वर्ष 1, अंक 5, नवम्बर 2023
सहयोग राशि रु. 10/-
सुर साधना
समाज में और प्रकृति के
साथ सुर-ताल की साधना
ज्ञान मार्ग
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अनियमित पत्रक . वाराणसी ज्ञान पंचायत की पहल . सीमित वितरण के लिए
साईं वही ज्ञानी
है , जो जाणे
पर पीड़
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सम्पादकीय : भाईचारे की ज्ञान परम्परा
पिछले कुछ महीनों से वाराणसी ज्ञान पंचायत की पहल पर नगर के
विविध इलाकों में लोकनीति संवाद चल रहा था. वाराणसी नगर निगम के चुनावों के
सन्दर्भ में चलाये गए इस संवाद का उद्देश्य इस नगर की विविध ज्ञान परम्पराओं के
बीच सक्रिय ज्ञान-संवाद स्थापित कर नगर-व्यवस्थाओं में विविध ज्ञान और
ज्ञानधारियों की भागीदारी के रास्ते खोजना था. इन वार्ताओं में सामान्य नागरिकों
की भागीदारी ने ऐसे संवाद की सार्थकता को सामने लाया है. वाराणसी नगर की
ज्ञान-परंपरा और महिमा के अनुकूल अब इस प्रयास को जारी रखने और विविध विषयों पर ज्ञान
पंचायतों के आयोजनों की अगली कड़ियाँ गढ़ने का सोचा गया है.
हम नगर निवासी जानते हैं कि ज्ञान की इस नगरी के आधार स्तंभ
शिव-अन्नपूर्णाजी हैं. इनके ज्ञान-सन्देश को हम कितना सुनते और गुनते हैं? शिवजी और अन्नपूर्णाजी के परिवार, गण और विविध समाजों से सजे बृहत्
समाज के ढाँचे से एक महत्वपूर्ण सन्देश का घोष हो रहा है. वह यह कि सभी समाजों
की स्वायत्त, बराबरी और भाईचारे की भागीदारी ही न्याय की बुनियाद है और सबको भोजन
की व्यवस्था राजनीति और मुनाफे (बाज़ार) से स्वतंत्र होनी चाहिए. दुनिया में
नैतिक सत्ता की स्थापना का यही रास्ता है. हर वर्ष आयोजित शिवजी की बारात से यह
सन्देश हम क्यों नहीं पढ़ पाते ? क्यों उसे हम केवल धार्मिक
उत्सव बना देते हैं?
महात्मा बुद्ध ने ज्ञान का सन्देश वाराणसी से ही दिया. उनका
परिवर्तन का ज्ञान-दर्शन सतत् नवीनता और बदलाव की प्रेरणा का स्रोत है और यह बदलाव
न्याय की दिशा में बढ़ने का बना रहे, यही महापुरुषों का प्रयास रहा है. आज शिव-अन्नपूर्णा
और बुद्ध के दर्शन को समकालीन बनाना धार्मिक नहीं ज्ञान-कर्म कहलायेगा.
विद्या की इस नगरी में चार-पांच विश्वविद्यालय हैं, विविध धर्म और सम्प्रदायों के आस्था-दर्शन-अध्ययन की संस्थाएं हैं. साथ ही यह साहित्य, संगीत, नाट्य, शिल्प, विविध कलाओं की उर्वर और राजनीतिक व सामाजिक आन्दोलनों की चेतना स्थली रही है. इस नगरी का मूल स्वभाव विविध ज्ञान दर्शनों की स्वायत्तता और इनके बीच भाईचारे और बराबरी के रिश्तों का सृजन करना है. ज्ञान पंचायत यही उद्देश्य रखती हैं.
सामान्यत: अब संगठित-धर्म, विश्वविद्यालय और
आधुनिक उद्यम (कंप्यूटर) इनको ज्ञान के स्थान मान लिया गया है और इनमें कार्यरत लोगों को ज्ञानी. लेकिन खेत, छोटे कारखाने, दुकान, घर और घरेलू कार्यों को ज्ञान का स्थान मानने से
इनकार किया जाता है. नतीजा किसान, कारीगर, मजदूर और घरों में रहनेवाली स्त्रियों को ज्ञानी
नहीं माना जाता. इन समाजों (जो बहुसंख्य भी हैं) के ज्ञान और राय को देश के विविध
कार्यों और निर्णयों में भागीदारी का कोई भी स्थान नहीं है.
