Tuesday, August 3, 2021

Vidya Ashram Foundation Day -1st August

Gyan Panchayat on the future of the country with focus on the farmers' movement.

The foundation Day of Vidya Ashram was celebrated in Sarnath campus on 1st August 2021.The Ashram was started on this day in 2004. About 25 persons closely associated with the Ashram were  present. It was a gyan panchayat. The subject was constituted of a cluster of ideas, namely farmers' movement, swaraj and nyay, tyag and bhaichara (न्याय, त्याग और भाईचारा).

It began with a brief statement on how the Ashram came into existence, then the coordinator, Chitraji, opened the dialogue in the context of the knowledge claim of ordinary people, particularly farmers. Senior socialist Vijay Narayan Singh made a substantive statement that farmers' movement has brought into public debate, once again from a fresh and new end, the idea and practice of lok-sanskriti, lokagyan, lokabhaasha , lokasmriti, lokahit, and lokneeti. He said that it was after a long time that the systems built by the government and the capitalists of this country are under a challenge. The  movement is pushing the frontiers of politics to move into more pro-people domain. Ramjanam of Swaraj Abhiyaan attempted to connect with swaraj the three fold values of nyay, tyag and bhaichara and said that the forces and initiatives unleashed by this farmers' movement seem to herald a new age. Another senior member of the Ashram Premlata Singh tried to show that if you  see through a lokavidya window you will see a long struggle. 

She said that we are on firm ground when we include the knowledge claims of the lokavidya samaj in our basic argument. The farmers' movement is saying that it will not allow roti (food) to be imprisoned by the moneybags, farmers too know how to run a parliament and that there is no scope for doubting farmers' knowledge of agriculture and society. This movement is an intervention with a big claim in the areas of economics, politics and knowledge. She said, just focus on the three demands and these things will be clear. Most participants made statements that were worth listening to and which showed the capacity of the social activists to build new ideas, understand them and explain them. The list of those who spoke is long enough- Laksman prasad, Ehasaan Ali, Vinod Kumar, Shivmoorat mastersahab , Parmita, Raman Pant, Praval Kumar Singh, Mohammad Ahamad, Fazalurrahamaan Ansari, Abhishek and Yuddhesh. 


In the end Sunil Sahasrabudhey said a few words on nyay, tyag and bhaichara. He said that  justice and rationality become one in the swadeshi tradition of nyay. Arguments that are contrary to justice are not acceptable in ordinary life. The educated is an isolated group in this matter because they separate reason from justice. The farmers do not. The ordinary meaning of tyag is that you  give back to society more than what society gives you or you take from it. In this lie the sources of both progress and well being. Bhaichara is not just about our dispositions. It must be integrated in the physical arrangements that govern things and men/women. Property ownership, relations of property, health-care, merit, reservation, in these and many other, bhaichara has meaning and relevance which must be taken into account while making policies governing these domains. We need to make efforts to understand the message of the farmers' movement. We may find the three values of nyay, tyag and bhaaichara right there.

The gyan-panchayat was concluded with the presidential address of the senior Gandhian Arun Kumar. Then we all had samosa and haluaa as prasad.  

Vidya Asram


विद्या आश्रम का स्थापना दिवस - 1 अगस्त

किसान आन्दोलन के मद्देनज़र देश के भविष्य पर ज्ञान पंचायत

कल 1 अगस्त 2021 को दोपहर में विद्या आश्रम सारनाथ में आश्रम का स्थापना दिवस मनाया गया. आश्रम से नज़दीक से जुड़े करीब 25 लोग उपस्थित थे. ज्ञान पंचायत का मुख्य विषय किसान आन्दोलन, स्वराज व न्याय, त्याग और भाईचारा के बिन्दुओं के इर्द-गिर्द वर्तमान परिस्थितियों में अपनी बात रखने का था.

