Tuesday, October 20, 2015

सूचना के बाज़ीगर

इस सदी के शुरूआती वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी के चमत्कारों के बल पर एक ज्ञान आधारित दुनिया बनाने का नशा लगभग सभी सत्ताधिशों के सर चढ़ कर बोलने लगा था। ज्यादातर सामान्य लोग ज्ञान आधारित दुनिया के बनाने में सूचना के पूँजी में बदलने  की क्रिया से  बेखबर थे। इस क्रिया में सामान्य लोगों के पास के ज्ञान को, यानि लोकविद्या को लूटकर सूचना में ढालकर उसे बाजार में बेचने का काम एक बड़े उद्योग का रूप लेने लगा।  सामान्य जनता यानि किसान, कारीगर, आदिवासी, महिलाएं आदि इस नई बात को कैसे समझें इसके लिए एक छोटी सी कविता लिखी गयी थी , जो नीचे दी जा रही हैं।

सूचना संचार युग में
सूचनाएं दौड़ती हैं
इधर से उधर
उधर से इधर
और बदल जाती हैं पूँजी में !

इस जादू के बाज़ीगर
कहलाते हैं ज्ञान प्रबंधक
जो सूचनाएं इकट्ठा करते हैं
कभी सस्ते में खरीदकर,
कभी छीन-झपट कर,
कभी झांसा देकर या ललचाकर ,
कभी कभार पैदा भी कर लेते हैं !
फिर उन्हें सजाते हैं, निखारते हैं,
चमकाते हैं और
दुकान लगाकर बेचते हैं
और इस कारोबार को
'ज्ञान' का कारोबार कहते है ।

चित्रा

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