वाराणसी ज्ञान पंचायत वाराणसी के मूल स्वभाव की परम्परा के
संवर्धन में इन समाजों के ज्ञान, यानि लोकविद्या
की स्वायत्त, बराबरी और भाईचारे की भागीदारी का आग्रह प्रस्तुत
करती है.
समाज में जन्मा और विकसित होता ज्ञान, सत्य और न्याय के नजदीक होता है. ज्ञान को धार्मिक मठों, विश्वविद्यालय और कालेजों की दीवारों, पोथियों और लाइब्रेरियों, कम्प्यूटर और इन्टरनेट की कैद से मुक्त कर समाज के बीच पनपने और बढ़ने दें, तो मनुष्य, समाज और देश के लिए सत्य के पथ खुलेंगे. |
वार्ड ज्ञान पंचायत क्या है?
वाराणसी ज्ञान पंचायत
द्वारा आयोजित लोकनीति संवाद की कड़ियों से एक महत्वपूर्ण राय निकल कर आई कि नगर के
विविध वार्डों में उनकी अपनी ज्ञान पंचायत लगनी चाहिए. इस दृष्टि से समूह ने सोचना
शुरू किया और वार्ड ज्ञान पंचायत के प्रारंभिक चरणों को रेखांकित करना शुरू
किया.
मनुष्य की शाश्वत शक्ति का एक स्रोत
उसके ज्ञान में है. ज्ञान हमारे अस्तित्व, स्वाभिमान, स्वायत्तता और रचनात्मकता का एक ऐसा प्रमुख आधार है, जो जन्म
से हर स्त्री-पुरुष को प्राप्त है और जिसे वह अपने जीवन भर निरंतर निखारता और नवीन करता है. मनुष्य किसी भी जाति
या धरम का हो, अमीर हो या गरीब, स्त्री
हो या पुरुष, पढ़ा-लिखा हो या नहीं, राजनीतिक हो या अराजनीतिक; सभी ज्ञानी हैं. इस
शक्ति स्रोत को जीवंत बनाये रखना ही वार्ड ज्ञान पंचायत का प्रयास है.
वार्ड ज्ञान पंचायत वार्ड के सभी
निवासियों के ज्ञान की भागीदारी का स्थान है. वार्ड के निवासियों के तरह-तरह के
ज्ञान को सामने लाने का यह सांस्कृतिक मंच है. एक ऐसा मंच जो विविध प्रकार के ज्ञान और ज्ञानियों के बीच संवाद स्थापित करे, उनके संवर्धन और उपयोगिता के रास्ते बनाने के अवसर सुझाये और
उसे वार्ड की बेहतरी में कैसे लगाया जा सकता है इसे सार्वजनिक तौर पर उजागर करे. ज्ञान
पंचायत एक वार्ड में होने वाली हर गतिविधि और व्यवस्था के ज्ञानगत पक्षों
को सामने लाने और जीवन व ज्ञान के संवर्धन की एक गतिशील, अराजनीतिक और लोकस्थ परम्परा
का हिस्सा है.
कहावत है ‘जितने मुंड उतनी
मति’ यानि मनुष्य समाज में लोगों के बीच
अलग-अलग प्रकार का ज्ञान बिखरा है और इनका समुच्चय ही समाज के लिए सही रास्ता प्रकाशित करता है. पढ़े-लिखे लोगों
के लिए स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय जैसे मंच ज्ञान वार्ता के लिए उपलब्ध हैं, संगठित धर्मों के ज्ञान-चर्चा के अपने-अपने स्थान हैं,
कंप्यूटर, इन्टरनेट के ज्ञान के अपने अलग स्थान हैं, लेकिन आम लोगों को जीवन और
समाज से मिल रहे अपने ज्ञान पर चर्चा के कोई स्थान नहीं हैं.
हमारी अपील यही है कि वार्ड के विविध
लोग आकर इस वार्ड ज्ञान पंचायत में अपने ज्ञान का दावा रखें, इसमें ज्ञान-दान करें और वार्ड को अपनी
ज्ञान-ज्योति से प्रकाशित करें.
