गरीब हूँ, इंसान
हूँ, जानवर नहीं
मैं गरीब हूँ, मेरा परिवार गरीब है , यह मैं जानता हूँ ! दुःख की बात यह है कि मेरी ग़ुरबत पर
पिछले 70 सालों से सियासत की जा रही है ! इन सियासतदानों से मैं यह कहना चाहता हूँ
कि मैं दिमाग से, हुनर से और विद्या से गरीब नहीं हूँ, अपितु धन से गरीब हूँ! धन
से गरीब होते हुए भी मैं भिखारी या बेईमान नहीं हूँ , ऐसा मेरा चरित्र है
अन्य राजनीतिक दलों के नेता और उनकी बनायी गयी सरकारें
मुझसे यह वादा करते आये हैं कि वह मेरे लिए योजनायें बनायेगे जिनके मुताबिक मुझे
मकान, पानी, बिजली और सड़कों जैसी सुविधाएं प्राप्त होंगी ! यह एक तरीका है मुझे
मेरी ग़ुरबत का एहसास दिलाने के लिए! चलिए अच्छा है!
लेकिन क्या मुझ में गैरत नहीं ? क्या मैं अपने फैसले खुद
नहीं कर सकता? क्या मैं खुद की जिंदगी अपने तरीके से नहीं जी सकता ? मैं कोई
कठपुतली तो नहीं जो सूत्रधार के इशारों पर नाचूँ ; कोई पालतू नहीं कि जो मुझे दिया
जाये मैं उसे स्वीकार करूँ ! मुझे मकान देंगे, बिना मुझसे पूछे कि मेरे परिवार की
जरूरतें क्या हैं ? या फिर मैं कैसे मकान में रहना चाहता हूँ ; बिजली पानी की
मात्रा भी मेरे ठेकेदार ही तय करेंगे ; सडकें मुझ तक इसलिए पहुंचायी जायेंगी ताकि
मैं दूर-दूर के इलाकों में मजदूरी के अवसर
तलाश करूँ ! मुझे गरीब बना कर सब मेरे
हमदर्द बने फिरते हैं ! मुझे हमदर्दी नहीं चाहिए मुझे मेरे हुनर मेरी विद्या के
लिए मान्यता चाहिए ! मेरे देश का संविधान कहता है कि मुझे जीने का हक है लेकिन
मेरी जिंदगी तो कोई और तय करता है ! ऐसे
जीने के हक का मै क्या करूँ जब
मुझको मेरी मानसिक क्षमताओं से बेदखल कर दिया गया है और इस कारणवश मै समाज की
प्रगति मे योगदान करने से सदैव वंचित रहा
हूँ ! जब तक मै अपनी मानसिक क्षमताओं के बल पर निजी जिंदगी का मार्ग तै नहीं कर
पाता तब तक ‘ जीने का हक ‘ निरर्थक है और मात्र नारेबाजी है !
मेरी सोच, मेरी समझ और मेरे अनुभवों को अंधविश्वास माना गया है लेकिन मेरी समझ में वह सब से बड़े असत्यधर्मी हैं, जो विभिन्न प्रकार की सोच, समझ और अनुभव को सिरे से ख़ारिज करते हैं ! ऐसी मानसिकता प्रकृति के स्वरुप के खिलाफ है और जो कुछ भी प्रकृति के खिलाफ है असत्य है !
आधुनिक सभ्यता की नींव शोषण पर टिकी है ; एक छोटा सा वर्ग एक बड़े बहुमत का शोषण करना निजी अधिकार समझता है और इस सभ्यता से जुड़ी संस्थाएं उन्हीं के हित में काम करती हैं ! आधुनिक सभ्यता के निज़ाम ने मेरी विद्या को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वह शोषण करने का जरिया नहीं बन सकती ! मेरी विद्या मुझे आत्मनिर्भर बनाती है इसलिए मुझे नौकरी की तलाश नहीं रहती जबकि मान्यता प्राप्त विद्या हासिल करने के पश्चात नौकरियों की तलाश रहती है. और नौकरी का मतलब : किसी और की सोच और समझ लागू करने का काम करना, और यहाँ से शोषण और भ्रष्टाचार की शुरुआत होती है !
मेरा प्रश्न :
किस प्रकार की विद्या को मान्यता प्राप्त होनी चाहिए ? जो समाजों के हित
में काम आये या जो उनके शोषण का यंत्र बने
? जो प्रकृति और संस्कृति के बीच का संतुलन बनाये रखने या उसे बिगाड़ने में कारगर
साबित हो ? जो समाजों की प्रगति के रास्ते यह मान कर निकाले कि प्रकृति के अन्य
संसाधन पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाली पीढ़ियों की अमानत हैं या फिर एक ऐसा खज़ाना है जिसे लूटना
आज की पीढ़ी का हक है ? विद्या जो समाज के काम आये या जो विद्याधर को समाज से अलग
कर दे , उसे पराया बना दे !
