हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 1 अगस्त 2018 को विद्या आश्रम का स्थापना दिवस मनाया
गया. स्थापना दिवस के अवसर पर एक कारीगर ज्ञान-पंचायत का आयोजन हुआ. ज्ञान-पंचायत
में विषय था ‘केवल श्रम का नहीं ज्ञान का भी मूल्य चाहिए’. यह अलग से
रोज़गार की मांग का सवाल नहीं है, कहा यह जा रहा है कि तमाम कारीगर जो काम कर रहे
हैं उस काम को केवल मज़दूरी नहीं बल्कि ज्ञानपूर्ण काम माना जाये और मेहनत के साथ उनके
ज्ञान का भी मूल्य दिया जाये, ठीक वैसे ही जैसे किसी विश्वविद्यालय से पढ़े व्यक्ति
को दिया जाता है. बहुत जायज़ बात कही जा रही है और बेहद सरल शब्दों में इसके पक्ष
में तर्क भी रखे जा सकते है. इस बात को अगर समाज और देश का नेतृत्व नहीं सोच पा
रहा है, तो हम समझते हैं कि या तो वे इसे नही करना चाहते अथवा वे सोच ही नहीं पाते हैं कि सभी का ज्ञान और आय एक सी प्रतिष्ठा के अधिकारी होते हैं.
इस ज्ञान-पंचायत में अधिकांश सामाजिक कार्यकर्त्ता और कारीगर समाज के लोग थे. वाराणसी
के तीन सामाजिक कार्यकर्ता मुख्य वक्ता के रूप में बुलाये गए थे – चौधरी राजेन्द्र,
डा. अनूप श्रमिक और फ़ज़लुर्रहमान अंसारी (आलम भाई).
पंचायत में बोलते हुए फजलुर्रहमान अंसारी (आलम भाई)
डा. अनूप श्रमिक अपनी बात रखते हुए
चौधरी राजेंद्र बोलते हुए
सुरेश जी, वनवासी बस्ती, सारनाथ से
ज्ञान-पंचायत की शुरुआत लोकविद्या गायकी के साथ हुई. सर्वेंदु व उनके साथी,
लालबाबू, मु. अलीम हाशमी, फ़िरोज़ खान, कमलेश भारद्वाज, लक्ष्मण प्रसाद और बबलू ने
गायकी की अगुवाई की.
विद्या आश्रम की समन्वयक चित्रा सहस्रबुद्धे ने थोड़े में यह बताया कि 2004 में
आश्रम की स्थापना में तरह-तरह के वैचारिक रुझान के लोग रहे और कारीगर-समाज के अलग-अलग हुनर के लोग सक्रिय सहयोगी रहे. आश्रम के विचार में ज्ञान का सवाल शुरू
से रहा है. आश्रम से समाज में यह दावा खड़ा करने के लिए तरह-तरह के कार्य किये गए
कि सामान्य लोगों के पास भी ज्ञान (लोकविद्या) होता है जो किसी भी अर्थ में विश्वविद्यालय
के ज्ञान से कम दर्जे का नहीं होता. इसके अलावा ज्ञान-पंचायत की प्रक्रिया सबके
सामने रखी गई जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सभी उपस्थित लोगों के ज्ञान को
बराबर का दर्जा दिया जाता है.
आलम भाई ने कहा कि कारीगर के पास ज्ञान होता है और कारीगर-समाज को कोई रियायत
या सब्सिडी नहीं चाहिए. उन्हें उनके ज्ञान और श्रम का पूरा मूल्य मिले अर्थात
उन्हें भी सरकारी कर्मचारी के जैसी आय होनी चाहिए. डा. अनूप श्रमिक ने सफाई कर्मी
जातियों की स्थिति और महिलाओं के ज्ञान के प्रकार और उसकी ताकत पर प्रकाश डाला. कानून
और योजनाओं की चर्चा करते हुए डीग्रीधारी और गैर-डीग्रीधारी लोगो के बीच अंतर को
सामने रखा. चौधरी राजेंद्र ने आदिवासी और ग्रामीण समाजों के ज्ञान और मूल्यों से सीख लेने की बात रखी. अगरिया
जनजाति द्वारा किये जा रहे पारंपरिक लौह आगलन के उदहारण के साथ उन्होंने आदिवासी
ज्ञान की श्रेष्ठता को सामने रखा और कहा की सरकारी नीतियों ने ऐसे ज्ञानियों को गरीब
बना दिया.
