लोकाविद्या-समाज में एकता के धागों को बुनने की क्रियायें तेज़ होनी चाहिये। खेतों में काम करते किसान, कारखानों और कुटीर उद्योगों में काम करते कारीगर, जंगलों में रहते आदिवासी, पटरी-सडकों-बाज़ारों के छोटे-छोटे दुकानदार और घरों में कार्य करती स्त्रियां, ये सब अलग-अलग तरह के ज्ञानी हैं और अलग-अलग स्थानों पर कार्य करते हैं। इनके बीच एकता को देख पाना और उसे वास्तविक ठोस शक्ति बनाना एक चुनौती है। जब इनके बीच फैले ज्ञान का मज़बूत रिश्ता दिखाई देता है तो यह चुनौती संभव दिखाई देने लगती है । जब ये साफ़ दिखाई देने लगता है कि ये सब अपने ज्ञान यानि लोकविद्या के बल पर जीते हैं और इनके ज्ञान को पूँजी, राज्यसत्ता और विश्वविद्यालय की विद्या ने मिलकर ज़बरदस्ती निकृष्ट करार दिया है। इनके बीच एकता के धागों को बुनने और इसका बृहत जाल बुनने में स्त्रियां आगे बढ़ कर पहल ले सकती हैं। कलाकार भी ऐसी ही क्षमता रखते हैं। इसलिए स्त्री-समाज और कलाकारों समुदाय से हम ये अपील करते हैं कि वे अपनी इस महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए इस कार्य को करने के आयें और लोकविद्या-समाज के आत्मबल और एकता को ऊंचाइयों तक ले जाएं।
इन दोनों समाजों में ऐसी शक्तियों को देखने का आधार ये है कि --
इन दोनों समाजों में ऐसी शक्तियों को देखने का आधार ये है कि --
- इन दोनों समाजों के कार्यक्षेत्र में मानवीय संवेदना को प्रमुख स्थान प्राप्त है जिससे ये सहयोग की धाराओं को मज़बूती देते हैं। इसके चलते तुरंत के लाभ के मुकाबले ये व्यापक हित और दूरगामी हितों को देख पाने की क्षमता रखते हैं। न्याय-अन्याय और सही-गलत के विचार इनके लिए अधिक महत्त्व के हो जाते हैं।
- कलाकार अपने कलाकार्य की कल्पना, प्रेरणा, संवाद और सम्प्रेषण के लिए सतत अपने सीमित दायरों को तोड़कर समाज के अन्य अंगों से रिश्ता बनाकर अपनी कला को नवीन बनाते हैं , व्यापक अर्थ देते हैं, नए रूपों और प्रकारों को गढ़ते हैं। इसप्रकार वे सतत समाज में एक समन्वय की पद्धति को गढ़ते हैं।
- स्त्रियाँ और कलाकार लोकविद्या-समाज के हर अंग में हैं। गायन , वादन , नर्तन , काव्य, नाट्य , चित्र, शिल्प आदि कलाएं और उनके जानकार समाज के हर क्षेत्र और हर अंग में देखे जाते हैं और ये धर्म, जाती, व्यवसाय, के दायरों से उठकर स्थानीयता को महत्व देते हैं और सभ्यता की समृद्धि के लिए ज्ञान की अलग-अलग धाराओं में समन्वय की क्रियाओं को रचते जाते हैं।
8 से 10 फरवरी 2017 को महाराष्ट्र के वैजापुर और औरंगाबाद में हो रही कलाकारों की ज्ञान पंचायत इसी दिशा में एक कदम है।
विद्या आश्रम
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