कितनी सी है मेरी दुनिया : भूलोक चाहे कितना ही बड़ा हो, साम्राज्य कितने ही बड़े क्यों ना हों , लेकिन मेरी दुनिया बहुत छोटी सी है : मेरा परिवार (माँ, बाप, बीवी और बच्चे ), मेरे रिश्तेदारों ( भाई-बहन, आदि) के परिवार , मेरे मित्र आदि ! ऐसे ही कई परिवारों से समाज का गठन होता है और इस प्रकार से परिवार और समाज के हितों में कोई आपसी विरोध नहीं होता ! प्रगति का मूलाधार विद्या है , यदि विद्या हासिल करने के पश्चात समाज और परिवार का सदस्य उनसे अलग हो जाये, यह कहकर कि उसकी हासिल की गयी विद्या से उनकी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता, तो ऐसी विद्या किसी काम की नही!
एक संपन्न समाज की परिभाषा क्या है ? निरोगी समाज ; कुपोषण व प्रदूषण मुक्त जल और वायु ; भरपूर अनाज , कपड़ों और रोजमर्रा की चीज़ों की उपलब्धि ; हर परिवार के सर पर छत! सामाजिक न्याय की व्यवस्था , कला और संगीत में रुचि ! मैं किसान या बुनकर हूँ , लोहार या तरखान हूँ , सुनार या कुम्हार हूँ , वैद्य या शास्त्री हूँ , व्यापारी हूँ , कलाकार हूँ , वास्तु कला का ज्ञानी हूँ , कारीगर हूँ , आदि आदि ! प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करके मैं समाज की सभी जरूरतों की पूर्ति कर सकता हूँ ; बदलते वक़्त के साथ बदलती जरूरतों की भी मैं पूर्ति कर सकता हूँ क्योंकि मेरी विद्या गतिहीन नही! मेरा अस्तित्व किसी के अधीन नहीं क्योंकि मुझे नौकरी की तलाश नहीं ! मेरी विद्या समाज संगत है ; मेरे विद्या हासिल करने के तरीकों से सामाजिक अर्थ व्यवस्था पर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं पड़ता ! मेरी विद्या का स्वरुप समाज को जोड़ने का काम करता है, उसे तोड़ने का नही, क्योंकि यह विद्या ही ऐसी है जो हर पेशेवर को लेन देन से जोड़ कर रखती है ! एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण करती है जिसमें मैं विक्रेता और उपभोक्ता दोनों ही हूँ ! इन सब के बावजूद मेरी विद्या , मेरी समझ , मेरे अनुभवों को तिरस्कृत क्यों किया जाता है ?
मशीनों का युग : कहते हैं ईश्वर ने ब्रह्माण्ड
बनाया जिसमें इंसान, पशु-पक्षी , फूल-पौधे
, अनेक ग्रह , तारा-मंडल और आकाशगंगा हैं ! कल्पना कीजिये यदि ईश्वर की बनायी हुई
चीजें ईश्वर पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करें तो नतीजा क्या होगा !
इसी प्रकार से इंसान ने मशीनों का
निर्माण किया लेकिन इनके योगदान को सीमित नहीं किया ! आधुनिक सभ्यता में इंसानों पर मशीनों का प्रभुत्व बना हुआ है और यह बढता ही जा रहा
है ! इंसान को मशीनों के अधीन कर दिया है ! ऐसी मशीनों का आविष्कार हुआ और हो रहा
है जो इंसानों जैसी क्षमताओं से लैस हैं !
यानि कि हर प्रकार की इंसानी मानसिक क्षमताएं इनमें भर दी गयी हैं ! मेरी विद्या से भी मशीनों का
निर्माण हुआ, जिनका लक्ष्य सिर्फ शारीरिक मेहनत को कम करने का था ! अब अगर मशीनें
ही सब कार्य करेंगी तो इंसान क्या करेंगे ! इन मशीनों को निर्मित करने की विद्या
दुनिया भर मे कुछ गिने चुने लोगों के पास है और इंसानों का बहुत बड़ा बहुमत केवल
इनको चलाने का हुनर जानता हैं क्योंकि उनको इसके लिए प्रशिक्षित किया जाता है ! किसी
को भी कुछ अलग सोचने के अवसर प्रदान नहीं होते क्योंकि सब नौकरी पेशा हैं ! इस
प्रकार की विद्या की एक और खासियत यह है कि इसको पाने के लिए असीम धनराशि की जरूरत
पड़ती है! आम इंसान की पहुँच के बाहर और उसके समाज की प्रगति के विपरीत है यह
विद्या जो ना केवल अपना एकाधिकार जमाये बैठी है , दुनिया भर के समाजों को मुफलिसी
की ओर निरंतर ढकेलती आयी है ! इस विद्या ने ऐसे अस्त्र-शस्त्र का निर्माण किया है
जो पूरी दुनिया को कुछ लम्हों में ध्वस्त कर सकते हैं, लेकिन उसकी प्रगति में कोई
योगदान नहीं दे सकते !