ज्ञान-पंचायत की चर्चा में कई लोगों ने भाग लिया. वक्ताओं ने ज्ञान की दुनिया,
उसकी बनावट, उसके अन्दर की ऊँच-नीच, जातियों में उसका बंटवारा, शिक्षित लोगों की
सीमाएं, सरकारों का रुख, किसान-कारीगर-आदिवासी-ठेलापटरी के व्यवसाइयों तथा महिलाओं
के ज्ञान के प्रकार और उसकी ताकत पर प्रकाश डाला. ये संदेह भी उभर कर आये कि कहीं लोकविद्या
की प्रतिष्ठा से जातियों से बना वर्तमान सामाजिक संगठन और मज़बूत तो नहीं होगा?
सारनाथ में वनवासियों की एक छोटी-सी बस्ती हैं. इस बस्ती के लोग पहले जंगल से
खदेड़े गए और अपने ज्ञान के इस्तेमाल से बिछड़े ये अब मजदूरी करते हैं. पंचायत में
इस बस्ती से आये सुरेश जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि उनकी बस्ती को प्रशासन कई
बार बेदखल करने के बाद अब फिर से बेदखल करने जा रहा है. सवाल यह है कि ज्ञानियों
के साथ सरकारों की यह बेरुखी और गैर-जिम्मेदारी से निपटने का क्या मार्ग हैं? पंचायत में इस समाज के लिए मदद की अपील कि गई.
रामजनम भाई ने जोर देकर कहा कि कारीगर-समाज को उनके ज्ञान का मूल्य मिलना ही
चाहिए. आज विश्वविद्यालयों में लूटेरों के हित में शोध हो रहे हैं और कारीगरों के
ज्ञान को वे ख़ारिज कर रहे हैं.
भाई एहसान अली ने कहा कि कारीगर को एक सरकारी कर्मचारी के जैसी ही आय हो यह एक
बहुत जायज़ बात है और इसके लिए कारीगर-समाज एकजुट हो तो यह बात मनवाना कोई मुश्किल
काम भी नहीं होगा.
जागृति जी ने लोकविद्या को सहज ज्ञान के रूप में देखा और इसे प्रकृति की
नजदीकी तथा उसके साथ तालमेल में देखा. यह भी कि सरकारी बनाम गैर-सरकारी तंत्र में
लोगों को बाँटने और लड़ाने वाला यह तंत्र बदलना होगा. कारीगरों को उनके ज्ञान का मूल्य
मिलना चाहिए.
साथी महेंद्र प्रताप मौर्य ने कारीगर-समाज के ज्ञान को उच्च दर्जे का ज्ञान बताते हुए यह
कहा कि ज्ञान में ऊँच-नीच नहीं होनी चाहिए और आज सामाजिक विषमता को मिटाने के लिए
यह मांग मजबूती से उठाई जानी चाहिए कि हर कारीगर के ज्ञान को सरकारी कर्मचारी के
बराबर की आय हो.
शिवपूजन जी ने इस बात पर जोर दिया कि जातियां ख़त्म होनी चाहिए और कारीगर के ज्ञान
को सरकारी कर्मचारी के बराबर मूल्य मिलना चाहिए.
