बुज़ुर्ग लोग कहा करते थे की हमारे समाज में धन उधार लेना बहुत बुरा माना जाता था। जो उधार के पैसे पर जीता था उसकी इज्जत गयी ऐसा माना जाता था। पूंजीवादी युग में उधार के धन पर ही राष्ट्रों की आर्थिक गतिविधियाँ चलती हैं। विकास का दारोमदार उधार की पूँजी पर ही है। उधार की पूँजी पर ठाठ से सेठों की कम्पनियाँ चलती है , व्यापार होते हैं , सरकारें चलती हैं, राष्ट्र अपना साम्राज्य फैलाते हैं और अन्याय को फ़ैलाने का तंत्र पुख्ता होता जाता है। तो लोकपक्ष में परिवर्तन चाहने वालों का मूल्य क्या होना चाहिए ?
ज्ञान पंचायत में बैठ कर कुछ लोग गा रहे थे -
"कहै लोकविद्या का स्वामी
उधार ज्ञान मत लेना, हो साधो
उधार ज्ञान मत लेना, हो सजना "
बार - बार अंतिम पंक्ति दोहरा रहे थे और उसका असर और अर्थ गहरा होता जा रहा था। न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए शायद यह मूल्य एक दिशा दे रहा है।
सारनाथ में विद्या आश्रम परिसर में ज्ञान पंचायत का एक स्थान है। यह स्थान यानि एक पांच खम्भों की मड़ई है जिसका हर खम्भा समाज के किसी एक अंग के ज्ञान का प्रतीक है। एक खम्भा किसान समाज के ज्ञान का, एक कारीगर समाज के, एक आदिवासी समाज के, एक स्त्री समाज के और एक छोटे दुकानदारों के समाज के ज्ञान का प्रतीक है। ये लोकविद्या - समाज के प्रमुख अंग हैं। ज्ञान पंचायत इन समाजों के ज्ञान की एकता का स्थान है और इनके ज्ञान का दावा पेश करने का स्थान भी। ऐसी ज्ञान पंचायतें गाँवों, जंगलों और शहर की बस्तियों में बनाने का अभियान चल पड़ा है।
आश्रम में बनी ज्ञान पंचायत पर प्रतिदिन शाम को 5 बजे लोकविद्या सत्संग होता है। इसमें माली, किसान, कारीगर, रिक्शा चालक, सब्जीवाले, छात्र, स्त्रियां आदि भाग लेते हैं। आश्रम में आये अतिथि भी कभी भागीदार होते हैं। लोकविद्या के बोल गाये जाते हैं --
'' लोकविद्या के स्वामी बोल
ज्ञान के अपने दावे ठोक "
लोकविद्या - समाज के पास खुद से अर्जित किया हुआ ज्ञान है, उधार का ज्ञान नहीं है। इसलिए वह गाता है कि ऐसी जगह ले चल जहा लोकविद्या सत्संग हो, वही हमारा अमरपुर है। अमरपुर कैसा है?
"अमरपुरी की अलबेली गलियां
अड़बड़ है चलना , अलबेली गलियां
ठोकर लगी लोकविद्या की
उघर गए नैना, उघर गए नैना , हो सजना "
अमरपुर यानि न्यायपूर्ण समाज तो समाज के अपने ज्ञान पर यानि समाज के सामान्य लोगों में बसे ज्ञान के बल पर ही निर्मित हो सकता है।
विद्या आश्रम
ज्ञान पंचायत में बैठ कर कुछ लोग गा रहे थे -
"कहै लोकविद्या का स्वामी
उधार ज्ञान मत लेना, हो साधो
उधार ज्ञान मत लेना, हो सजना "
बार - बार अंतिम पंक्ति दोहरा रहे थे और उसका असर और अर्थ गहरा होता जा रहा था। न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए शायद यह मूल्य एक दिशा दे रहा है।
सारनाथ में विद्या आश्रम परिसर में ज्ञान पंचायत का एक स्थान है। यह स्थान यानि एक पांच खम्भों की मड़ई है जिसका हर खम्भा समाज के किसी एक अंग के ज्ञान का प्रतीक है। एक खम्भा किसान समाज के ज्ञान का, एक कारीगर समाज के, एक आदिवासी समाज के, एक स्त्री समाज के और एक छोटे दुकानदारों के समाज के ज्ञान का प्रतीक है। ये लोकविद्या - समाज के प्रमुख अंग हैं। ज्ञान पंचायत इन समाजों के ज्ञान की एकता का स्थान है और इनके ज्ञान का दावा पेश करने का स्थान भी। ऐसी ज्ञान पंचायतें गाँवों, जंगलों और शहर की बस्तियों में बनाने का अभियान चल पड़ा है।
आश्रम में बनी ज्ञान पंचायत पर प्रतिदिन शाम को 5 बजे लोकविद्या सत्संग होता है। इसमें माली, किसान, कारीगर, रिक्शा चालक, सब्जीवाले, छात्र, स्त्रियां आदि भाग लेते हैं। आश्रम में आये अतिथि भी कभी भागीदार होते हैं। लोकविद्या के बोल गाये जाते हैं --
'' लोकविद्या के स्वामी बोल
ज्ञान के अपने दावे ठोक "
लोकविद्या - समाज के पास खुद से अर्जित किया हुआ ज्ञान है, उधार का ज्ञान नहीं है। इसलिए वह गाता है कि ऐसी जगह ले चल जहा लोकविद्या सत्संग हो, वही हमारा अमरपुर है। अमरपुर कैसा है?
"अमरपुरी की अलबेली गलियां
अड़बड़ है चलना , अलबेली गलियां
ठोकर लगी लोकविद्या की
उघर गए नैना, उघर गए नैना , हो सजना "
अमरपुर यानि न्यायपूर्ण समाज तो समाज के अपने ज्ञान पर यानि समाज के सामान्य लोगों में बसे ज्ञान के बल पर ही निर्मित हो सकता है।
विद्या आश्रम
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