इंसान और पालतू एक समान : मुझे पिछड़ा घोषित कर दिया गया क्योंकि मैं नयी विद्या के निज़ाम के विरुद्ध एक चुनौती बन कर खड़ा हो सकता हूँ ! मैं तो पिछड़ा हो गया लेकिन आने वाले वक़्त में उनका क्या हश्र होने वाला है जिन्होंने मान्यता प्राप्त विद्या हासिल की है ? मेरा मानना है कि प्रौद्योगिकी से हर कोई प्रभावित और मोहित है ! मानव समाजों का उद्धार प्रौद्योगिकी से ही संभव है ऐसा लोगों मे कूट-कूट कर भर दिया गया है ! 1000 में से 999 इसका अर्थ नहीं समझते क्योंकि इसके निर्माण में उनकी कोई भागीदारी नहीं है ! लेकिन राजनेताओं ने एक ऐसा माहौल बनाया है कि लोग एक परम असत्य को सत्य मानने लगे हैं ! स्वचालन को भी हर मर्ज की दवा बताया जाता है , यानि कि किसी भी इंसान को कुछ करने की जरूरत नहीं, सब मशीनें करेंगी ! अब जब सब कुछ मशीनें करेंगी तो करोड़ों इंसानी दिमागों का कोई अस्तित्व नहीं रहेगा !
स्वचालन के नतीजे : सुनने में आता है कि रोबोटिक्स प्रौद्योगिकी बहुत तीव्र गति से प्रगति कर रही है ! रोबोट होटल में खाना परोसने का काम करेंगे, खाने का आर्डर लेंगे और ऐसा हर कोई काम जो आजकल इंसान करते हैं वह रोबोट करेंगे ! अब वे लोग जो होटल में काम करने वाले रोबोट का निर्माण तो कर नहीं पाएंगे और इसलिए वह सब पिछड़ा वर्ग कहलायेंगे क्योंकि उनकी विद्या स्वचालन के निज़ाम में किसी काम की न होगी ! ध्वनि चालक यंत्रों का भी बहुत तेजी से निर्माण हो रहा है ! इशारों पर काम करने वाली मशीनों का भी निर्माण हो रहा है ! मतलब कि एक ऐसे समाज की कल्पना की जा रही है जिसमें इंसान सिर्फ बोल कर या फिर इशारे करके अपना हर काम करवा सकता है ! यह सब रोजमर्रा के काम रोबोट करेंगे और आपको सिर्फ आदेश देने हैं या फिर इशारे करने हैं ! आपको रोबोट नहला देगा , खाना पकाएगा और खिलवाएगा , घर की सफाई करेगा , संडास करवाएगा , घर की बत्तियाँ रोशन करेगा या फिर बुझायेगा , आपके लिए बिस्तर तैयार करेगा. यहाँ तक कि आपको बिस्तर ले जा कर आपको सुला देगा ,आदि आदि ! इन सब कामों को करने के लिए कुदरती तौर पर इंसानी दिमाग का इस्तेमाल होता रहा है , लेकिन अब उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि सब रोबोट करेंगे और आप अपने दिमाग से बेदखल हो जायेंगे ! नतीजा यह कि आपकी हैसियत जानवर के समान होगी ; लेकिन जानवर फिर भी शारीरिक बल पर श्रम करता है लेकिन इंसान शारीरिक और मानसिक क्षमताओं से बेदखल हो जायेगा !
