स्वच्छ भारत अभियान में लोकविद्या
की भूमिका
स्वच्छ भारत अभियान में लोकविद्या पे आधारित सभ्यता की एक अहम और स्वाभाविक भूमिका क्यों है इसको समझने के लिए स्वच्छ्ता का अर्थ हर तरह से समझने की ज़रूरत है ! स्वच्छ्ता को केवल तन के सन्दर्भ में परिभाषित करना इसे निरर्थक बनाने के समान होगा ! स्वच्छ्ता का सम्बन्ध न केवल मनुष्य के तन मन और आत्मा से है बल्कि उसकी विचारधारा को लेकर कुदरत को समझने के नज़रिये से भी है !
मानव समाज और खुद मानव भी सम्पूर्ण रूप से प्रकृति के आधीन है क्योंकि इसमें उपलब्द संसाधनो का उपयोग किये बिना वह जीवित ही नहीं रह सकता और मूल बात तो यह है कि इसका जन्म भी प्रकृति से ही हुआ है ! इसलिए जब तक प्रकृति स्वच्छ और स्वस्थ रहेगी केवल तब तक मानव समाज स्वच्छ और स्वस्थ रहते हुए प्रगतिशील रहेगा !
इसलिए यह अनिवार्य है कि मानव समाज की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए ऐसे उपकरणों का प्रयोग न हो जिससे प्रकृति मरीज़ बन जाये ! इसलिए अपनी आकांक्षाओं और लालसाओं को नियंत्रित करते हुऐ मानव समाज की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए उत्पादन के तरीके ऐसे न हों जिससे न केवल प्रकृति प्रदूषित हो बल्कि आस पास का वातावरण भी गंदगी से भर जाये ! गंदगी पैदा करके उसे साफ़ करने के साधनों का अविष्कार करने की ज़रूरत न पड़े !
यातायात के आधुनिक साधनों को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि दुनिया बहुत छोटी हो गयी है ! इसका एक सत्य यह भी है कि इनसे प्रकृति प्रदूषित हुई और होती जा रही है ! इन साधनों के महत्व का कारण कमाई के साधनो का इने गिने क्षेत्रों में होना है ! देश के प्रकृतिक साधनो का कुछ व्यक्ति विशेष के हाथों में रहने के कारण से है ! बड़े बड़े यंत्रों से किया गया प्रकृति का शोषण चारों और गंदगी फ़ैलाने का मूल कारण है ! हर प्रकार की बिमारिओं से लैस मानव का कारण भी यही है ! चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान /विज्ञानं का महत्व एक तरफ पर मूल तथ्य तो यह है कि इसका लाभ उठाना आम इंसान की क्षमता से बाहर है ! यह भी सत्य है कि यदि संगठित इकाइयां कर्मचारिओं के स्वास्थ के लिए योगदान न करें तो उनके लिए भी आधुनिक चिकित्सा की सहूलियतें अर्जित करना असंभव है ! इसलिए मानव समाज और प्रकृति की स्वछता के लिए प्रकृतिक साधनों को विकेन्द्रित करना अनिवाय है !
कृषि के क्षेत्र में भी आधुनिक तौर तरीके अपनाने से खेत प्रदूषित हुऐ हैं और उनकी जननशक्ति कम होती जा रही है जिसे केवल और अधिक मात्रा में खाद डालकर बरकरार रखा जा रहा है ! किसानों , उनके परिवारों और खेतों में काम करने वाले मज़दूरों को प्रदूषित वातावरण ने घेर रखा है ! यदि स्वच्छ भारत की कल्पना करनी है तो कृषि को आधुनिक तौर तरीकों से मुख्त होना होगा !
लोकविद्याधर समाज का ज्ञान / विज्ञानं (लोकविद्या ) जिसमे उत्पादन के तरीके , कृषि विज्ञानं, वन समर्थन , सिंचाई के तरीके , खाद का उत्पादन और प्रयोग , पशु पालन और उसपे निर्भर व्यवसाय , आदि , सम्मलित हैं ; यह सब प्रकृति को प्रदूषित नहीं करते और ऐसी कोई गंदगी नहीं फैलाते जिसकी सफाई के लिए किसे विशेष यंत्र की ज़रूरत पड़े ! विकेन्द्रित समाजिक और अर्थ व्यवस्था इनके मूल स्वरूप में है !
इनकी व्यवस्था में रोजगार कमाने के लिए घर से दूर नौकरी की तलाश में नहीं जाना पड़ता ! यह किसी भी घर के सदस्य को पराया नहीं बनाती और नाही परिवारों को तोड़ती है ! आज के भारतीय समाज में सबसे बड़ा और हानिकारक प्रदूषण जातिवाद और धर्मवाद है जिसका मूल कारण इस समाज के सदस्यों की असक्रियता है जो इनके आपसी मेलजोल में विरोधक की भूमिका निभाती है! किसी को किसी की भी ज़रूरत महसूस नहीं होती जिस कारण इनका कोई आपसी रिश्ता नहीं बनता ! स्वच्छ भारत के लिए इस प्रदूषण का खातिमा अनिवार्य है जो केवल लोकविद्या पे आधारित सभ्यता में संभव है ! लोकविद्याधर समाज को स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में लोकविद्या की भूमिका को सार्वजनिक करना होगा ! यह कैसे किया जाये इस पर निरंतर सोच और बहस की जरूरत है !