विद्या आश्रम के सारनाथ परिसर पर ' लोकविद्या स्वराज ' की अवधारणा पर 2 व 3 जून को, दो दिन, सघन चिंतन हुआ। इस ज्ञान-पंचायत में हैदराबाद, इंदौर, सिंगरौली, लखनऊ और वाराणसी के लगभग 25 कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में 2011 में हुए आंदोलन ने 'स्वराज' की बात एक बार फिर सार्वजनिक पटल पर ला दी है। हालाँकि आंदोलन में बिखराव हुआ, ठहराव भी आया लेकिन परिवर्तन की विचारधाराओं, समूहों और कार्यकर्ताओं के बीच 'स्वराज ' एक विचारणीय विषय के रूप में जीवंत हो गया। सारनाथ में हुई लोकविद्या स्वराज पर हुई इस ज्ञान-पंचायत में यह चिंता दिखाई दी कि स्वराज की यह चर्चा लोकतंत्र और समाजवाद के वैचारिक घेरे में फंस गई है और इसमें से निकलने के लिए भारत की राजव्यवस्था की परम्पराओं और गांधी की वैचारिक श्रेणियों से प्रकाश लेने की ज़रूरत है।
इस सन्दर्भ में सुनील सहस्रबुद्धे ने यह बात रखी कि 'स्वराज' का ज्ञान का आधार तो लोकविद्या में ही हो सकता है। 'स्वराज' का अर्थ अच्छा लोकतंत्र या अच्छा समाजवाद नहीं हो सकता। लोकतंत्र और समाजवाद का ज्ञान-आधार साइंस में है और इसलिए इनमें लोगों की पहल तथा समाज के विभिन्न अवयवों की स्वायत्तता संकीर्ण घेरों में सिमट जाती है। किसान, कारीगर, आदिवासी, महिलाएं और छोटे दुकानदारों की सोच और तर्कबुद्धि स्वराज के विचारों से मेल खाती है, जबकि 'स्वराज' पर सोचने में पढ़े-लिखे लोगों के सामने उच्च शिक्षा कई बाधाएं खड़ी करती है। ऐसे में लोगों के ज्ञान और उनकी तरह-तरह की पंचायतें मिलकर स्वराज के पथ को प्रशस्त करें यह आज की ज़रूरत है। इस प्रक्रिया में लोकविद्या (सामान्य लोगों के पास का ज्ञान या समाज में बसने वाला ज्ञान) और पंचायतें (सामाजिक, सांस्कृतिक, कार्य-आधारित, जीविका आधारित, क्षेत्रीय, आदि) स्वराज की नयी अवधारणाओं को जन्म देंगी और इसी प्रक्रिया में खुद भी पुनर्जन्म लेंगी। लोकविद्या और विविध पंचायतों का ताना-बाना एक लोकोन्मुख समाज की व्यवस्थाओं को उदघाटित करेगा।
बैठक में इंदौर से आये संजीव दाजी ने इंदौर के मिल क्षेत्र में लोकविद्या बाजार के लिए हो रही ज्ञान-पंचायतों की विस्तार से चर्चा करते हुए लोक पहल के रूपों को सामने लाया। मराठवाड़ा के औरंगाबाद में कारीगर समाज के साथ हुई ज्ञान-पंचायतों का अनुभव भी रखा और कहा कि लोकपहल को परिपक्व होने में धैर्य से कार्य करते रहने की ज़रूरत है। सिंगरौली से आये अवधेश और लक्ष्मीचन्द दुबे ने सिंगरौली बाजार के विस्थापन के सन्दर्भ से लोकविद्या और ज्ञान-पंचायतों की प्रासंगिकता को जोड़ा और लोग किसतरह नए सिरे से स्थानीय व्यवस्थाओं पर स्थानीय लोगों के नियंत्रण की बात को सार्वजानिक बहस में ला सकते हैं यह बात रखी। वाराणसी के लक्ष्मण प्रसाद ने कहा कि किसान आंदोलन के तहत और भारतीय किसान यूनियन से जुड़ कर वाराणसी और आस-पास के जिलों में ज्ञान-पंचायतों का सिलसिला शुरू किया है। ये सिलसिला लोकविद्या और पंचायतों के नवीनीकरण का ही रास्ता खोलता है।
