निमंत्रण/ घोषणा
लोकविद्या जन आन्दोलन
पहला अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन
१२-१४ नवम्बर, वाराणसी, भारत
विद्या आश्रम आपको १२-१४ नवम्बर, २०११ के बीच होने वाले लोकविद्या जन आन्दोलन के पहले अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है. यह अधिवेशन वाराणसी में विद्या आश्रम के सारनाथ परिसर में होगा.
जन आन्दोलन और ज्ञान का दृष्टिकोण
विस्थापन आज भारत में सामाजिक आन्दोलनों का सबसे बड़ा सरोकार बन गया है. यह विस्थापन ज़मीन, घर, रिज़गार, संसाधन, और बाज़ार सभी से हो रहा है. किसानों के आन्दोलन प्रमुख रूप से कृषि उत्पादन का दाम हासिल करने के लिए, क़र्ज़ और बिजली के लिए तथा जबरदस्ती किये जा रहे भूमि अधिग्रहण के खिलाफ होते रहे हैं. आदिवासियों और स्थानोया समाजों के आन्दोलन घर, ज़मीन और जंगल से बेदखली तथा परियावरण विनाश के खिलाफ चलते रहे हैं. शहरी गरीबों और झोपड़पट्टीयों में रहने वालों के संघर्ष हमेशा ही विस्थापन के विरोध में और सामान्य नागरिक और सामाजिक अधिकारों को हासिल करने के लिए होते रहे हैं. वैश्विक बाज़ार और बड़ी पूँजी की घुसपैठ द्वारा स्थानीय बाज़ार को तहस-नहस करने के खिलाफ कारीगर और ठेले-गुमटी पर धंधा करने वाले बड़े पैमाने पर लामबंद होते रहे हैं. यह सभी आन्दोलन कुछ समय से विस्थापन के विरोध के एक व्यापक आन्दोलन का रूप ले रहे हैं. एक तरफ शासन और प्रशासन की नयी व्यवस्थाएं इस प्रतिरोध को बड़े पैमाने पर दबाने में लगी हुई हैं, तो दूसरी तरफ लोगों के साथ खड़े सामाजिक कार्यकर्ता एक नयी जन एकता को आकर देने के रास्ते खोज रहे हैं.
ये सब विस्थापन के शिकार लोग और समाज ऐसे हैं जो कभी कालेज नहीं गए हैं और अपनी ज़िन्दगी लोकविद्या के बल पर चलाते हैं. लोकविद्या उनका अपना ज्ञान है जो उन्होंने विरासत में प्राप्त किया है, कम के स्थान पर, समाज में और सहकर्मियों के सिखा है और जिसको उन्होंने अपनी ज़रुरत, अनुभव और प्रयोगों के बल पर अपनी तर्क बुद्धि से प्रभावी और समसामयिक बनाया है. विस्थापन उनकी ज़िन्दगी की चौखट में ऐसे बदलाव ले आता है जिनके चलते वे लोकविद्या, यानि अपने ज्ञान के इस्तमाल से वंचित हो जाते हैं और बाज़ार में एक सस्ते मज्दोर के रूप में खड़े कर दिए जाते हैं. लोकाविद्याधर समाज का लोकविद्या से रिश्ता टूटने की प्रक्रिया का हर हालत में मुकाबला करना ज़रूरी है. वास्तव में लोकविद्या, यानि लोगों का सोचने का तरीका, उनके मूल्य, उनका संगठन का तरीका, उनका हुनर, ज्ञान, सौंदर्य बोध और नैतिक संवेदनाएं कुल मिलाकर उनकी ज्ञान की दुनिया ही उनकी शक्ति का प्रमुख स्रोत है. भारत में और साडी दुनिया में फैले किसानों, आदिवासियों, कारीगरों, छोटा-छोटा धंधा करने वालों और विविध स्थानीय समाजों के बीच यदि कुछ सामान है, तो वह लोकविद्या ही है. यही इन सब के बीच एकता की कड़ी है. यह समझना ज़रूरी है के आज मुक्ति का रास्ता ज्ञान की दुनिया से होकर गुज़रता है. लोकविद्या दृष्टिकोण सूचना युग का जनता का दृष्टिकोण है.
