मध्य प्रदेश में नवम्बर २०१३ में होने वाले विधान सभा चुनाव के सन्दर्भ में
मध्य प्रदेश के जिला सिंगरौली के मुख्यालय बैढ़न के सामुदायिक भवन में २२ जुलाई २०१३ की दोपहर को लोकविद्या जन आन्दोलन की ओर से सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक बैठक की गयी. विषय था "चुनाव और ज्ञान की राजनीति". लगभग पचास कार्यकर्ताओं की इस बैठक में इस बात पर विशेष चर्चा हुई कि अब किसी भी बुनियादी अथवा वैकल्पिक राजनीति के लिए एक नए राजनैतिक दर्शन की आवश्यकता है . लोकविद्या का विचार एक ऐसा ही दर्शन है. ज्ञान की राजनीति की कल्पना के जरिये यह दर्शन राजनीति के क्षेत्र में उजागर होता है.
बैठक का आयोजन लोकविद्या आश्रम सिंगरौली की ओर से रवि शेखर, एकता, अवधेश, लक्ष्मीचंद दुबे, मंजू सिंह, धानु और गंगा ने किया। विद्या आश्रम वाराणसी से सुनील और चित्राजी शामिल हुए.
बैठक के पहले प्रेस वार्ता हुई जिसमें ज्ञान की राजनीति पर निम्नलिखित परचा प्रेस को दिया गया.
ज्ञान की राजनीति
ज्ञान की राजनीति जनता के बुनियादी सवालों के हल की राजनीति है. इसका दावा यह है कि लोगों के पास जो ज्ञान है, जिस विद्या के बल पर वे अपनी ज़िन्दगी चलाते हैं और अपने समाज संचालित करते हैं, उस विद्या को आधार बनाकर ही उनकी खुशहाली की नीतियां बनायी जा सकती हैं. आज की राजनीति पूरी तरह से विश्वविद्यालय की शिक्षा के दबदबे में आ गयी है. महात्मा गाँधी के आन्दोलन के समय ऐसा नहीं था. उनके सारे कार्यक्रमों में लोकविद्या के तौर-तरीकों, ज्ञान और मूल्यों को नए ढंग से प्रतिष्ठित करने की सोच और दिशा थी. आज की ज्ञान की राजनीति को भी वहीँ से नीतियों, मूल्यों और सोचने के तरीके का सिलसिला उठाना होगा। ऐसे अनेक आन्दोलन व संगठन हैं , कार्यकर्ताओं के समूह हैं, जो यह सिलसिला कमोबेश उठाते हैं . आदिवासियों और किसानों की लड़ाई लड़ने वाले, भूमि अधिग्रहण के खिलाफ और जल, जंगल और ज़मीन पर उनके नियंत्रण की लड़ाई लड़ने वाले, पटरी के दुकानदारों की जीविका और स्थानीय बाज़ारों के पक्ष में खड़े होने वाले, कारीगरों और शिल्प के पक्ष में सरकारी नीतियों में बदलाव के समर्थक, ये सभी ऐसे ही लोग हैं . थोड़ा सा विचार करेंगे तो आप पाएंगे कि ऐसे सभी समूह लोगों के पास जो ज्ञान है उसे इज्ज़त की नज़र से देखते हैं . साइंस और टेक्नोलॉजी को आगे आगे करके तमाम संसाधनों को हड़पने और उसके मार्फ़त लोगों की जीविका छीनने के जो कार्यक्रम विकास के नाम पर चल रहे हैं, उनकी खिलाफत ये सब लोग हमेशा करते हैं . मध्य प्रदेश के ऐसे तमाम समूहों और संगठनों को यहाँ के लोग भलीभांति जानते हैं .ज्ञान की राजनीति की दो प्रकट ज़रूरतें हैं - पहली यह कि लोकविद्या को इज्ज़त की नज़र से देखने वाले सभी समूह और संगठन इसी बात को समझते हुए आपस में समन्वय की ओर कदम बढायें। और दूसरी बात यह है कि वे अपनी भाषा में ज्ञान की बातों का समावेश करें, लोकविद्या के प्रति इज्ज़त को राजनीतिक भाषा दें और बहुमत जनता की खुशहाली का आधार इसी में हो सकता है इसका दावा पेश करें .
आप देखेंगे कि यदि ज्ञान की राजनीति सार्वजानिक बहस में थोड़ा बहुत भी दखल लेने लगती है, तो राजनीतिक बहस में चमत्कारिक परिवर्तन आएगा, बुनियादी सवाल बहस के केंद्र में आ जायेंगे। मध्य प्रदेश किसानों और आदिवासियों का प्रदेश है, यहाँ से होने वाला ज्ञान की राजनीति का आग़ाज़ पूरे देश को एक सन्देश दे सकेगा। एक ऐसा सन्देश जिसमें एक खुशहाल दुनिया बनाने की एक नयी कल्पना है और उसके लिए संकल्प का एक नया ज्ञानगत आधार.
लोकविद्या आश्रम, सिंगरौली, मध्य प्रदेश
२२ जुलाई २०१३
बैठक में शिरकत करते चित्राजी, सुनील, के सी शर्मा, अवधेश व अन्य
बैठक संचालित करते रवि शेखर
विद्या आश्रम
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