दिलीप कुमार 'दिली' ने कहा कि लोकतंत्र का लोकतांत्रिक विरोध करने का रास्ता बनाया जाना है जिसमें ज्ञान-ज्ञान में ऊंच-नीच नहीं हो और भाईचारे का मूल्य प्रमुख हो। किसान-कारीगर महापंचायत का आयोजन एक ऐसी शुरुआत करता है जिसमें लोकविद्या के बल पर जीविका चलानेवालों के बीच नए सम्बन्धों को गढ़ने के रास्तें खुलेंगे जो स्वराज के नए रूप को सामने लाएंगे। प्रेमलता जी और एहसान अली ने कहा कि लोकविद्याधर समाज के पास विद्या है लेकिन इसकी शक्ति की चेतना केवल ज्ञान-पंचायत के मार्फ़त फैलती है। कारीगर समाज के बीच इसे ले जाना है। हैदराबाद से आये ललित कौल ने कहा कि लोकविद्या एक राजनैतिक विचार है और इसी के बल पर दलीय राजनीति को लोकराजनीति में बदला जा सकता है। लखनऊ से आये आलोक ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में लखनऊ के अरब से आई पारम्परिक चिकित्सा और चिकित्सकों के बारे में बातें रखी और कहा कि निस्संदेह लोकविद्या के जानकारों के पास ज्ञान का बड़ा भंडार है। लखनऊ से आये राजीव ने कहा कि देश और समाज जिस कठिन दौर से गुज़र रहा है उसके विभिन्न आयामों को ध्यान में रखते हुए सभ्यता पर आये संकट को विषय बनते हुए देश के विभिन्न भागों में जाकर वार्ताएं की जानी चाहिए। 8 - 10 विचारक वक्ताओं की एक टीम जगह-जगह जाकर लोगों के बीच चिंतन की क्रियाओं को आकार दें तो आगे के रास्तें बनते दिखाई देंगे। चित्रा सहस्रबुद्धे ने सामूहिक पहल के लिए लोकविद्या और ज्ञान-पंचायतों को मज़बूत करने पर शोर दिया। बैठक में निर्मला देवरे, वंदना वाघमारे, एहसान अली, सुमेर सिंह, शेर सिंह और नीरजा ने भी अपने अनुभव साझा किये।
ज्ञान-पंचायत में औरंगाबाद, इंदौर, वाराणसी और सिंगरौली के कार्यक्रमों की तारीखें व मुद्दे तय हुए।
ज्ञान-पंचायत की शुरुआत और समापन लोकविद्या के बोल और गायकी से हुई।
विद्या आश्रम
दिलीप कुमार 'दिली' ने कहा कि लोकतंत्र का लोकतांत्रिक विरोध करने का रास्ता बनाया जाना है जिसमें ज्ञान-ज्ञान में ऊंच-नीच नहीं हो और भाईचारे का मूल्य प्रमुख हो। किसान-कारीगर महापंचायत का आयोजन एक ऐसी शुरुआत करता है जिसमें लोकविद्या के बल पर जीविका चलानेवालों के बीच नए सम्बन्धों को गढ़ने के रास्तें खुलेंगे जो स्वराज के नए रूप को सामने लाएंगे। प्रेमलता जी और एहसान अली ने कहा कि लोकविद्याधर समाज के पास विद्या है लेकिन इसकी शक्ति की चेतना केवल ज्ञान-पंचायत के मार्फ़त फैलती है। कारीगर समाज के बीच इसे ले जाना है। हैदराबाद से आये ललित कौल ने कहा कि लोकविद्या एक राजनैतिक विचार है और इसी के बल पर दलीय राजनीति को लोकराजनीति में बदला जा सकता है। लखनऊ से आये आलोक ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में लखनऊ के अरब से आई पारम्परिक चिकित्सा और चिकित्सकों के बारे में बातें रखी और कहा कि निस्संदेह लोकविद्या के जानकारों के पास ज्ञान का बड़ा भंडार है। लखनऊ से आये राजीव ने कहा कि देश और समाज जिस कठिन दौर से गुज़र रहा है उसके विभिन्न आयामों को ध्यान में रखते हुए सभ्यता पर आये संकट को विषय बनते हुए देश के विभिन्न भागों में जाकर वार्ताएं की जानी चाहिए। 8 - 10 विचारक वक्ताओं की एक टीम जगह-जगह जाकर लोगों के बीच चिंतन की क्रियाओं को आकार दें तो आगे के रास्तें बनते दिखाई देंगे। चित्रा सहस्रबुद्धे ने सामूहिक पहल के लिए लोकविद्या और ज्ञान-पंचायतों को मज़बूत करने पर शोर दिया। बैठक में निर्मला देवरे, वंदना वाघमारे, एहसान अली, सुमेर सिंह, शेर सिंह और नीरजा ने भी अपने अनुभव साझा किये।
ज्ञान-पंचायत में औरंगाबाद, इंदौर, वाराणसी और सिंगरौली के कार्यक्रमों की तारीखें व मुद्दे तय हुए।
ज्ञान-पंचायत की शुरुआत और समापन लोकविद्या के बोल और गायकी से हुई।
विद्या आश्रम