Friday, December 30, 2016

आमंत्रण : कलाकारों की ज्ञान-पंचायत

आमंत्रण 
कलाकारों की ज्ञान पंचायत 
8 - 9 - 10 फरवरी 2017 
वैजापुर और औरंगाबाद, महाराष्ट्र 

सभी लोक-कलाकारों को सरकारी कर्मचारी के 
बराबर और उसके जैसी पक्की व नियमित आय हो।
  
यह लोक-कलाकारों के लिये समाज के उच्च-शिक्षित लोगों के बराबर 
सम्मान और मूल्य हासिल करने का ज्ञान आंदोलन है। 

       समाज में लोकविद्या पर आधारित कलाकारों की बहुत बड़ी संख्या है।  इनमें अनेक उच्च स्तर के कलाकार, गायक, वादक, कथाकार, गीतकार, नर्तक, अभिनेता, चित्रकार, सिनेमा कलाकार हैं जिन्होंने औपचारिक शिक्षा अथवा संस्थागत शिक्षा प्राप्त नहीं की है। इनका ज्ञान लोकविद्या है। अपनी-अपनी कलाओं में माहिर ये लोग समाज की संस्कृति और सभ्यता के निर्माण में लगे महत्वपूर्ण घटक हैं।  लेकिन आज सूचना-मीडिया-प्रौद्योगिकी-पूँजी से बने बाजार में इन कलाकारों को खूब ठगा और लूटा जा रहा है। लोककला को खूब पसंद किया जा रहा है लेकिन लोक-कलाकारों की सामाजिक-आर्थिक  स्थिति से आँखे मूँद ली गई हैं, सरकारें अपनी कोई ज़िम्मेदारी नहीं निभा रही हैं।
      इस अर्थ में लोक-कलाकारों की हालत लोकविद्या-समाज के अन्य घटकों  - किसान, कारीगर , ठेला-पटरी दुकानदारों  और आदिवासी समाजों से अलग नहीं है।  उत्तर प्रदेश में हाल ही में हुई किसान कारीगर पंचायतों में किसान, कारीगर और आदिवासी समाजों ने अपने लिए सरकारी कर्मचारी के बराबर, पक्की और नियमित आय की आवाज़ उठाई है। इन ज्ञान-पंचायतों ने यह दावा भी पेश किया है कि इन समाजों के ज्ञान  को  यानि लोकविद्या को विश्वविद्यालय के बराबर का दर्जा मिलना चाहिये। 
      इसी कड़ी में नवम्बर 2016 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कई स्थानों पर ज्ञान पंचायतें हुईं  (देखें इसी ब्लॉग  पर 24 नवम्बर का पोस्ट ) जिनमें इस बात को केंद्र में लाया गया कि किसान-कारीगर समाजों की इस मांग के साथ कलाकारों को अपने ज्ञान का दावा पेश करना चाहिए और एक पक्की, नियमित और सरकारी कर्मचारी के बराबर आय की मांग करनी चाहिये।  इन ज्ञान-पंचायतों में लिए गए फैसले के अनुसार महाराष्ट्र में  8 , 9, 10  फरवरी 2017 को वैजापुर तथा औरंगाबाद में कलाकारों की एक बड़ी ज्ञान-पंचायत का आयोजन होगा। 
वैजापुर तथा औरंगाबाद की ज्ञान-पंचायतें कलाकारों के ज्ञान-आंदोलन का आगाज़ करती हैं ।  
इनका ज्ञान-आंदोलन यह मनाता है कि -
  • कलाकार-समाज के लोग बेहद संवेदनशील और सक्रिय व्यक्ति होते हैं। 
  • लोक-कलाकार अपनी कला के ज्ञान को कई वर्षों में और अनेक संघर्षों से गुजर कर प्राप्त करते हैं और इसे सतत निखारते हैं । ज्ञान प्राप्ति में इनकी तपस्या उच्च-शिक्षित लोगों से कम नहीं है।  
  • इस ज्ञान के बल पर वे अपनी जीविका चलाते हैं और उनका महत्वपूर्ण योगदान यह है कि वे समाज को सतत दार्शनिक और आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर  ले जाने का कार्य करते हैं। 
  • ये समाज में फैले पाखंड को उजागर करते हैं और समाज की मानवीय चेतना को ज़िंदा रखते हैं।  
  • उन्हें कलाकार्य की अनुभूति, प्रेरणा, सम्प्रेषण और निखार के लिए स्कूल-कालेज की शिक्षा की दरकार नहीं होती।  
  • समाज में तरह-तरह की कलाओं में माहिर  ये समुदाय छोटे-छोटे समूहों में लोगों के बीच जा कर विभिन्न उत्सवों और अवसरों पर अपनी कला के मार्फ़त जीवन के दर्शन और मूल्यों के नवीनीकरण का कार्य करते रहते हैं।  
  • इन सबके चलते इन समाजों के ज्ञान (लोकविद्या) को विश्वविद्यालय के ज्ञान के बराबर की प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए और इनकी आय भी उतनी ही होनी चाहिए जितनी विश्वविद्यालय से पढ़े-लिखे  लोगों को सरकारी सेवाओं से होती है। 
       वैजापुर तथा औरंगाबाद में होने जा रही कलाकारों की ज्ञान-पंचायतों में यही दावा पेश करना है।  हम हर विधा के कलाकारों और कला प्रेमियों से आवाहन करते हैं कि वे इस ज्ञान-पंचायत में आयें और इस आवाज़ को बुलंद करने में सहभागी हों। 