इस अंक में हम वाराणसी के कुछ वार्डों की
जानकारी और वहां के ज्ञानी निवासियों के साथ हुई वार्ता को साझा करेंगे. आयें, ज्ञान के बल पर वार्ड
ज्ञान पंचायत को बनाने में सहयोग करें.
-सुर साधना
संयोजक समूह
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गाँव, शहर
और सभ्यता
-चित्रा सहस्रबुद्धे , संयोजक, लोकविद्या जन आन्दोलन
भारत के गाँव की औसत आबादी शायद पांच
हज़ार के आसपास होगी. उत्तर प्रदेश के गाँव अधिक घने हैं लेकिन अन्य अनेक प्रदेशों
में विरल आबादी के गाँव हैं. वाराणसी के अधिकांश वार्डों की आबादी गांव की औसत आबादी से अधिक
है. अक्सर शहर के वार्ड-निवासी गांवों में
रहने वाले लोगों से अधिक समझदार और जागरूक समझे जाते हैं. माना कि पंचायती राज आज
विकृत स्थिति में है, लेकिन पंचायती
राज की मूल अवधारणा यह है कि गाँव-समाज के
लोग मिलकर अपने जीवन और गाँव की
व्यवस्थाओं का सृजन और सञ्चालन खुद करने में समर्थ हैं. दार्शनिकों की राय
तो यह है कि ’जहाँ गाँव नहीं वहां सभ्यता नहीं’. निस्संदेह ग्रामीण
समाज ज्ञानी और सभ्य है.
नगर-समाज गांवों पर जिंदा रहता है.
आधुनिक शहर तो गांवों को निचोड़कर और सभ्यता को ख़त्म कर बनाए जा रहे हैं. पानी, अन्न, बिजली, वित्त, श्रम, उर्वर ज़मीन, शुद्ध वायु आदि लगभग सभी संसाधनों को गांवों और
कस्बों से चुराकर शहरों को बसाया जा रहा है. हम कैसे इस अनैतिक जीवन निर्माण को
विकास कह सकते हैं ? इंसान और इंसानियत को मारकर, चोरी और
डकैती के बल पर सभ्यताएं नहीं खड़ी होतीं.
ऐसा नहीं है कि शहर हमेशा से ऐसे ही रहे हैं और यह भी नहीं कि शहरों की इस पापपूर्ण नियति को अब बदला नहीं जा सकता. शहर में ऐसे लोग और समाज भी बसते हैं, जो इंसानियत और नैतिक जीवन-मूल्यों की फसल पैदा करते रहते हैं. इन्हीं लोगों के ज्ञान और जीवनमूल्यों के बल पर शहरों को पुनर्संगठित किया जा सकता है. लेकिन इसकी एक अनिवार्य शर्त यह है कि गाँव और शहर के रिश्तों को बराबरी और भाईचारे का बनाने का मार्ग खोजें. शायद ग्राम पंचायतें भी इस क्रिया में अपने नैतिक स्वरुप को फिर से हासिल कर सकेंगी. वाराणसी ज्ञान पंचायत और वार्ड ज्ञान पंचायतें ऐसे मार्गों को अपनी ज्ञान-चर्चाओं में लायें तो शहर निवासी भी सभ्यता गढ़ने में शामिल हो सकेंगे.
मेरा गाँव
मेरा देश भारत आज़ाद
गांवों का आज़ाद देश था. मुगलों के समय आज़ाद गांवों का गुलाम देश हो गया. और फिर अंग्रेजों
ने गुलाम गांवों का गुलाम देश बनाया. अंग्रेजों के जाने के बाद गुलाम गाँवों का
आज़ाद देश हो गया. हमें आज़ाद गांवों का आज़ाद देश बनाना है. - विनोबा के कथन पर आधारित |
वाराणसी वार्ड-समाज
वार्ड नंबर 5, सलारपुर का समाज
वार्ड और नगर की व्यवस्था सुंदर कैसे बने ?