शल्य चिकित्सक : इनका समाज में आजकल बहुत दबदबा है , सम्मान है क्योंकि यह रोगी शरीर के किसी भी अंग को काटपीट कर स्वस्थ कर सकते हैं ! मशीने इनके पास भी हैं लेकिन वह सिर्फ इनका काम सरल करने में इनकी सहायता करती हैं ! यह आधुनिक वर्ग के सम्मानित लोग हैं , इन्हें पिछड़ा नहीं शिक्षित कहा जाता है और यही इनकी पहचान है ; इनके मुकाबले एक वैद्य जिसके मरीज़ को स्वस्थ बनाने के तरीके इनसे अलग हैं उसे तिरस्कृत किया जाता है क्योंकि उसे पिछड़ा घोषित किया गया है ! खैर ! मैं अपना रोना नहीं रो रहा बल्कि मुझे इनकी चिंता है क्योंकि जो मेरे साथ हुआ है वही इनके साथ होने वाला है , ऐसी मेरी समझ है ! लेज़र और रोबोट का ऐसा मेल विकसित हो रहा है जो हिन्दुस्तान मे बैठे रोगी का इलाज़ अमरीका मे बैठे रोबोट चालक कर पाएंगे ! मतलब यह कि अब इनकी विद्या की जरूरत नहीं होगी , केवल उनकी जरूरत होगी जो इस रोबोट और लेज़र को चलाना जानते हों क्योंकि सारी विद्या रोबोट के दिमाग में रहेगी और चालक को सिर्फ इतना तय करना होगा कि किस बिमारी के लिए कोनसा बटन दबाना है ! लेज़र के माध्यम से हिन्दुस्तानी रोबोट चालू हो जायेगा और आदेश के अनुसार काम संपन्न कर देगा ; मतलब या तो शल्य चिकित्सक रोबोट चालक बन जाये (नयी विद्या हासिल करे और नए निज़ाम को तसलीम करे ) या फिर पिछड़े वर्ग मे शामिल हो जाये ! अब आप कहेंगे कि हम रोबोट के स्वास्थ्य का ख्याल करेंगे ; उसके पुर्जों की बदली और मरमत करेंगे. लेकिन यह काम भी दूसरे रोबोट ही करेंगे !तो आधुनिक समाजों के मान्यता प्राप्त विद्याधर पूर्ण रूप से निष्क्रिय हों जायेंगे और मेरे समुदाय के सदस्य बनेगें ! मानव जीवन के हर आयाम हर पहलू में कुछ ऐसा ही होने वाला है ; देरी सिर्फ वक़्त की है!
प्रश्न विद्या का : समाज की रोजमर्रा की समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार की मानसिक क्षमताओं से लैस सदस्यगण सक्रिय रहते हैं और इस प्रकार से नयी विद्या का जन्म होता है और यह प्रक्रिया निरंतर सदियों से चली आ रही है ! लेकिन यदि यही विद्या इसके जन्मदाता को निष्क्रिय कर दे तो अंजाम एक बेरोजगार और मुफलिस समाज होगा ! ऐसे में इसे मान्यता प्राप्त कैसे हो सकती है ?आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा की गयी प्रोद्योगिकी विकास की पहल का राजनितिक उद्देश्य लगभग समस्त दुनिया के समाजों को अपने अधीन करके उनके निर्धारित किये गए जीवन जीने के फलसफों को स्थापित करना है ! यह विद्या ऐसी है जो लोगों को अपने गाँव , शहर और देशों से पलायन करने पर मजबूर करती है और इसे सुविधाजनक बनाने हेतु यातायात के साधनों का भी निर्माण हुआ है ! लम्बी से लम्बी दूरी छोटे से छोटे समय में तय करने की सुविधाएं उपलब्ध हैं! इनकी दावेदारी कुछ भी हो लेकिन सत्य तो यह है कि इंसान मजबूर हो गया है , प्रकृति अपना संतुलन खोने के कगार पर है ; वायु , जल और आकाश प्रदूषित हैं, जिस कारण अनेकों बीमारियों का आगमन हुआ है ! दुनिया भर में अनगिनत नदियों के होते हुए भी पीने का पानी बोतलों में बिक्री किया जा रहा है, क्योंकि नदियों का जल प्रदूषित है ! तो फिर ऐसी विद्या को मान्यता कैसे प्राप्त हो सकती है?
मेरी विद्या (लोकविद्या ) ऐसी नहीं क्योंकि इसका कोई राजनितिक लक्ष्य नहीं , किसी अन्य समाज या देश पर प्रभुत्व ज़माने का लक्ष्य नहीं , यह तो केवल मेरे समाज की प्रगति के प्रति वचनबद्ध है ! मेरी विद्या किसी भी किस्म का प्रदूषण नहीं फैलाती क्योंकि यह प्रकृति को निजी सम्पति नहीं समझती ! यदि मेरी विद्या को मान्यता प्राप्त हो तो समाज का कोई भी व्यक्ति पलायन करने पर मजबूर न होगा , सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते टूटेगें नहीं !
तो फिर किसको विद्या माने ? जो समाजों का शोषण करे या उन्हे प्रगतिशील बनाये ? मानव समाज का भविष्य इस सवाल के जवाब तय करेंगे !
ललित कौल