Sunday, August 4, 2019

विद्या आश्रम स्थापना दिवस समारोह की एक झलक,1 अगस्त 2019

विद्या आश्रम परिसर पर 1 अगस्त को आश्रम का स्थापना दिवस मनाया गया. विद्या आश्रम की स्थापना 1 अगस्त 2004 को हुई थी. इस अवसर पर प्रमुखतः तीन कार्य हुए.
  1. 'लोकविद्या-समाज के नौजवानों का भविष्य'  विषय पर लोकविद्या-समाज के संगठनकर्ता और युवाओं ने अपने विचार रखे. अध्यक्ष मण्डल में शामिल थे - ग्राम लेढूपुर के कन्हैयालाल (कुआँ बनाने के कारीगर),  ग्राम मोहाव के बचाऊ (किसान), पीली कोठी के एह्सान अली (बुनकर), श्रीमती प्रेमलता सिंह (लोकविद्या जन आन्दोलन ) और अरुण जी  (वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता). वक्ताओं में  ठेला-पटरी संघर्ष समिति के प्रेमशंकर सोनकर, माँ गंगा निषाद समिति के हरिश्चंद्र बिंद, पांडेपुर से गोपाल ( कंप्यूटर हार्डवेयर कारीगर),  ग्राम सराय मोहना से आरती कुमारी (बुनकर की बेटी), सलारपुर से अजय कुमार मौर्य (इलेक्ट्रिक सामानों के कारीगर ) , कोनिया से गुलज़ार भाई (बुनकर), सारनाथ से जयप्रकाश (इन्वर्टर के कारीगर), ग्राम भैंसोडी से प्रमेश (शिक्षक) ने अपनी बात रखी. सामाजिक कार्यकर्ताओं में स्वराज अभियान के रामजनम, पर्यावरण प्रदूषण के खिलाफ काम कर रहे रवि शेखर और सानिया, कारीगर नज़रिया से फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, लोकविद्या आन्दोलन से लक्ष्मण प्रसाद ने अपनी बात रखी. भागीदारों में मकबूल अहमद , आनंद प्रकाश, आदि ने मुद्दे का समर्थन करते हुए अपने विचार रखे. सुनीलजी ने लोकविद्या के गूढ़ अर्थों और लोकविद्या के कार्यकर्ताओं की वैचारिक और तकनीकी क्षमताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोकविद्या-समाज के नौजवानों का भविष्य उन्हीं के हाथ में है. बस, यह याद रखना ज़रूरी है कि लोकविद्या-समाज का भविष्य और उस समाज के नौजवानों का भविष्य एक ही है. यही बात इसमें भी स्पष्ट होती है, जब हम ये कहते हैं कि लोकविद्या के जरिये अपनी जीविका चलाने वाले के परिवार में वैसी ही आय आणि चाहिए जैसी एक सरकारी कर्मचारी की होती है. अंत में अध्यक्ष मण्डल में एहसान अली ने कहा कि लोकविद्या-समाज को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सभी तरह से सरकारें समय-समय पर प्रताड़ित करती हैं. इससे उबरने के लिए लोकविद्या आन्दोलन का विचार और मांग पर व्यापक जनमत बनाना ज़रूरी है. प्रेमलताजी ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ किया जिसे हम अगले पोस्ट में  प्रकाशित कर रहे हैं. अरुणजी ने एक कविता गा कर सुनाई.


             विमर्श की शुरुआत लोकविद्या के बोल गाकर हुई. 
और फिर ' लोकविद्या-समाज के नौजवानों का भविष्य ' पर विमर्श 


2. विद्या आश्रम में नई बनायी  गई रसोई का उदघाटन किया गया. उद्घाटन में यह कहा गया कि यह रसोई लोकविद्या-समाजों की रसोई समृद्ध रहे इसकी प्रतीक बने. चित्राजी ने कहा कि विद्या आश्रम लोकविद्या-समाज के लोगों के लिए चिंतन-मनन, संकल्प और रचना का स्थान है. यह किसान, कारीगर, आदिवासी, सेवा कार्य  करने वाले, ठेले-पटरी के दुकानदार, मजदूरआदि समाजों की बेहतरी, खुशहाली और न्याय के लिए विचार व वार्ता का स्थान है. आश्रम रसोई के आलावा परिसर पर एक कला कक्ष का निर्माण भी हो रहा है, जहाँ कला का अभ्यास, सृजन, प्रस्तुति और उस से सम्बंधित दर्शन वार्ता होगी. एक अतिथि कक्ष का भी निर्माण हो रहा है.


 रसोई घर के निर्माता मिस्त्री मुन्नालाल वर्मा और उनके सहयोगी ब्रिजेश कुमार और रोहित कुमार ने दीप जला कर रसोई का उदघाटन किया 


      रसोई के उद्घाटन पर एक तरफ भागीदार और 
         दूसरी ओर विद्या आश्रम के कार्यकर्त्ता            


विद्या आश्रम की व्यवस्थापिका श्रीमती प्रभावती देवी (अन्नपूर्णा) और 
उनके पति श्री मल्लू का सम्मान करते हुए आश्रम के व्यवस्थापक 
फिरोज खान और लोकविद्या जन आन्दोलन की प्रेमलता सिंह.

3. लोकविद्या को ज्ञान का दर्जा और सरकारी कर्मचारी के बराबर मूल्य हासिल होना चाहिए इसके लिए विचार-समझ और रचना पर वार्ता को चलाने की आवश्यकता को देखते हुए युवाओं का एक समूह बनाने का निर्णय लिया गया. इसके लिए एक समूह भी बनाया गया, जिसमें शामिल हैं-- लक्ष्मण प्रसाद, फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, राम जनम, एकता, प्रमेश और आरती.   



सामूहिक भोजन

 भोजन के बाद प्रभावती जी के नेतृत्व में                         निमिता, फिरदौस और यस्मिन ने बनाई रंगोली 
भोजन बनाने वाली बहनों से हास-परिहास   

विद्या आश्रम 








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