शुरू में आश्रम की स्थापना के बारे में थोडा सा बताया गया फिर आश्रम की समन्वयक चित्राजी ने विषय को सामान्य आदमी विशेष कर किसान के ज्ञान के दावे के सम्बन्ध में खोलकर रखा. हम सबके वरिष्ठ सहयोगी विजय नारायणजी उपस्थित थे. उन्होंने यह कहा कि किसान आन्दोलन एक नए सिरे से और ज़बरदस्त ढंग से एक बार फिर लोक-संस्कृति, लोकज्ञान, लोकभाषा, लोकस्मृति, लोकहित और लोकनीति जैसे विचारों को सार्वजनिक पटल पर ला रहा है. यह आन्दोलन लम्बे समय बाद शासन और पूंजीपतियों की व्यवस्था को बड़ी चुनौती पेश कर रहा है और एक नई राजनीति की ओर बढ़ने का आग्रह कर रहा है. रामजनम भाई ने स्वराज के साथ इन नए तिहरे मूल्यों न्याय, त्याग और भाईचाराको जोड़ा और किसान आन्दोलन की शक्तियों में एक नये युग के उद्घाटन की संभावना बताई. अधिकांश लोगों के वक्तव्य सुनाने लायक थे और सामाजिक कार्यकर्ताओं की नए विचारों को बनाने, समझने और समझाने की ताकत को दर्शाते थे. प्रेमलता सिंह ने लोकविद्या के साथ जोड़कर अपनी बात रखी और यह दिखाया कि लोकविद्या के दृष्टिकोण से देखने पर आसानी से यह देखा जा सकता है कि यह लड़ाई लम्बी है. ज्ञान के दावे के बगैर हमारे कदम सुदृढ़ नहीं हो पाते और यह दावा किसान आन्दोलन पेश कर रहा है. कह रहा है कि रोटी तो हम तिजोरी में नहीं बंद होने देंगे’, ‘संसद चलाना हमें भी आता हैऔर खेती-किसानी और अपने समाज के हमारे ज्ञान पर संदेह की तो कोई गुंजाईश ही नहीं है. यह अर्थ, राजनीति और ज्ञान के क्षेत्र में एक बड़े दावे के साथ दखल का आन्दोलन है. उनकी तीन मांगों पर ध्यान केन्द्रित कीजिये सब साफ़ हो जायेगा. अब सबकी बात क्या बताएं वक्ताओं की फेहरिस्त यह है: लक्ष्मण प्रसाद, एहसान अली, विनोद कुमार, शिवमूरत मास्टर साहब, पारमिता, प्रोफ़ेसर रमण पन्त, प्रवाल कुमार सिंह, मोहमद अहमद, फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, अभिषेक और युद्धेश.

अंत में सुनील सहस्रबुद्धे ने न्याय, त्याग और भाईचारा के मूल्यों के भौतिक व्यवस्थाओं के साथ आवश्यक संबंधों की व्याख्या की. एकदम छोटे में यह कि स्वदेशी परंपरा में न्याय में न्याय और तर्क दोनों समाहित होता है. जिस तर्क में न्याय नहीं है उसे हमारा जनमानस स्वीकार नहीं करता, पढ़े-लिखे लोगों की बात अलग है. पढ़े-लिखे लोग दोनों को अलग-अलग करके देखते हैं, किसान नहीं. त्याग का सामान्य अर्थ यह है कि आप जितना समाज से लेते हैं उससे अधिक समाज को वापस देते हैं. इसी में खुशहाली और प्रगति दोनों के सूत्र है. भाईचारा केवल मनोभाव की बात नहीं है. समाज की व्यवस्थाओं में यह एकीकृत होना चाहिए. संपत्ति का मालिकाना, संपत्ति के सम्बन्ध, शिक्षा, स्वास्थ्य, मेरिट, आरक्षण हर क्षेत्र में भाईचारे का एक अर्थ होता है जिसके हिसाब से नीतियां बननी चाहिए. किसान आन्दोलन जो इबारत लिख रहा है उसे पढने का प्रयास करना होगा. ये तीन मूल्य वहां दिखाई देंगे - न्याय, त्याग और भाईचारा.

पुराने वरिष्ठ साथी श्री अरुण कुमार के अध्यक्षीय संबोधन के साथ ज्ञान पंचायत का समापन हुआ. फिर सबने समोसा और हलुआ का प्रसाद ग्रहण किया.

विद्या आश्रम


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