-लक्ष्मण प्रसाद, भारतीय किसान यूनियन
देश की सबसे छोटी इकाई ग्राम
पंचायत और नगर पालिका/नगर निगम की व्यवस्थायें मानी गई हैं. उद्देश्य यह रहा कि
सामान्य व्यक्ति की पहुँच में ये हों. गांव पंचायत की व्यवस्था में ग्राम प्रधान
के पास चुने हुए सदस्य होते हैं, जिनसे एक समिति बनती है. किसी भी प्रस्ताव को
ग्राम प्रधान अपने सदस्यों के बहुमत से पारित करवाता है और उसे क्रियान्वित
करवाता है. साथ ही साथ पंचायत की कुछ बातें और कुछ प्रस्ताव गांव की खुली पंचायत (ग्राम
सभा) में रखे जाते हैं, जिसमें गांव के
सभी लोग भाग ले सकते हैं. इस पंचायत में किसी भी प्रस्ताव को बहुमत या सर्वसम्मत
के आधार पर पारित किया जा सकता है या उसे रद्द किया जा सकता है. आज की ग्राम
पंचायतें राजनीतिक दबाव में आ गई हैं वरना वास्तव में यह एक अच्छी व्यवस्था है.
नगर पंचायत की व्यवस्था में यह खामी है कि
पार्षद या सभासद के सहयोग के लिए कोई कमेटी नहीं होती, जहाँ वह अपने वार्ड के मसलों पर चर्चा, विचार-विमर्श कर सके. वार्ड में एक ऐसी कमेटी होनी चाहिए, जिसमें कई सदस्य हों. सभासद या पार्षद का इस समिति के
प्रति उत्तरदायित्व होगा.
हमारे सलारपुर वार्ड में तीन
मोहल्ले हैं- सलारपुर, रसूलगढ़ और खालिसपुर. लगभग पैंतीस हज़ार की
आबादी वाले इस वार्ड में किसान, कारीगर और दिहाड़ी पर काम करने वाले मिलाकर लगभग
पचहत्तर से अस्सी फीसदी हैं. कई धर्मों और समाजों के लोगों से इस वार्ड का समाज बना
है.
अपने वार्ड सलारपुर में कुछ लोगों
से जब इस विषय पर बातचीत हुई तो कई विचार सामने आये. एक तो यह कि नगर निकाय के
चुनाव में वार्ड सभासद का नाम वार्ड प्रमुख होना चाहिए और वार्ड में एक समिति का प्रावधान होना चाहिए. जिनकी सहमति और सलाह से वार्ड
प्रमुख काम करे. जब गाँव के लोग मिलकर अपने गाँव की व्यवस्था चला सकते हैं तो
वार्ड, जिसमें की एक गाँव से कई गुना अधिक लोग रहते हैं, क्यों महज एक व्यक्ति
(सभासद/पार्षद) को अपने रोज़मर्रा जीवन के सञ्चालन को सौंप दें ? वार्ड में ही तरह-तरह के कार्य करने वाले ज्ञानी समाज होते
हैं, इनसे सलाह और राय लेने की कोई जगह नगर निगम और नगर पालिकाओं की व्यवस्थाओं
में नहीं है. वार्ड के लोग मिलकर वार्ड की आवश्यकताओं और समस्याओं पर सोचें और
वार्ड की बेहतरी में अपना योगदान दे सकें इस विचार को ही स्थान नहीं है. इसका एक
कारण यह भी है कि वार्ड के सामान्य व्यक्ति को ‘कुछ नहीं आता’ यह मान लिया गया है.
हमारे ही वार्ड के अलग-अलग मोहल्लों
में
तरह-तरह के ज्ञानी समाज बसे हैं. बुनकर, धोबी, जल और नदी का ज्ञानी मल्लाह, मिट्टी के समान बनाने वाले प्रजापति, लोहे के समान
बनाने वाले विश्वकर्मा, लकड़ी के सामान बनाने वाले कारीगर, पत्थर के कारीगर, जरदोजी का काम
करने वाले, रंगरेज़, चमड़े का काम करने वाले, वाल्मीकि, ठेला पटरी व्यवसायी, नाई, वनवासी और नट, इसतरह और भी अनेक काम करने वाले समाज
हैं. इनके ज्ञान और कार्यों को वार्ड की बेहतरी में लाया जाना चाहिए.
