रिपोर्ट
लोकविद्या जन आंदोलन (लोजआ ) राष्ट्रीय बैठक
17 अक्टूबर 2016
विद्या आश्रम, सारनाथ, वाराणसी
लोकविद्या जन आंदोलन की राष्ट्रीय बैठक 17 अक्टूबर 2016 को विद्या आश्रम , सारनाथ, वाराणसी में संपन्न हुई। इस बैठक में देश भर से आये सक्रिय कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। हैदराबाद, बंगलुरु, मुम्बई, नागपुर, इंदौर, दिल्ली, कोलकाता और वाराणसी के कार्यकर्ताओं ने लोकविद्या जन आंदोलन के सार और दिशा पर चर्चा की और संगठन निर्माण की ओर ठोस कदम उठाये।
इंदौर से संजीव दाजी ने वहाँ किये जा रहे कार्यों, विशेषतौर पर ज्ञान पंचायतों के संगठन, कार्यनीति और संगठनात्मक कदमों को सभा के सामने रखा। दिलीप कुमार 'दिली' ने वाराणसी के आस-पास ज्ञान पंचायत के मार्फ़त हुए संगठन के प्रयासों, विशेषतौर पर स्थानीय समितियों के गठन और गाँव स्तर पर लोकविद्या पंजीकरण के बारे में बताया। कोलकाता समूह के नेता जितेन नंदी ने प्रद्युम्न भट्टाचार्य के बंग लोकविद्या कोष और उनके द्वारा बनाये लोकविद्या केंद्र का सन्दर्भ लेते हुए बंगाल प्रदेश में 'लोकविद्या के प्रचलन' पर प्रकाश डाला। हैदराबाद से आये डा. ललित कौल ने लोकविद्या स्वराज के विचार को प्रस्तुत किया। इस पर अपना आलेख वे पहले ही लोगों को भेज चुके थे। उनका कहना था कि लोकविद्या जन आंदोलन के एक समूह द्वारा लोकविद्या स्वराज के विचार पर बुलेटिन तैयार करनी चाहिये। उनके विचारों और अन्य लोगों द्वारा लोकविद्या आंदोलन पर दिए जा रहे विचारों पर चर्चाये हुईं।
ज्ञान पंचायत के विचार पर विस्तृत चर्चा हुई। अभी तक के कार्यों, विशेष कर इंदौर और वाराणसी के अनुभवों और पिछले वर्षों में हुए विचार विमर्श के बल पर यह सोचा गया कि ज्ञान पंचायत लोजआ का एक प्रबल जरिया है। ज्ञान पंचायत के आयोजनों के मार्फ़त मनुष्य की गतिविधि के हर क्षेत्र, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और दार्शनिक सभी क्षेत्रों में ज्ञान के विविध प्रवाहों के बीच बराबरी के आधार पर नये, कारगर और लोकोन्मुख तथा लोकहितकारी चिंतन व नीति- निर्धारण की एक नई दुनिया का निर्माण किया जा सकता है। लोकविद्या जन आंदोलन, देश और दुनिया के सार्वजनिक स्थानों पर लोकविद्या समाज अपनी दस्तक दे, इसका आंदोलन है और ज्ञान पंचायत इसे मूर्त रूप देने का रचनात्मक कार्य।
हैदराबाद के डा. बी. कृष्णराजुलु और बंगलुरु के डा. ज.क. सुरेश की संयुक्त अध्यक्षता में हुई इस बैठक में प्रमुख रूप से लोजआ के लिए संगठन निर्माण के बारे में चर्चायें हुईं और निर्णय लिये गये। संगठन के बारे में यह बात हुई कि स्थानीय पहल, दार्शनिक-राजनीतिक अभिव्यक्ति व सम्प्रेषण, लोकविद्या के सक्रिय स्थान और कार्यकर्ताओं के दौरों के जरिये एक सक्रिय ताने-बाने यानि जाल की ज़रूरत है, जिसमें आपसी विचार-विमर्श, लेन-देन, भागीदारी और सूचना प्रवाह की अच्छी व्यवस्था हो। इस दृष्टि से यह तय किया गया कि -
- लोकविद्या प्रवक्ता और क्षेत्रीय संयोजक के पद सृजित किये जायें ।
- लोकविद्या प्रवक्ता का प्रमुख कार्य है लोकविद्या विचार को हर संभव स्थान पर आगे बढ़कर सामने रखना। राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं आर्थिक तथा हर सार्वजनिक या निजी मसले पर लोकविद्या का दृष्टिकोण सामने रखना।
- क्षेत्रीय संयोजक का प्रमुख कार्य है ज्ञान पंचायतों का आयोजन और ज्ञान के विविध प्रवाहों के बीच बराबरी तथा लोकविद्या के बल पर सरकारी कर्मचारी के बराबर आय, इन विचारों के पक्ष में जनमत तैयार करना।
- लोकविद्या कार्य के सक्रिय / सघन क्षेत्रों में ऐसे स्थान बनाये जायें जो लोजआ कार्य के सूत्र स्थान हों।
- ज्ञान पंचायत का विचार व आयोजन लोजआ के विस्तार और आंदोलन को गहराई देने का प्रमुख जरिया बनाया जायें।
- एक समन्वय कार्यालय बनाया जाये जो लोजआ के निर्माण में प्रमुख सक्रिय संपर्क स्थान की भूमिका निभाये।
ठोस निर्णय
- लोकविद्या प्रवक्ता -- वाराणसी से चित्रा सहस्रबुद्धे और दिलीप कुमार 'दिली', इंदौर से संजीव दाजी, नागपुर से गिरीश सहस्रबुद्धे, हैदराबाद से बी. कृष्णराजुलु और ललित कौल, बंगलुरु से ज.क. सुरेश और कोलकाता से जितेन नंदी।
- क्षेत्रीय संयोजक -- लक्ष्मण प्रसाद वाराणसी, क़ुतुब अहमद कोलकाता, टी. नारायण राव हैदराबाद। इंदौर, नागपुर और बंगलुरु से वहाँ के लोकविद्या प्रवक्ता नाम सुझायेंगे।
- समन्वय कार्यालय -- विद्या आश्रम, सारनाथ, वाराणसी।
विद्या आश्रम
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Thhank you for this
ReplyDeleteGreat blog yyou have
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