Tuesday, February 17, 2015

एक नया मौका

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की भारी जीत से राजनैतिक माहौल बदला भी है और गरमाया भी है। जन संघर्षों के वे कार्यकर्ता भी जो आम आदमी पार्टी के बड़े समर्थक नहीं रहे हैं, इस जीत से खुश ही हैं।  मोदी सरकार की हमलावर नीतियों के विरोध के लिए अब कुछ ज्यादा जगह मिलने की उम्मीद जगी है। बेहद आक्रामक और किसान उजाड़क नये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध जोर पकड़ रहा है।  तमाम संघर्ष और आंदोलन वाले 24  फरवरी को दिल्ली में इकट्ठा हो रहे हैं।
लोकविद्या जन आंदोलन भूमि अधिग्रहण का पूरा विरोध करता है।  हम इस विरोध में सभी जन आंदोलनों के साथ हैं। हम यह कहना चाहते हैं कि जब इतने बड़े पैमाने पर सब संघर्षकर्ता साथ आने को तैयार हों तो सवाल रोज़ी-रोटी तक सीमित नहीं रहना चाहिए।  जब तक किसान के ज्ञान को प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी तब तक उसके किसी भी सवाल का संतोषजनक हल नहीं मिल सकता।  बात केवल यह नहीं है कि किसान को खेती करना आता है पर बात यह है की किसान का अपना एक दर्शन होता है , सोचने, काम करने , संगठन बनाने, समाज को संयोजित और संचालित करने के अपने तरीके होते हैं।  क्या हम लोग यह भूल गए कि गांधी जी का विचार आम जन के विचार, ग्रामजन के विचार, किसान के विचार की ही एक उत्कृष्ट और अदभुत अभिव्यक्ति रहा ?  कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इस विचार में ईश्वरीय तत्व है।  ऐसा मानने के लिये धर्म में विश्वास करने या धार्मिक होने की ज़रुरत नहीं है। अगर ज़रुरत है तो इस बात की कि हम अपने चारों तरफ की दुनिया के प्रति सतत संवेदनशील रहें।
किसान, आदिवासी, मज़दूर , कारीगर, ठेला-पटरी वाले, सामान्य स्त्रियां इन सबके लिए सरकारें कुछ नहीं करतीं।  ये सब अपने कामों और समाजों को अपने श्रम और अपनी समझ व ज्ञान के बल पर संगठित करते हैं।  हम यह नहीं मानते कि कोई भी श्रम अकुशल-श्रम होता है।  नया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश इन सब लोगों को पूरी तरह उजाड़ने का खेल रचता है।  इसका हर तरह से विरोध होना ही चाहिए।  इस विरोध में जितना स्थान इन लोगों की अपनी समझ, विद्या और दर्शन को मिलेगा उतना ही यह विरोध गहरा और व्यापक होगा।  इसी से समाज की उस कल्पना का रास्ता भी खुलेगा जिसमें शहर, उद्योग और पूँजी केंद्र में नहीं है।  समाज का भला न टेक्नोलॉजी से होना है, न साइंस, उच्च शिक्षा या पूँजी निवेश के रास्तों से।
इस भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के विरोध के साथ संघर्षशील समूहों में आपस में उस नए समाज की कल्पना पर भी चर्चा शुरू होनी चाहिए जिसके केंद्र में और जिसके आधार में इन्हीं लोगों को होना है,  किसान, आदिवासी, मज़दूर , कारीगर, ठेला-पटरी वाले, सामान्य स्त्रियां, ये सभी।  यह मौका गंवाया नहीं जाना चाहिए।
इंदौर में लोकविद्या जन आंदोलन के वार्षिक समागम में 21-22 फरवरी 2015 को हम ये चर्चाएं करेंगे। जो भी इस ब्लॉग को देखें वे कोशिश करें कि  इंदौर के इस संवाद में शामिल हो सकें।

विद्या आश्रम