नगर सुन्दर ही नहीं बल्कि न्यायपूर्ण भी कैसे बने? हम इसके लिए वार्ड ज्ञान पंचायत के गठन का प्रस्ताव रखते हैं. ज्ञान पंचायत की अवधारणा किसी कार्य को सही ढंग से करने के लिए उचित ज्ञान की क्षमता का सहयोग हासिल करने से है. यह गैर-दलीय और गैर सरकारी है, जो वार्ड के हर कार्य के ज्ञानगत आधार को सामने रखती है. अगर वाराणसी के ज्ञानियों के बारे में बात की जाए तो यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि बनारस की पहचान केवल पढ़े-लिखे लोगों की विद्वत्ता से ही नहीं बल्कि उपरोक्त सभी प्रकार के ज्ञानी समाजों से है. न्याय संगत यह होगा कि सभी ज्ञानियों को शामिल कर वार्ड की ज्ञान पंचायत बने. यह ज्ञान पंचायत न केवल वार्ड बल्कि नगर की अवधारणा पर भी अपनी राय को सामने लाये. वार्ड ज्ञान पंचायत वार्ड समिति बनाने के मार्ग खोलेंगी.
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वाराणसी-वार्ड-समाज
वार्ड नंबर 63, जलालीपुरा का समाज
-फ़ज़लुर्रहमान अंसारी, बुनकर साझा मंच
वाराणसी के जलालीपूरा वार्ड में तीन मोहल्ले हैं-अमरपुर मढ़ीया, अमरपुर बटलोईया और जलालीपुरा. सरैया का आंशिक हिस्सा भी इसमें शामिल है. वार्ड
के पूरब में सरैया मेन रोड, पश्चिम में शैलपुत्री रोड, उत्तर में तेलियाना रेलवे
क्रासिंग और दक्षिण में वरुणा नदी है. वार्ड की कुल आबादी लगभग तीस हज़ार है और कुल
मतदाता लगभग चौदह हज़ार. इनमें 85 फ़ीसद बुनकर और 14 फ़ीसद छोटे दुकानदार हैं. सरकारी कर्मचारी बहुत ही कम हैं.
वार्ड की स्थिति के बारे में वार्ड ज्ञान पंचायत के विचार से परिचित कुछ लोगों से हमने बात की, जिनमें अख्तर, सेराज अहमद, सफी अहमद महतो, सरदार महमुदुल हसन, जुबैर अहमद जैसे अनुभवी और ज्ञानी लोग शामिल हुए. शहनवाज़ अख्तर कहते हैं कि नगर के अन्य वार्डों की तरह इस वार्ड में समस्यायें बहुत हैं. एक बड़ी समस्या तो ये है की यहां पर कोई भी नगरीय स्वास्थ केंद्र नही है और ना ही कोई खेल का मैदान है. कूड़े को उठाने की कारगर व्यवस्था नहीं है.
हमारे वार्ड में 2200 के लगभग मकान हैं. उनका हाऊस और जलकल, टेक्स के रूप में नगर
निगम को सालाना लगभग लाखों रुपयों की आय है, वार्ड के दुकानों का टैक्स अलग से
जाता है; और भी कई टेक्स हैं. बदले में हमारे वार्ड में उसका 10 फीसद विकास के नाम पर पैसा आता है, उसमें भी आधा भ्रष्टाचार की भेट चढ़ जाता
है. इतने बड़े वार्ड में सालाना इतने कम पैसे से कैसे नागरिकों को सुविधाएँ मिल
सकती है?
मेरा मानना है कि वार्ड की व्यवस्थायें अगर स्थानीय लोगों की
भागीदारी से निर्मित हों तो अधिक कारगर ढंग से चलाई जा सकती हैं. महात्मा गाँधी ने
ग्राम पंचायतों को इसी तरह का बनाने का विचार रखा था. ग्राम पंचायतों की तरह वार्ड
पंचायतें क्यों नहीं हो सकती? वार्ड पंचायतों का कभी विचार ही नहीं किया गया है. वार्ड पंचायतों के होने से स्थानीय
स्तर पर बहुत सी समस्याओं के हल निकल सकते हैं. स्थानीय संसाधनों और स्थानीय ज्ञान के बल पर बहुत से काम किये जा सकते हैं और
इससे रोज़गार तो बढेगा ही वार्ड भी अधिक बेहतर होंगे.
