are there for all to see and the life-threatening brunt is being borne by Lokavidya Samaj.

This judgement, not only draws attention to the Right to live by Lokavidya, it also, by implication, negates the assumption of the Government that the acquisition was for public purpose of providing gainful employment to a larger number of people including those who were displaced. The farmers had claimed at the outset, that it was farming that they knew and not industry-related work(which implied that they would be deemed unfit for employment in the proposed industry). They had thereby ab initio debunked the rationale behind the acquisition by the Government. This judgement will provide great impetus to the movements against displacement.

The minimum wage/pay demand of LJA

In the light of this judgement, the current demand of LJA for a ‘ minimum wage/pay to ALL working people on par with the Government fixed minimum wage/pay’ comes into clear focus.
The minimum wage is arrived at by factoring in all requirements for living a life of minimum dignity and so the LJA demand is a demand for the recognition of the essential equality between University-acquired knowledge/skill and the different livelihood/skill-streams in Lokavidya and that everybody be given a minimum wage that will provide for a life of dignity.

The Singur judgement should bolster the demand of Lokavidya Samaj for “equal minimum pay to ALL working people” and strengthen the unity within the ranks of Lokavidya Samaj. 

Krishnarajulu 

Friday, September 9, 2016

निमंत्रण (मराठी): विशाल किसान कारीगर महापंचायत, १६ ऑक्टोबर २०१६, वाराणसी



निमंत्रण / घोषणा
चलो वाराणसी ! चला गंगातीरी !
अश्विन पौर्णिमा, रविवार दि. १६ ऑक्टोबर, २०१६, स्थळ: भैंसासुर घाट
विशाल किसान-कारीगर महापंचायत
वाराणसी येथे रविवार, १६ ऑक्टोबर २०१६ अश्विन पौर्णिमेला गंगेच्या काठी भैंसासुर घाटावर किसान कारीगर महापंचायतीचे आयोजन केलेले आहे. या पंचायतीत देशभरातील शेतकरी व कारागिरांच्या संघटना एकत्र येऊन अशी मागणी करणार आहेत की,
प्रत्येक शेतकरी व कारागीर कुटुंबाची मिळकत ही सरकारी कर्मचाऱ्यां इतकीच असावी
आणि
या कर्मचाऱ्यां प्रमाणेच ही मिळकत नियमित व ठराविक ही असावी
शेतकरी व कारागीर समाजांची ही मागणी बुलंद करण्यासाठी सहभागी व्हा!
गेल्या काही दशकांपासून शेतकरी व कारागीर समाजांचे शोषण पराकाष्टेला गेले आहे. हे समाज दारिद्र्याने ग्रासलेले तर आहेतच, परंतू याही उपर त्यांची खरी मिळकत सातत्याने खालावत चालली आहे. शिवाय ज्या आदिवासी समाजाची जंगलांतून आणि ज्या लहान व्यापारी समाजाची बाजारपेठांतून हकालपट्टी सुरु आहे ते देखील मूळ स्वरूपात आधी शेती आणि कारागिरीच करायचे.  या सर्व समाजांतील स्त्री-पुरुषांकडे त्यांच्या त्यांच्या व्यवसाया संबंधी मोठे विस्तृत ज्ञान (लोकविद्या) आहे. विद्यापीठांतून दिल्या जात असलेल्या ज्ञाना पेक्षा हे ज्ञान कुठल्याच दृष्टीने  उणे नाही. जोवर लोकांकडील या ज्ञानाला विद्यापीठातील ज्ञानाच्या बरोबरीचा मान आणि प्रतिष्ठा समाजात मिळत नाही, तोवर या समाजांचे शोषण संपुष्टात येणार नाही का त्यांच्या खुशालीचे मार्गही मोकळे होणार नाही. विद्यापीठांतून शिकलेल्यांसाठी योग्य मानली जाणारी मिळकत स्वतः च्या ज्ञानाच्या, म्हणजेच लोकविद्येच्या बळावर जगणाऱ्या सर्वांच्या देखील हक्काची आहे.
महापंचायतीची मागणी हा हक्क प्रत्यक्षात उतरवण्याची मागणी आहे!
एप्रिल २०१६ पासून महापंचायतीची तयारी सुरू आहे. या विषयी याच ब्लॉग वर ८, १६ व १८ एप्रिल आणि ८ सप्टेम्बर २०१६ रोजीच्या पोस्ट कृपया बघाव्यात. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगण, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक या राज्यां तील शेतकरी आणि कारागीर संघटनांसोबत संवाद - ज्ञान पंचायती सुरू आहेतच. महापंचायती च्या तयारी विषयी माहिती खालील लिंक वरून वाचता येतील अशा पत्रकांतून मिळू शकेल.
महापंचायती च्या मागणी मागचा विस्तृत विचार मांडणारी पुस्तिका खालील लिंक वर उपलब्ध आहे.
आवाहन
देशातील सर्वच शेतकरी, कारागीर, या समाजांच्या सर्व संघटना, या संघटनांसोबत मैत्री व सहानुभूती चे नाते मानणाऱ्या सर्व संघटना तसेच व्यक्ती या सर्वांना आम्ही असे आवाहन करतो की त्यांनी या महापंचायतीत मोठ्या संख्येने सहभागी व्हावे. तसेच महापंचायती च्या आयोजन कार्यात पुढाकार घ्यावा. महापंचायतीच्या मागणी वर भक्कम मोहीम उभारण्याच्या कार्यात सर्व ताकदीनिशी लागावे. आपल्या संपर्कात असलेल्या सर्व सामान्य लोकांत या मागणी वर भक्कम जनमत  तयार करायचे कार्य करावे. आणि या मागणी चे सामाजिक, आर्थिक व तात्विक पैलू सुदृढ आणि संपन्न करायच्या मार्गी आपले विचार व अनुभव लावून लोकविद्या समाजाला शोषणातून मुक्त करायच्या कार्यात सहभाग करावा.
अजून माहिती साठी खालील व्यक्तीं बरोबर संपर्क साधावा.