Monday, August 5, 2013

ज्ञान की राजनीति - इंदौर विमर्श

दिनांक ३१ जुलाई की शाम को इंदौर के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ज्ञान की राजनीति पर आपस में विमर्श किया। प्रेस क्लब इंदौर के बगल में गगन रेस्टोरेंट के बैठक कक्ष में लोकविद्या जन आन्दोलन की राष्ट्रीय संयोजक डा. चित्रा सहस्रबुद्धे ने ' चुनाव और ज्ञान की राजनीति ' के विषय पर एक नयी प्रस्थापना दी. उन्होंने कहा कि गरीबी और गैर-बराबरी समाप्त करने के लिए ज्ञान की दुनिया में बराबरी आवश्यक है. इसी दृष्टिकोण से लोकविद्या के आधार पर समाज में एक ज्ञान आन्दोलन की शुरुआत की गयी है जिसे लोकविद्या जन आन्दोलन कहते हैं। लोकविद्या द्वारा बराबरी का दावा पेश करना ही इस आन्दोलन और ज्ञान की राजनीति के मूल में है. यदि किसानों और आदिवासियों के संघर्षों में उनका साथ देने वाले समूह लोकविद्या के लिए सम्मान को आधार बनाकर आपस में समन्वय करें और अपने कार्यों एवं बहसों में ज्ञान की भाषा का समावेश करें तो ज्ञान की राजनीति  सार्वजनिक बहस में दखल लेना शुरू कर देगी तथा राजनीतिक बहस में चमत्कारिक परिवर्तन आएगा, बुनियादी सवाल बहस के केंद्र में आ जायेंगे। मध्य प्रदेश किसानों और आदिवासियों का प्रदेश है, यहाँ से होने वाला ज्ञान की राजनीति का आगाज़ पूरे देश को एक सन्देश दे सकेगा।
सभा में बोलते  संजीव दाजी 

बैठक लोकविद्या समन्वय समूह इंदौर द्वारा आयोजित थी. इस समूह के संचालक संजीव दाजी ने लोकविद्या दृष्टिकोण से  इंदौर के आसपास किये जा रहे कार्यों तथा किसानों और आदिवासियों के संघर्षों में समूह की भागीदारी के बारे में बताया। सामाजिक कार्यकर्त्ता व एडवोकेट अनिल त्रिवेदी ने लोकविद्या जन आन्दोलन को महात्मा गाँधी के आन्दोलन एवं मूल्यों से जोड़ा और कहा कि यह संघर्ष लम्बा है जिसमें साहस, सब्र और समझ की ज़रुरत है. इंदौर के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता डा. तपन भट्टाचार्य ने पहल का स्वागत किया और कहा कि  ज्ञान  की राजनीति में यह संभावना है कि संघर्षशील समूहों को एकजुट करके बुनियादी बदलाव के लिए ज्ञान का एक नया दर्शन समाज के सामने लाये। कालीबिल्लोद में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ चल रहे संघर्ष के किसान नेता बाबुभाई पटेल ने शासन की ज्यादतियों और किसानों के संघर्ष के बारे  में बताया।
 तपन भट्टाचार्य 

सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार प्रकाश महावर कोली ने कारीगरों के ज्ञान को इंजिनियर के ज्ञान के बराबर बताया और उसी हिसाब से आर्थिक और सामाजिक बराबरी की मांग की.निमाड़ महासंघ के संजय रोकडे, प्रियन्त टाइम्स के प्रेरित प्रियन्त, अन्ना  आन्दोलन के युवराज ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

अंत में वाराणसी के विद्या आश्रम के सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि लोकविद्या के लिए बराबरी के दावे की शुरुआत इस बात से होती है कि लोकविद्या के आधार पर काम करने वाले सभी लोगों की आय सुनिश्चित होनी चाहिए और यह कि उनकी आमदनी सरकारी कर्मचारी के बराबर होनी चाहिये। यह कैसे किया जा सकता है व इस विचार के विभिन्न पक्ष क्या हैं तथा यह समाज को बदलाव और खुशहाली के रास्ते पर कैसे ले जायेगा , इनकी बारीकियों को उन्होंने सामने लाया।

प्रकाश महावर कोली 

बैठक में  बस्तियों से आये कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी, पत्रकार , किसान और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
सभा का समापन इंदौर के वयोवृद्ध समाज सेवी प्रीतम सिंह छाबरा ने अपने शुभ उद्गारों के साथ किया।

संजीव दाजी
लोकविद्या समन्वय समूह
1924 -डी, सुदामा नगर , इंदौर
मो. न. : +91-9926426858


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