लोकविद्या का दावा
दुनिया भर में किसान और आदिवासी एक नया दावा पेश कर रहे हैं. अपनी-अपनी भाषा में और अपने-अपने तरीकों से वे यह कह रहे हैं ki अपने ज्ञान, मूल्यों और विश्वासों के साथ जीना और वह सब ज्ञान प्राप्त करना जो वे चाहते हैं, यह उनके जन्म सिद्ध आदिकर हैं. इन्हें उनसे छिना नहीं जा सकता. एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में नए किस्म की हलचल दिखाई दे रही है, जिसमें पूरी दुनिया के शोषित, उत्पीडित एवं विस्थापित लोगों की एक नई एकता के संकेत हैं. इस बार इस एकता का आधार लोकविद्या में होना है यानि उनके इर्द-गिर्द के समाजों और प्रकृति की उनकी समझ में जो समान है, उसमें होना है.
इसका यह अर्थ है के किसानों और आदिवासियों, कारीगरों और महिलाओं तथा छोटा-छोटा धंधा करने वालों और मजदूरों को लोकविद्या का दावा पेश करना चाहिए. यह कोई जीविकोपार्जन की ज़रुरत भर का दावा नहीं है, यह एक नै दुनिया बनाए का दावा है. उन्हें यह दावा पेश करना है के पूँजी और ज्ञान के व्यवसायीकरण को केवल लोकविद्या ही बुनियादी चुनौती दे सकती है. उन्हें यह दवा भी पेश करना है के सत्य व सामाजिक और आर्थिक बराबरी के समाज का ज्ञान का आधार केवल लोकविद्या में है. हमें यह समझना होगा के जब तक यह दावे पेश नहीं किये जाते, तब तक हम बुनियादी सामाजिक परिवर्तन के अपने असरहीन पूर्वाग्रहों में फंसे रहेंगे. ऐसा लोकविद्या-ज्ञान का दवा हमारे विचारों और कार्यों में एक नई और वास्तविक उड़ान भर दे सकता है, जो आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में नई सोच को जन्म दे. ऐसे दावों को आकार देने की प्रक्रिया ही लोकविद्या जन आन्दोलन है.
लोकविद्या जन आन्दोलन (लो.ज.आ.)
वैश्विक आर्थिक और पर्यावर्णीय संकट ने उन विचारों और संस्थाओं को बेनकाब कर दिया है, जिन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों को भूखा मारकर और प्रकृति का विनाश करके चाँद लोगों की जेबें भरी हैं. लोकविद्या जन आन्दोलन इसी बहुमत जनता का ज्ञान आन्दोलन है, यानी उन लोगों का ज्ञान आन्दोलन है, जिन्हें पूँजी के प्रतिष्ठानों, विश्वविद्यालयों और राज्य की व्यवस्थाओं ने अज्ञानी घोषित कर रखा है. ज़्यादातर लोग यह मानते हैं के विश्वविद्यालयों के बहार ज्ञान का सागर है. समाज में ज्ञान का विस्तृत फैलाव है, ऐसा मानने वालों की कोई कमी नही है. यानि लोगों के पास ज्ञान है और उस ज्ञान की अनुभूति भी. और फिर भी न उन लोगों को और न उनके ज्ञान को ही समाज में सम्मान है. उनके ज्ञान के बल पर अछि आय नही हो सकती, इस लिए लोग गरीब हैं. सार्वजनिक दुनिया में उनके ज्ञान को सम्मान नही है, इस लिए उनके मूल्य और संस्कृति हाशिये पर पड़े रहते हैं. उनके ज्ञान का जन संघठनों के साथ कोई सीधा सम्बन्ध नही है इसलिए उनका कोई राजनैतिक महत्व नही है. एक ऐसे राजनैतिक आन्दोलन की ज़रुरत है, जिसमे लोग अपने ज्ञान के आधार पर गति पैदा करते हैं. लोकविद्या जन आन्दोलन एक ऐसा ही आन्दोलन है. प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन किसानों, कारीगरों, आदिवास्सियों, छोटा-छोटा धंधा करने वालों, महिलाओं और नौजवानों के आंदोलनों को एक ज्ञान के मंच पर इकट्ठा करने का प्रयास है. यह उनके ज्ञान का मंच है, लोकविद्या का मंच है. ऐसे ही मंच से यह दावा किया जा सकता है के लोकविद्या में ही समाधान है.
