ज्ञान पंचायत
शनिवार, 31 अक्तूबर 2020, विद्या आश्रम, सारनाथ
कल अश्विन पूर्णिमा के दिन विद्या आश्रम पर ‘बिरादरियों का आत्मसम्मान और राजनीतिक दर्शन’ इस विषय पर एक ज्ञान पंचायत हुई. लगभग 50 की उपस्थिति रही. कई लोगों ने कहा कि विषय अलग किस्म का है और इस पर उन्होंने पहले से बहुत सोचा हो ऐसा नहीं है. पंचायत ठीक-ठाक ही हुई. बोलने वालों में तुलनात्मक दृष्टि से युवा काफी थे और जो सैद्धांतिक बातें हुईं भी वे बिरादरियों की गति और वर्तमान राजनैतिक परिदृष्य के सन्दर्भ में ही हुई.
विद्या आश्रम की समन्वयक चित्रा सहस्रबुद्धे ने विषय प्रवेश कराया जिसमें उन्होंने
कहा कि आत्म सम्मान अथवा गौरव को जब तक बिरादरियों के ज्ञान में अवस्थित नहीं किया
जायेगा तब तक वह अस्थाई होगा और राजनीतिक दर्शन के स्तर पर विचार को गति दे सकें
ऐसा शायद न हो पाए. उसके बाद जैसा कि पहले से घोषित था सुनील कश्यप, अभिषेक तिवारी
और लक्ष्मण प्रसाद ने शुरू में अपनी-अपनी बात कही और उसके बाद और लोगों ने अपने
विचार रखे.
जबकि यह बात सबको मान्य थी कि आत्मसम्मान, समाज में सम्मान और गौरवमय इतिहास यह सब आपस में जुड़ा हुआ है और गरीब जनता के लिए समाज में सम्मानजनक स्थान हो इसके लिए जरुरी भी है. और इससे जुड़ी हुई राजनीति का विकास भी होना चाहिए. कुछ लोगों ने इस और ध्यान खींचा कि बिरादरियों के ही कुछ लोग इसका फायदा उठा कर राजनीति में अपने लिए जगह बनाते हैं और बाकी लोगों को पीछे छोड़ देते हैं, जो अवांछनीय है और गलत राजनीति को बढ़ावा देता है. तमाम बिरादरियों में अपने गौरव को आधार बनाकर सेनाएं बनी हैं जो कभी आत्मरक्षा तो कभी दूसरे पर हमला करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. इन सेनाओं का नेतृत्व भी असामाजिक होता है. यह भी गौरव पर आधारित राजनीति को गलत दिशा में ले जाता है. यह बात सामने आई कि जाति का जो इतिहास लिखा और पढाया जाता है वह उसे एक सर्वथा स्थिर और बंधी हुई सामाजिक संरचना के रूप में पेश करता है तथा यह कि जातियां हमेशा से ही गतिशील रही हैं और अपने मूल्यों और अपने ज्ञान के जरिये समाज को अपना योगदान कराती रही हैं. जबकि यह बात सच है कि जातियां आज कट्टर ऊँच-नीच का शिकार हैं. यह अवश्य अध्ययन और चिंतन का विषय है कि ऐसी कट्टर ऊँच-नीच कब से और किन रूपों में रही है. यह भी कहा गया कि बिरादरियों के बीच ऊँच-नीच और उनके आत्म सम्मान और गौरव दोनों को उचित स्थान देते हुए उनके ज्ञान और मूल्यों को आधार बनाते हुए इस राजनीतिक दर्शन पर चिंतन ज़रूरी है जो एक नई राजनीति के द्वार खोले. अगर हम सम्मान और गौरव, इसका इतिहास और वर्तमान को सीधे राजनीति से जोड़ना चाहेंगे तो वह मोटे तौर पर वर्तमान राजनीति की सेवा में ही चला जाएगा, जैसा होते हुए देखा भी जा रहा है. आत्म सम्मान और गौरव और राजनीति को आपस में जोड़ने की कड़ी राजनीतिक दर्शन में है. अगर इसे अनदेखा किया गया तो समाज हित का राजनीतिक दखल नहीं तैयार हो पायेगा.
राहुल राजभर बिरादरियों की वर्तमान गतिशीलता के बारे में बोलते हुए
हरिश्चंद्र बिंद, नंदलाल. मोहम्मद अहमद, सुरेश वनवासी, राहुल राज, राम धीरज गुप्ताजी, चौधरी राजेन्द्र, महेंद्र प्रताप मौर्य, राम जनम और सुनील सहस्रबुद्धे ने ज्ञान पंचायत में अपने विचार रखे. ज्ञान पंचायत में इस बार अश्विन पूर्णिमा 31 अक्तूबर को पड़ी. अक्तूबर की 31 तारीख़ सरदार वल्लभ भाई पटेल, आचार्य नरेंद्र देव और आदि कवि वाल्मीकि की जयंती है. इसी दिन देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हुई थी, यह उनकी शहादत का दिन भी है. अलग-अलग वक्ताओं ने अपने वक्तव्यों में इनका ज़िक्र किया. ज्ञान पंचायत की शुरुआत युद्धेश के जनगीतों और लोकविद्या के बोल से हुई.
अंत में सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है की इस बात को जब हम आगे बढ़ाएंगे तो इस ज्ञान पंचायत में उपस्थित युवाओं में कुछ ऐसे अवश्य हैं, जो बिरादरियों के मान सम्मान से जुड़े राजनैतिक दर्शन पर कुछ आगे की बात करेंगे. इसके बाद सभी ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया.
विद्या आश्रम