      वैजापुर तथा औरंगाबाद की इस ज्ञान-पंचायत में किसान, कारीगर और आदिवासी समाज भी शामिल होकर कलाकारों की आवाज़ को बुलंद करेंगे।  महाराष्ट्र के अलावा उत्तर प्रदेश, बंगाल, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्णाटक के लोकविद्या-समाज के लोग भी इस ज्ञान-पंचायत में शामिल होंगे।  

     इस ज्ञान-पंचायत की एक तैयारी बैठक 7 जनवरी 2017 को वैजापुर में और  8  जनवरी 2017  को औरंगाबाद में होगी।   इन्हीं बैठकों  में 8 -10 फरवरी 2017 की तीन दिवसीय ज्ञान-पंचायत के कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जायेगा।  इन तैयारी बैठकों में आप आमंत्रित हैं। अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित व्यक्तियों से संपर्क कर सकते हैं।  

संजीव दाजी, औरंगाबाद  (9926426858),    गिरीश सहस्रबुद्धे, नागपुर (9422559348)
एकनाथ राव त्रिभुवन, वैजापुर (9422209475),   आबा साहेब जेजुरकर, वैजापुर (9420813211)           
प्रकाश वाघमारे, औरंगाबाद  (7588349313) 
निर्मला देवरे, इंदौर (9926606673) , घनश्याम भाबर, इंदौर (8120500530 )  
दिलीप कुमार 'दिली', वाराणसी (9452824380 ), जितेन नंदी, कोलकाता (8420134201 )                              टी.नारायण राव, हैदराबाद (9849389550 )                                                                        

Wednesday, December 14, 2016

मुंडेरवां में किसान शहीद मेला 11 दिसंबर 2016

उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले के पास मुंडेरवां में हर वर्ष शहीद किसानों की याद में मेला लगता है। यह मेला इस याद को ताज़ा रखता है कि देश के किसान को अभी तक न्याय नहीं मिला है। वर्ष 2002 में बस्ती मंडल के किसानों ने भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक )के नेता दीवानचंद जी के नेतृत्व में गन्ने के मूल्य को हासिल करने का आंदोलन छेड़ा था।  इस संघर्ष में पुलिस की गोली से तीन किसान शहीद हो गए थे।
 
किसानों को संबोधित करते किसान नेता चौधरी दीवानचंद  

इस वर्ष भी इस मेले में हज़ारों किसान शामिल हुये। पूर्वी उत्तर प्रदेश के बस्ती, गोरखपुर, देवीपाटन, फैज़ाबाद, वाराणसी, आजमगढ़ मंडल के अध्यक्षों ने अपनी बात रखी और तमाम ज़िलों और तहसीलों के पदाधिकारियों ने भी अपनी बात रखी। नोटबंदी, धान का मूल्य और क्रय केंद्र, गन्ने के मूल्य का भुगतान , चीनी मिल चलवाने  आदि मुद्दे चर्चा में रहे। 
शहीद किसानों की याद में जुटे हज़ारों किसान 

इसी अवसर पर दिलीप कुमार दिली की पहल पर भारतीय किसान  यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दीवानचंद चौधरी की अध्यक्षता में एक ज्ञान-पंचायत का आयोजन हुआ।  इसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों के अध्यक्ष शामिल रहे।  प्रमुख चर्चा इस बात पर रही कि किसान के घर में पक्की आय यही किसान के दर्द को मिटाने का एकमात्र तरीका है। पक्की आय होगी तो बिजली, क़र्ज़ , मूल्य, खाद, बीज, पानी, प्राकृतिक आपदा, सभी के संकट से निपटने के लिए हर बार किसान को संवेदनहीन सरकारों की ओर ताकने की मज़बूरी नहीं होगी।  पक्की आय तय करने का स्वतंत्र भारत में सर्वमान्य एक ही तरीका है -- राष्ट्रीय वेतन आयोग द्वारा निर्धारित सरकारी कर्मचारियों की आय।  यही आय हर किसान परिवार को चाहिए।  इस मांग का आधार सच्चा, तर्कसंगत और व्यापक है।  इसके लिए भारतीय किसान यूनियन लोकविद्या के बल पर काम करने वाले सभी समुदायों और उनके संगठनों को साथ आने का आवाहन करता है।  वे सभी ऐसी ही पक्की व नियमित आय का हक़ रखते हैं। 