हमारी समझ से न्यायी व्यवस्था का मतलब है आम आदमी
के सबसे नज़दीक की व्यवस्था. स्थानीय लोगों की भागीदारी का मतलब है आम आदमी की समस्याएं
और रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़े सवालों के सरलतम हल. स्थानीय व्यवस्था का यह भी मतलब
है कि स्थानीय ज्ञान, स्थानीय हित और लोकतांत्रिक फैसला लेने की शक्ति का विकास. वार्ड में जो भी संसाधन हैं, सरकारी और प्राकृतिक, उनके सही और लोकपरक
इस्तेमाल पर वार्ड के निवासियों की राय को शामिल करने के कारगर तरीके आज उपलब्ध
नहीं हैं. इसके लिए वार्ड के लोगों के ज्ञान और उनकी काबिलियत पर वार्ड-समाज का
विचार स्थिर होना चाहिए और इसके लिए वार्ड ज्ञान पंचायत जैसा मंच आवश्यक है.
हमारा वार्ड बुनकर बहुल है, इसलिए यहां स्थानीय बनारसी साड़ी का बाज़ार भी होना चाहिए. ये वार्ड गांव को शहर से भी जोड़ता है और किसान अपनी फसलों को बेचने इसी वार्ड से होकर गुजरते हैं. बुनकरों के साथ ही किसानों को अपने उत्पादन बेचने का बाज़ार भी यहाँ होना चाहिए.
निराश क्यों हों? -प्रेमलता चकियावी इन दिनों आडंबर के खेत
में फरेब की फसल
लहलहा रही. अरे नहीं! हो
रही अब पांडुर शायद
सूख जायेगी. तब तो उसमें फूल पराग बीज
भी होंगे, यहाँ वहाँ
छिटकेंगे, हवा संग
उड़ेंगे? झूठ फरेब
पुनः पुनः उगेगा दंभ से चूर
होकर? नहीं नहीं! फूल
पराग बीज नहीं, बाँझ
फसल है वह. क्या कहा? फरेब झूठ अब
नहीं उगेगा? जब तक लोभ
मोह दंभ रहेगा उगने से उसे
रोकोगे कैसे? दोस्त सुनो! हाथ से हाथ मिलाओ, उगने
न देंगे नफरत फरेब, सत्य-प्रेम
से पूरित भूमि, उर्वर आबाद रखेंगे, न्याय
की फसल उगायेंगे. देखो, बूझो तो सही हमारी
मुट्ठियाँ उर्जस्वित हैं. |
वाराणसी ज्ञान पंचायत वाराणसी
ज्ञान पंचायत एक अराजनैतिक, सांस्कृतिक
ज्ञान-वार्ता का मंच है, जो वाराणसी की व्यवस्थाओं को गढ़ने में सभी
समाजों के ज्ञान की भागीदारी और सभी के ज्ञान को बराबर की प्रतिष्ठा का आग्रह
करती है. गाँव-गाँव में और घाट-घाट पर जंगल बस्ती हर पनघट पर, मेला हाट और बाट-बाट पर पग-पग पर हैं विविध ज्ञानधर. यहीं से अलख जगाना है, कौन है ज्ञानी ? ज्ञान कहाँ कहाँ ? फैसला यह करवाना है. |
लोकविद्या जन आन्दोलन एक ज्ञान आन्दोलन है.
लोकस्थ ज्ञान लोककल्याणकारी होता है.
वाराणसी ज्ञान पंचायत के लिए लोकविद्या जन आन्दोलन, भारतीय किसान यूनियन,
स्वराज अभियान, बुनकर साझा मंच, माँ गंगाजी निषादराज सेवा समिति और कारीगर
नजरिया द्वारा संयुक्तरूप से संयोजित. [संपर्क : चित्रा सहस्रबुद्धे (9838944822), लक्ष्मण प्रसाद (9026219913), रामजनम (8765619982), फ़ज़लुर्रहमान अंसारी
(7905245553), हरिश्चंद्र बिन्द (9555744251)] पता : विद्या आश्रम, सा 10/82 अशोक मार्ग, सारनाथ, वाराणसी-221007 |
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