दुनिया में हो रहे ज्ञान आन्दोलन
दुनिया में कई जगह नए किस्म के आन्दोलन शुरू हुए हैं, ऐसे अन्द्लन जिनमे एक सर्वथा नयी राजनैतिक सोच दिखाई देती है और जिन्हें लोकविद्या जन आन्दोलन कहा जा सकता है. भारत में `लोकविद्या' का अभियान, बोलीविया से शुरू हुआ 'धरती माँ के अधिकार' का आन्दोलन, एक्वाडोर में 'प्रकृति के अधिकार' का विचार, वाया काम्पेसिना नाम के अंतर्राष्ट्रीय किसान संगठन का 'खाद्य संप्रभुता' का विचार व अभियान तथा यूरोप व अमेरिका में छात्र आन्दोलन में आकार ले रहे 'ज्ञान का पूँजीवाद' और 'ज्ञान मुक्ति' के विचार एक नई राजनैतिक बहस हो जन्म दे रहे हैं. इन सभी में यह आग्रह है के लोगों के पास ज्ञान होता है और ल्कविद्य साइंस के नाम पर प्रसारित ज्ञान से किसी भी अर्थ में कम नही है. समझ यह है की पिछली सदियों में जनता पर और प्रकृति पर जो कहर ढाया गया है और जो इस सूचना युग के नए साम्राज्य में कई गुना बढ़ गया है, उसे वही लोग ठीक कर सकते हैं, जो आधुनिक ज्ञान किई व्यवस्था में समा नही गए हैं.
लोकविद्या जन आन्दोलन यह दावा पेश करता है के दुनिया भर में हो रहे ऐसे ज्ञान आन्दोलन, संघर्ष का एक नया बिरादराना बना रहे हैं, लोगों का एक विश्वव्यापी ज्ञान आन्दोलन खडा कर रहे हैं.
कार्यक्रम
तीन दिवसीय अधिवेशन के पहले दो दिन निम्नलिखित पर चर्चा होगी-
- लोकविद्या और लोकविद्या जन आन्दोलन का विचार
- संघर्ष, जो इन विचारों को प्रेरित करते हैं और उनके लिए जगह बनाते हैं
- लोकविद्या जन आन्दोलन का संगठन और आगे के लिए विचार
अधिवेशन के दौरान विद्या आश्रम रहने-खाने का इंतजाम करेगा. यात्रा का खर्च भागीदारों को खुद उठाना होगा.
जुलाई और अगस्त के महीने में अधिवेशन की तैयारी में इंटरनेट पर बहस चलाई जाएगी. जो इस बहस में रूचि रखते हैं और शामिल होना चाहते हैं, हमें खबर करें. ब्लॉग http://lokavidyajanandolan.blogspot.com पर वैसे भी विचारों का आदान-प्रदान जरी रहेगा. यह ब्लॉग भी देखें.
अधिक जानकारी के लिए निम्नलिखित का उपयोग करें.
वेबसाईट: www.vidyaashram.org
ब्लॉग: http://lokavidyajanandolan.blogspot.कॉम
इ-मेल: vidyaashram@gmail.com
निम्नलिखित व्यक्तियों से भी संपर्क किया जा सकता है-
१. प्रेमलता सिंह, वाराणसी, ऊ प्र vidyaashram@gmail.com 09369124998
२. रवि शेखर, लखनऊ, ऊ प्र ravithelight@gmail.com 09369444528
३. अवधेश द्विवेदी, सिंगरौली, म प्र awadhesh.sls@gmail.com 09425013524
४. संजीव किरताने, इंदौर, म प्र sanjeev.kirtane48@gmail.com 09926426858
५. गिरीश सहस्रबुद्धे, नागपुर, महाराष्ट्र irigleen@gmail.com 09422559348
६. दिलीप दुबे, देवघर, झारखण्ड pravah001@sify.com 09431132568
७. अजय, हाजीपुर, बिहार 09955772332
चित्र सहस्रबुद्धे
समन्वयक, विद्या आश्रम
ई-मेल: vidyaashram@gmail.com
मो: 09838944822
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