यह भी सोचा गया कि हर ज़िले में ज्ञान-पंचायतें बननी चाहिये और लोकविद्या समाज के हर परिवार के लिए सरकारी कर्मचारी जैसी पक्की और नियमित आय की मांग बुलंद की जानी चाहिए। दिलीप कुमार दिली और लक्ष्मण प्रसाद ने वाराणसी मंडल के ज़िलों से यह शुरुआत कर दी है।  

मुंडेरवां में बनी ज्ञान-पंचायत की प्रतीक मड़ई के सामने किसान नेता चौधरी दीवानचंद, 
सुरेश यादव, प्रदेश सचिव ,  लक्ष्मण प्रसाद, वाराणसी ज़िला अध्यक्ष  

15 सूत्री मांगपत्र पर सहमति का फैसला देते किसान 


लोकविद्या जन आंदोलन, विद्या आश्रम, वाराणसी 

नोटबंदी : चंदौली में किसानों की ज्ञान पंचायत

22 नवम्बर 2016  को उत्तर प्रदेश के चंदौली ज़िले के ग्राम मनहारी में किसानों की ज्ञान-पंचायत लगी।  नोटबंदी से परेशान किसान, कारीगर, छोटे दुकानदार, आदिवासी और महिलाओं की खुशहाली के लिए आयोजित इस ज्ञान-पंचायत की लोकविद्या के बोल गा कर शुरुआत हुई।  भारतीय किसान यूनियन के चंदौली ज़िले के अध्यक्ष जीतेन्द्र प्रताप तिवारी ने विषय को पंचायत के सामने रखा और इस विषय पर राम अवतार सिंह, पारस तिवारी, जमुना चौबे , सुल्तान अहमद , शम्भू गुप्ता, त्रिभुवन , लक्ष्मण प्रसाद मौर्या दिलीप कुमार दिली ने अपने विचार रखे।  अंत में सर्व सहमति से एक पत्र लिख कर इस ज्ञान पंचायत के विचार से प्रधान मंत्रीजी को अवगत कराने का फैसला हुआ।  यह पत्र नीचे दिया जा रहा है।  यही पत्र ज्ञापन के रूप में स्थानीय प्रेस को दिया गया।
नोटबंदी पर पंचायत से निकलकर आया दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। 

ज्ञान पंचायत, चंदौली द्वारा जारी ज्ञापन 

माननीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीजी                                                             22  नवम्बर 2016
भारत सरकार , नई दिल्ली
द्वारा, जिला अधिकारी, चंदौली (उ. प्र.)

विषय : नोटबंदी से परेशान किसान, कारीगर छोटे दुकानदार, आदिवासी, एवं महिलाओं की खुशहाली के सम्बन्ध में।

महोदय,
भारतीय किसान यूनियन आपको लिखित अवगत कराती है कि 8 नवम्बर 2016 से आपने जो नोटबंदी की है उससे किसान, कारीगर, छोटे दुकानदार, आदिवासी, एवं महिलायें बेहद परेशान हैं।  फिर भी आपको धन्यवाद् देते हुए अपेक्षा करते हैं कि अब तक इन समाजों के ज्ञान व काम का लूटा हुआ धन सरकारी खजाने में आ रहा है।  आज़ादी के 70 सालों तक यही लोकविद्या समाज के लोग इस धन से वंचित रहे हैं।  इनके खुशहाली का रास्ता हर ग्रामीण परिवार में एक पक्की व नियमित आमदनी सरकारी कर्मचारी की तरह होने से खुलता है।

भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) ज़िला चंदौली की मासिक पंचायत 21 नवम्बर 2016 दिन सोमवार को मनिहारा सरोवर अवधूत भगवान राम के स्थान पर हुई।  जिसमें सर्व सहमति से निर्णय लिया गया कि नोटबंदी से आया धन सरकारी है।  आज़ादी के बाद आज किसान, कारीगर, छोटे दुकानदार, आदिवासी, एवं महिलायें इस धन के अधिकारी हैं।  इसलिए लोकविद्या समाज के घर में पक्की व नियमित आमदनी सरकारी कर्मचारी की तरह होनी होगी।  काला धन को सब में बराबर बराबर बाँटने पर ही सफ़ेद धन का मतलब निकालता है।
अतः माननीय प्रधान मंत्री जी से निवेदन है कि उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए सबकी खुशहाली के लिए सबकी नियमित आय करके किसान, कारीगर, छोटे दुकानदार, आदिवासी, एवं महिलाओं के मन की बात को लागू करें और भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) को लिखित अवगत करायें ।

निवेदक
जीतेन्द्र तिवारी ज़िला अध्यक्ष चंदौली,
सुल्तान अहमद , ज़िला मंत्री ,
दिलीप कुमार दिली वाराणसी मंडल अध्यक्ष

Wednesday, December 7, 2016

कलाकारों का आवाहन

वैजापुर, महाराष्ट्र (शिरडी के पास) में कलाकारों की ज्ञान पंचायत 
आमंत्रण/घोषणा 
21 वीं  सदी में ज्ञान के आधार पर बनाई जा रही दुनिया में लोकविद्या (समाज में बसे ज्ञान) का बेतहाशा दोहन करने की व्यवस्था बनाई जा रही है।  दुनिया भर में लोकविद्या के बल पर जीनेवालों में हाहाकार मचा हुआ है। इस हाहाकार को सत्य वाणी कौन दें ?
नीचे दी गयी कविता मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कलाकारों से हुई वार्ताओं का हिस्सा रही और उन्हें ज्ञान-पंचायतों में आने की अपील करती है।  8 से 10 फरवरी 2017 को महाराष्ट्र में शिरडी के पास वैजापुर में कलाकारों की एक बहुआयामी ज्ञान-पंचायत का आयोजन है।  इसे उसका निमंत्रण मानें।
लोकविद्या-समाज का ज्ञान-आंदोलन कलाकार-समाज को यह पुकार कर कहता है कि  ---


कलाकार!  तुम दार्शनिक!
मानवीय चेतना को ज़िंदा रखने वाले,
पाखंड को उजागर करने वाले,
मूल्यों का सतत नवीनीकरण करते, 
सत्य का निर्माण करने वाले,
कलाकार ! 
क्या आज भी लोगों के नज़दीक हो तुम ? 

हवा का झोंका पत्तों को उड़ा ले गया, 
ज्ञान-क्षेत्र में आया बवंडर तुम्हें उड़ा ले गया?  
जब विश्वविद्यालय का पक्ष-विपक्ष एक ही दिखाई दे रहे 
लोकदृष्टि का नजरिया तुम्हें ढूंढ रहा। 
कलाकार!  तुम दार्शनिक! 
क्या लोगों के नज़दीक हो तुम ?

कलाकार ! कहाँ हो तुम ?
कही अहम् को बढ़ने के मार्ग तो नहीं गढ़ रहे ?
सृजन छोड़ सृजनकर्ता के नाम के पीछे तो नहीं ?
नहीं! नहीं ! यकीं नहीं होता है। 

दर्शक को ज्ञानी मान 
उसकी प्रतिक्रिया पर गंभीर होने वाले, 
ज्ञान मार्गी तुम ,
ज्ञान को सामाजिक गुण मानने वाले,
उत्सर्ग की स्थिति को प्राप्त कर 
लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले,
कलाकार ! तुम कहाँ हो ? 

अरे... हो sss   नहीं!  नहीं !  
ओ sss  फ़क़ीर, सच कहते हो 
इस बवंडर में  
किंकर्तव्यविमूढ़ , हतप्रभ से हो 
हम भी गुड़के , गुलाटी खाये 
लेकिन, अपनी गाँठ के ज्ञान को टटोलते  
तुम्हारी हांक से नींद से जागते 
हम आ रहे...... 

सुनो, अरे,  किसानों , कारीगरों,
ओ आदिवासियों और छोटे दुकानदारों ,
और सबके परिवारों की ज्ञानी महिलाओं 
आप ही है लोकविद्या के मालिक 
और लोकहित के पारखी ,
हमारी चित्रकला, नाट्य, अभिनय, 
गीत, संगीत और लेखन को 
बेहिचक लोकहित की तराजू में तौलिये।  

सही है कि ज्ञान क्षेत्र में भूचाल आया है 
लेकिन क्या अबकी बार भी 
तुम्हारे ज्ञान संसार को समझने में 
कलाकार चूक कर रहे हैं ?
फैसला आप करेंगे ,
हम आपकी ज्ञान-पंचायत में ज़रूर आयेंगे।  

--संजीव दाजी