28 दिसम्बर 2012 को वाराणसी में गंगा नदी के किनारे के गाँव बभनपुरा में एक लोकविद्या आश्रम की शुरुआत की गयी। यह विद्या आश्रम के सक्रिय कार्यकर्ता दिलीप कुमार 'दिली' का गाँव है और वाराणसी शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर है।
कार्यक्रम का उद्घाटन कबीर के भजनों से किया गया--' नर तू ज्ञान बिना पछ्तैबा ...' रमाशंकर बाबा केशव, राधेश्याम और दिलीप कुमार ने ये भजन गाये। दिलीप जी ने लोकविद्या आश्रम के मूल्यों को सबके सामने रखा। उन्होने तीन प्रमुख बातें कहीं-
- लोकजीवन में रमता ज्ञान दर्शन लोकविद्या है।
- लोकविद्या के स्वामी किसान, कारीगर, आदिवासी, महिलाएं, छोटे-छोटे दुकानदार ये ही असली ज्ञानी हैं।
- पाखंड, दमन, गैर-बराबरी, मनुष्य के हाथों मनुष्य की लूट, इन सबके खिलाफ अलख जगाने का स्थान लोकविद्या आश्रम है।
कई लोगों ने अपने वक्तव्यों में लोकविद्या की वास्तविकता और ताकत की ओर ध्यान आकर्षित किया। यह भी कहा गया कि लोकविद्या में जीवन का आधार है और व्यवस्था का आधार विश्वविद्यालय की विद्या में, तथा यह कि इस विसंगति को दूर करना और लोकविद्या में व्यवस्था का आधार बनाना यही एक नया समाज बनाने का रास्ता है। इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में कहा गया कि लोकविद्या के बल पर सबको पक्की आय की व्यवस्था होनी चाहिए, उन्हें सरकारी कर्मचारी के बराबर नियमित वेतन मिलना चाहिए।
बोलने वालों में प्रमुख रहे बभनपुरा के शिवप्रसाद, जयप्रकाश, राकेश, सलारपुर के लक्षमण प्रसाद, बरईपुर की राधा देवी, पीलीकोठी के एहसान अली, चिंतन ढाबा सारनाथ के कृष्ण कुमार व विद्या आश्रम सारनाथ की प्रेमलता सिंह और सुनील सहस्रबुद्धे। रमचंदीपुर के बबलू कुमार ने सभा का सञ्चालन किया। चार-पांच गाँवों से कुल 60 लोगों ने भाग लिया।
यह लोकविद्या आश्रम गाँव वासियों के सहयोग से बनाया गया है। गाँव के लोगों ने चावल, दाल, सब्जी का सहयोग किया जिससे खिचड़ी बनायीं गयी और सभी लोगों को प्रसाद के रूप में दी गयी।
दिलीप जी ने घोषणा की कि हर महीने पूर्णिमा के दिन लोकविद्या आश्रम पर लोकविद्या सत्संग का आयोजन रहेगा, यहाँ से गाँव- गाँव में लोकविद्या का सन्देश पहुँचाया जायेगा तथा आश्रम पर बच्चों के लिए लोकविद्या शिक्षा की व्यवस्थाएं की जाएँगी।
बबलू कुमार
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