- स्वराज समाज की रचना , संगठन और सञ्चालन का वह रूप है जो लोकविद्या पर आधारित होता है।
- पिछले 4 - 5 वर्षों से, अन्ना आंदोलन के समय से स्वराज एक राजनैतिक आदर्श के रूप में चर्चा में आया। लेकिन इसे या तो सच्चे लोकतंत्र या फिर समाजवाद के ही एक रूप जैसा व्याख्यायित किया गया।
- गांधी की स्वराज की अवधारणा से तभी रिश्ता बनता है जब हम उसके लोकविद्या के आधार को पहचानते हैं।
- देश की राजनीति तथाकथित प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष और हिन्दुत्ववादी खेमों में बँटी हुई है। दोनों का ही सन्दर्भ यूरोप और पूंजीवाद का है। लोकविद्या स्वराज गांधी की निरंतरता में एक अलग रास्ते के निर्माण का प्रयास है।
- लोकविद्या स्वराज लोकविद्या जन आंदोलन की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिकल्पनाओं की अभिव्यक्ति है।
- फ़िलहाल लोकविद्या - स्वराज आंदोलन के निम्नलिखित अंग विचारार्थ हैं जिनमें से कुछ अमल में हैं -
(i) लोकविद्या प्रतिष्ठा अभियान - ज्ञान की दुनिया में बराबरी यानि लोकविद्या आधारित कार्यों के लिए सरकारी कर्मचारी के जैसी आय।
(ii) समाज में ज्ञान पर स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संवाद
(iii) लोकविद्या समाज (किसान, कारीगर, आदिवासी, दुकानदार, महिलाएं, कलाकार) के संघर्षों में भागीदारी और उन्हें लोकविद्या स्वराज के विचारों से लैस करना।
(iv) लोकविद्या बाजार निर्माण।
(v) ज्ञान-पंचायतों का सिलसिला बनाना और ज्ञान पर विश्वविद्यालय की इजारेदारी को चुनौती देना।
(vi) लोकविद्या सत्संग - लोकविद्या गायकी के मार्फ़त बस्तियों और गाँवोँ में लोकविद्या और उससे जुड़े सामाजिक प्रश्नों पर जनता का दावा पेश करना।
(vii) कला और भाषा के क्षेत्रों में स्वराज के लिए अनुकूल मुहावरों ओ अभिव्यक्ति और संचार के रूपों को आकार देना।
सुनील सहस्रबुद्धे