क्या विविध ज्ञान परम्पराओं की नगरी काशी में
माँ गंगा के उर्वर तट पर दर्शन अखाड़े की शुरुआत एक प्रासंगिक पहल है? क्या हम
दर्शन संवाद और राजनीतिक परिचर्चा के बीच तालमेल की ओर आगे बढ़ेंगे ?
वाराणसी में 8 मार्च की शाम को राजघाट पर दर्शन
अखाड़ा में करीब 30–35 लोग वार्ता के लिए बैठे. विजय नारायण जी की अध्यक्षता में सुनील
ने विषय प्रस्तावित किया, कहा कि सार्वजनिक स्तर पर दर्शन वार्ता होनी चाहिए.
अच्छी अथवा नैतिक राजनीति हो इसके लिए समाज में दर्शन वार्ता का प्रचलन एक बड़ी
भूमिका निभाता है. लोगों का रोजमर्रे का जीवन और सामान्य वार्ताएं इन सब में दर्शन
की गहरी और व्यापक उपस्थिति होती है. आवश्यकता इस बात की है कि सामाजिक जीवन के विभिन्न
पहलुओं पर विशेष ध्यान देने वाले और उन क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका निभाने
वाले स्त्री–पुरुष इस वास्तविकता को तरजीह दें और सामान्य लोगों के साथ नियमित तौर
पर दर्शन वार्ता करें. शायद इस काम की शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ताओं से होगी. ये
लोग सतत विचारशील होते हैं और पहल लेकर काम करते हैं. विद्या आश्रम ने इस दर्शन
अखाड़ा की शुरुआत इसीलिए की है. अखाड़ा इसलिए कि प्रतियोगी भाव मोहब्बत से अलग न हो
और बाज़ार की दौड़ से मुक्त ये वार्ताएं की जायें. वार्ताओं में भाईचारे व दूसरों के
विचार के सम्मान का भाव हो तथा रचनात्मक विचारों पर जोर हो. समाज में ज्ञान पर
वार्ता का कार्य विद्या आश्रम शुरू से ही कर रहा है. लोकविद्या और लोकविद्या दर्शन
के विचार को इन वार्ताओं के दौर में आकार दिया गया है. अब दर्शन वार्ता के जरिये
उम्मीद की जाती है कि समाज के दीर्घकालीन भले के राजनीतिक विचारों के लिए भूमि
तैयार की जा सकेगी. उपस्थित लोगों को अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित किया
गया.
लक्ष्मण प्रसाद, गोरखनाथ यादव, रमण पन्त,
मुनीज़ा खान, केसर राय, आलम अंसारी, प्रवाल कुमार सिंह, अमित बसोले, वीणा देवस्थली,
प्रेमलता सिंह और चित्रा जी ने अपने विचार सबके सामने रखे. सबने अलग–अलग बात कही.
दर्शन के इन सबके विचार अलग-अलग रहे तथापि जो बातें कही गईं सब विषय पर ही थीं. इस
पर थोड़ी आपसी चर्चा हुई कि विचार अथवा विचारधारा ये शब्द प्रचलित हैं, क्या ये
दर्शन से कुछ अलग हैं. कुछ लोगों ने अपने विचार रखे और मोटी सहमति यह रही कि इन
वार्ताओं के शुरू में इन सबके बीच अंतर न किया जाए. दर्शन के अंतरगत वार्ताओं में
ये क्षमता हो सकती है कि वे हमें इतिहास में प्रचलित शब्दों, अवधारणाओं और विचारों
की सीमाओं को लांघने में मदद करें और किसी भी घटना, नीति, विषयवस्तु,
आचार-व्यवहार, समाज की अपेक्षाओं व आवश्यकताओं अथवा सैद्धांतिक स्थापनाओं की गहराई
में जाने के रास्ते बनाती रहें.
विजय नारायण जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में
आज की राजनीति में व्याप्त गड़बड़ियों व उसमें व्यस्त प्रतिगामी ताकतों का चरित्र
उजागर किया और उम्मीद जताई कि दर्शन अखाड़ा की यह पहल स्वच्छ राजनीति करना चाहने
वालों के लिए ताकत का एक स्रोत बन सकती है.
अंत में गोरख नाथ यादव ने उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया और सभी को अल्पाहार के लिए आमंत्रित किया.
darshanakhadablog.wordpress.com नाम से विद्या आश्रम एक ब्लॉग चलाता है. उसे भी देखें.
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