दर्शन अखाड़ा पर ‘गंगा मैया गीत’ नाम से
बुधवार, दिनांक 29 मई, 2019, शाम 5 बजे से एक आयोजन हुआ. स्थानीय समाज की महिलाओं
ने मिल बैठ कर गंगाजी के गीत गाये. आप कभी ऐसे गीतों पर एक समग्र दृष्टि डालें तो
वे स्वयं ज्ञान गंगा प्रतीत होंगे और सामान्य महिलाओं के ज्ञान की गहराई से आपका
परिचय होगा. बहुधा यह माना जाता है कि सामान्य महिलाएं जो अनपढ़ हैं या मामूली पढ़ी
हैं, वें अज्ञानी हैं, कुछ नहीं जानती. क्योंकि आज ज्ञान का अर्थ ‘विकास’ के ज्ञान
से ही लिया जाता है और अब तक यह साफ़ है ही कि विकास का ज्ञान ‘विनाश’ का ज्ञान
होता है. ज्ञानी तो वही हैं जो समाज को एक ऐसे पथ पर आगे ले चलें जिस पर समाज के
सभी लोगों की न्यायसंगत और विवेकपूर्ण सक्रियता व भूमिका बने.
हमारे समाज में संवेदना,
भाईचारा, त्याग, विवेक, पर-पीड़ा की अनुभूति आदि को ज्ञान के अभिन्न अंग के रूप में
देखा जाता रहा है. आज का ‘विकास’ का ज्ञान जिसे हम साइंस कहते हैं, इन सब नैतिक
मूल्यों से अछूता है. यानि इन मूल्यों को वह सिद्धांततः ज्ञान का अन्तर्निहित गुण
नहीं मानता. इसकी सोच व समझ न हमारे वैज्ञानिकों में है, न राजनेताओं में, न
मीडिया में और न विश्वविद्यालयों में पढ़ने-पढ़ाने वाले लोगों में. नतीजा यह है कि
इस ‘विकास’ की आंधी में लालच, आक्रामकता, नफ़रत, विलासिता को बड़ा स्थान मिलता जा
रहा है. प्राकृतिक संसाधनों की बेतहाशा लूट और किसान-कारीगर समाजों को उजाड़ कर थोड़े
से लोगों के लिए वैभव और विलास के महल खड़े करने में बड़ा अधर्म हो रहा है.
गंगा जी मात्र एक नदी
नहीं, बल्कि ज्ञान गंगा हैं. धरती माँ की तरह ही वे लोकहित में अपनी सक्रियता को
निर्धारित करती हैं और त्याग, ममत्व, सहजीवन, न्याय जैसे गुणों को ज्ञान के अभिन्न
अंग के रूप में देखना सिखाती हैं. यह आयोजन गंगाजी की आवाज़ को सुनने, समझने,
आत्मसात करने और फ़ैलाने का आग्रह रखता है. इन्हीं बातों पर वार्ता के दौरान
श्रीमती शांतिदेवी और श्रीमती चैत्रा देवी के समूह ने गंगाजी के गीत प्रस्तुत
किये. ढोलक पर मनोज ने संगत की. चंदा यादव, पारमिता, प्रभावती, प्रेमलताजी, चित्राजी ने गीत
गाये जिसमें अन्य महिलाओं ने स्वर मिलाए. प्रेमलताजी ने गंगाजी पर लिखी अपनी कविता
और कुछ अन्य कवियों की कवितायेँ भी सुनाई.
प्रेमलताजी ने कार्यक्रम
की शुरुआत करते हुए कहा कि गंगाजी के अतित्व पर संकट के बादल हैं. हम स्त्रियों को
इसके बारे में सजग होना है क्योंकि गंगाजी के चलते हमारा भी जीवन, अस्तित्व और
सम्मान है. हम सभी स्त्रियाँ माँ होने के नाते जन्म और लालन-पालन के कार्यों में
आवश्यक ज्ञान को हासिल करती रही हैं और इस दौरान पर-पीड़ा की समझ, भाव, प्रेम,
ममत्व, विवेक, त्याग, संयम, सहजीवन आदि बहुत से गुणों की परख करना सीखती हैं, उन्हें आत्मसात करती
हैं. ये गुण हासिल करने की क्रिया ही ज्ञान-तपस्या है. अपने बच्चों में और समाज में इस
ज्ञान और इन गुणों को विकसित करना यह हमारा धर्म है. आज इन गुणों को समाज में पुनर्स्थापित
करने की आवश्यकता है. इस कार्य को आगे बढ़ाने का काम स्त्रियों को अपने हाथ में
लेना होगा.
कलाकार मनोज का सम्मान करते हुए
अंत में श्रीमती शांतिदेवी, श्रीमती चैत्रा
देवी व मनोज का लोकविद्या साहित्य और एक गमछे की भेट देकर सम्मान किया गया.
विद्या आश्रम
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