Sunday, April 3, 2016

शिक्षा के आधार पर समाज का बंटवारा बंद हो।

दिलीप कुमार और लक्ष्मण प्रसाद हालिया छात्र आंदोलन के सन्दर्भ में अपना समर्थन व्यक्त करने और लोकविद्या का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए दिल्ली गए थे।  नीचे दिए हुए पर्चे को लेकर वे १५ मार्च के सर्व पक्षीय जुलूस में शामिल हुए और जग नारायण महतो के साथ जे.एन.यू. में शाम की सभा में शामिल हुए व आंदोलन के कुछ छात्रों से मिले। 
नए छात्र आंदोलन को समर्थन 
शिक्षा के आधार पर समाज का बंटवारा बंद हो।  

जिस  शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित विमला ने अपनी जान गँवा दी, उसे चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय पैमाने पर छात्र आंदोलित हो उठे हैं।  केंद्र सरकार के दमन के खिलाफ खड़े हो कर जे.इन.यू. के छात्रों ने इस छात्र आंदोलन में नए आयाम जोड़ दिए। हैदराबाद और दिल्ली के आलावा जादबपुर, इलाहबाद, पटना, वाराणसी व अन्य विश्वविद्यालयों में भी हलचल दिखाई देती है।

जब से हिंदुस्तान में पूँजीवाद  का आग़ाज़ हुआ है, समाज को नए सिरे से पूँजीवाद की सेवा में बाँटने का औजार आधुनिक शिक्षा बनी है।  समाज के इस बंटवारे को चुनौती देना उस आज़ादी के लिए ज़रूरी है, जो इस नए छात्र आंदोलन की मांग है और जिसे जे.एन.यू. के छात्र नेता कन्हैया ने अपने भाषण में बड़ी सफाई से सामने रखा  है।
यह चुनौती एक तरह से आरक्षण आंदोलन ने स्वीकार की थी लेकिन पूँजीवादी समाज के मेरिट के विचार को बुनियादी चुनौती नहीं दी जा सकी।  क्या जे.इन.यू., आई.आई.टी., आई.आई.एम., केंद्रीय विश्वविद्यालय या फिर किन्हीं  भी उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्र किसानों और कारीगरों से अधिक ज्ञानी होते हैं ? या बात सिर्फ इतनी है कि वे पूँजी और उसपर आधारित बाजार व राजनीति  की दुनिया में टहलना और लेन-देन  करना सीख जाते हैं।  यह न भूला जाये कि देश की जनता के लिए रोटी, कपड़ा, मकान और  तरह - तरह की जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने का काम वहीँ लोग करते हैं जो कभी विश्वविद्यालय नहीं गये ।  यानि इस देश को चलाने का आधार वहीँ लोग देते हैं, जिनका ज्ञान न आयातित है और न बड़े शिक्षा संस्थानों में प्राप्त किया गया है।  इनमें किसान, कारीगर, आदिवासी, पटरी-ठेले-गुमटीवाले और मज़दूर  इन सभी के परिवार आते हैं।  इनके ज्ञान को लोकविद्या कहा जाता है और ये सब मिलकर लोकविद्या-समाज बनाते हैं।  लोकविद्या  तो समाज में बसती है और लोगों की ज़रूरतों, अनुभव तथा उनकी तर्क बुद्धि के बल पर सतत निखरती रहती है।  इसलिए लोकविद्या हमेशा समयानुकूल होती है।  इस लोकविद्या का अपना जानकारियों का भंडार होता है, अपने मूल्य होते हैं और तर्क का अपना विधान होता है।  थोड़ा सा रूककर चिंतन करें तो लोकविद्या के गुण  दिखाई देंगे और यह महसूस होगा कि लोकविद्या किसी भी अर्थ में विश्वविद्यालय की विद्या से कम नहीं होती।

इस देश की जनता के लिए आज़ादी का एक ही अर्थ है कि उनके ज्ञान (लोकविद्या) को भी वैसा ही सम्मान मिले जैसा विश्वविद्यालय की शिक्षा को मिलता है।  इसका यह अर्थ है कि उनकी आमदनी भी उतनी ही हो जितनी एक सरकारी कर्मचारी की होती है।  हर सरकार की यह बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें।  इसमें उस आज़ादी का भ्रूण हो सकता है जिसकी बात यह नया छात्र आंदोलन कर रहा है।

जे.एन.यू. के छात्रों ने बड़ा सवाल उठाया है , छात्र के रूप में, देश के भविष्य निर्माण के लिए, अपनी भूमिका के निर्वहन में वे निर्भीक होकर सामने आये हैं। इस देश के सारे छात्र और नौजवान किस तरह इस भूमिका में अपने को शामिल करें  उन रास्तों की खोज जारी दिखाई देती है।

लोकविद्या जन आंदोलन की और से जारी ---

बी. कृष्णराजुलु , राष्ट्रीय संयोजक, हैदराबाद  (9866139091)
दिलीप कुमार 'दिली', वाराणसी (9452824380)
लक्ष्मण प्रसाद , वाराणसी (9026219913)

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