पंचायत का सञ्चालन करते हुए लक्ष्मण भाई ने कहा कि आज केवल पुराने ब्राह्मणवाद
के खिलाफ बात करने से कुछ नहीं होगा. एक उच्च शिक्षित लोगों का जो नया ब्राह्मणवाद
उभर आया है वह सामाजिक विषमता का एक मज़बूत खम्भा बन गया है. पुराने और नए
ब्राह्मणवाद से एकसाथ मोर्चा लेने का तरीका लोकविद्या की प्रतिष्ठा से निकलता है. लोकविद्या
प्रतिष्ठा का पहला कदम इस बात को समाज और नेतृत्व से मनवाने में है कि लोकविद्या
के स्वामी कारीगर-समाज को सरकारी कर्मचारी के बराबर आय हो.
विद्या आश्रम के अध्यक्ष सुनील जी ने कहा कि कारीगर समाज की ज्ञान परम्परा को
याद करें, कबीर साहब, संत रैदास, गाडगे महाराज, महात्मा फुले आदि संतों से प्रेरणा लें. यह समझना होगा कि आज़ादी
के बाद पुराने और नए ब्राह्मणवाद ( उच्च शिक्षित) के बीच समझौता हो गया है जिसके
चलते सामाजिक असमानताएं बड़े पैमाने पर पुख्ता हुई हैं. संसदीय लोकतंत्र इस समझौते
का नेतृत्व करता है. यही कारण है कि 80 साल की आज़ादी के बाद भी परिवर्तन के लिए
उच्च शिक्षा तथा संसदीय लोकतंत्र की ओर देखना बेमानी हो गया है. सुनीलजी ने इस
ज्ञान-पंचायत में सीधे यह बात विचार के लिए रखी कि क्या सामाजिक न्याय और स्वराज
के विचार संयुक्त रूप से सामाजिक असमानताओं से मुकाबले का नया विचार दे सकते हैं? श्रम
के साथ ज्ञान का भी मूल्य हो यह बात इन दोनों विचारों को एक साथ आने का मार्ग खोलती है.
पहल की दिशा पर सुनील जी
ज्ञान-पंचायत का सञ्चालन करते हुए लक्ष्मण प्रसाद
अंत में प्रेमलता जी ने ज्ञान-पंचायत की आयोजन समिति की ओर से पंचायत में हुई
चर्चा पर आगे चिंतन को बढ़ाने और इसे समाज के बीच ले जाने की बात कही और ज्ञान-पंचायत
में भागीदार सभी लोगों को और व्यवस्था करने वाले साथियों, प्रभावती देवी, अंजू देवी, पप्पू सोनकर, मल्लू पुल्धाने भलाऊ, सचानु मानव, भागमती देवी, राजेंद्र मिस्त्री, को धन्यवाद दिया.
फिर सभी ने साथ बैठकर जलपान किया. पानी बरस रहा था इसलिए लोग थोड़ी देर रुके रहे. इसके चलते
आपस में बातचीत के लिए कुछ और समय मिल गया.
स्थापना दिवस की पूर्व संध्या, यानि 31 जुलाई 2018 को आश्रम पर प्रेमचंद जयंती मनाई गई. इस अवसर पर आश्रम के सामने स्थित चिंतन ढाबा पर बैठकर उनकी कहानी 'मंत्र' का पाठ हुआ। पाठ के बाद कहानी पर चर्चा हुई जिसमें सभी ने भाग लिया। कहानी के एक पात्र डा. चड्ढा आधुनिक विद्या का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो दूसरे मुख्य पात्र, भगत लोकविद्या का। डाक्टर साहब अपनी विद्या के दम्भ में संवेदना और कर्त्तव्य से बहुत दूर चले जाते हैं। दूसरी तरफ लोकविद्या के धनी भगत को तमाम कटु भावों के बीच किस तरह लोकविद्या नैतिक कर्त्तव्य की ओर खींच ले जाती है, इस संघर्ष को प्रेमचंद जी ने बखूबी इस कहानी में उकेरा है। कहानी के पाठ के पहले चिंतन ढाबा पर दो पेड़ों का पौधारोपण हुआ और लोकविद्या के बोल का गायन हुआ।
मंत्र कहानी का लिंक http://premchand.kahaani.org/…/blog-post_114178929605087256…
विद्या आश्रम