लोकविद्या समन्वय समूह के तत्वावधान में इंदौर में 6 अप्रैल अमावस के दिन ज्ञान पंचायतें आयोजित की गईं। एक मिल क्षेत्र के शिवाजी नगर में लगने वाले बुधवारी हाट में तथा दूसरी इंदौर प्रेस क्लब में। मिल क्षेत्र की ज्ञान-पंचायत दिन में 10 बजे से शुरू हुई और हाट में आने वाले किसान , कारीगर , आदिवासी और पटरी-ठेले के दुकानदारों के स्त्री-पुरुषों की भागीदारी से संपन्न हुई। इन सब लोगों ने अपने लिए भी वैसी ही आय की बात की जैसी एक सरकारी कर्मचारी की होती है। ज्ञान-पंचायत का मुख्य फैसला यही था कि लोकविद्या के बल पर काम करने वालों की आमदनी सरकारी कर्मचारी के बराबर होनी चाहिए। ज्ञान-पंचायत की शुरुआत वाराणसी से आये दिलीप कुमार के नेतृत्व में इंदौर जिले के भिलानी और भकलई गाँव से आये आदिवासियों ने लोकविद्या सत्संग से की, जिसमें लोकविद्या का विश्वविद्यालय की विद्या से बराबरी का दावा पेश किया जाता है। इस ज्ञान पंचायत में निर्मला देवरे , शेर सिंह , मगन सिंह, सुषमा यादव, सुमेर सिंह , मंगला हार्डिया ने लोकविद्या बाजार को बनाने का एक चित्र लोगों के सामने रखा।
बुधवारी हाट, शिवाजी नगर में ज्ञान-पंचायत
दोपहर को इंदौर प्रेस क्लब में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के साथ एक ज्ञान-पंचायत हुई। ज्ञान पंचायत में बंगलुरु से भाग लेने आये डा. अमित बसोले ने कहा कि केवल पढ़े-लिखे ही समाज में क्या होना चाहिए इस पर सोचने-विचारने का हक़ रखते है, इस मान्यता को चुनौती देना ज़रूरी है। बहुसंख्यक लोगों का जीवन खुशहाल बनाने की क्षमता वर्तमान आर्थिक मॉडल में नहीं है। और शासन का वर्तमान तरीका और बाजार नीति या अर्थनीति का कोई विकल्प नहीं है, यह सोच भी गलत है। लोकविद्या-समाज के पास ऐसे अनेक उपाय हैं , जिनसे न सिर्फ प्रकृति के विनाश को रोका जा सकता है, बल्कि एक बेहतर समाज का मॉडल भी गढा जा सकता है। अब समय आ गया है कि देश भर में ऐसी सैंकड़ों ज्ञान-पंचायतें हों जिसमें किसान,कारीगर, आदिवासी, महिलाएं अपने ज्ञान के बल पर समस्याओं की समझ बनाएं, आपस में चर्चा करें और शासन की कुनीतियों से मोर्चा लें।
इंदौर प्रेस क्लब की ज्ञान-पंचायत में बोलते हुए डा. अमित बसोले। साथ में दिलीप कुमार, तपन भट्टाचार्य, सिराज भाई जालीवाला और सुषमा यादव।
ज्ञान पंचायत में निर्मला देवरे लोकविद्या बाजार की कल्पना रखते हुए
ज्ञान-पंचायत में सिराज भाई बोलते हुए
लोकविद्या समाज की एकता और ज्ञान आंदोलन पर बात रखते दिलीप कुमार
ज्ञान-पंचायत में आये तपन भट्टाचार्य, सिराज भाई जालिवाला, सुषमा यादव, निर्मला देवरे, मंगला हार्डिया ने अपने विचार रखे और इस बात की ज़रूरत को रखा कि ऐसी ज्ञान-पंचायतों का सिलसिला देशभर में जगह -जगह होना चाहिए ताकि लोकविद्या-समाज के लोगों को और उनके ज्ञान को समाज में एक मुख्य भूमिका निभाने के अवसर मिलें।
वाराणसी से आये दिलीप कुमार ने लोकविद्या-समाज में एकता को स्थापित करने पर ज़ोर दिया और लोकविद्या को विश्वविद्यालय की विद्या के बराबर मान देने की बात रखी। उन्होंने इसे लोकविद्या-समाज का ज्ञान आंदोलन कहा और कहा कि देश का सबसे बड़ा किसान संगठन, भारतीय किसान यूनियन इसे पूरा समर्थन देता है।
लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर
9926426858
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