वैजापुर, महाराष्ट्र (शिरडी के पास) में कलाकारों की ज्ञान पंचायत
आमंत्रण/घोषणा
21 वीं सदी में ज्ञान के आधार पर बनाई जा रही दुनिया में लोकविद्या (समाज में बसे ज्ञान) का बेतहाशा दोहन करने की व्यवस्था बनाई जा रही है। दुनिया भर में लोकविद्या के बल पर जीनेवालों में हाहाकार मचा हुआ है। इस हाहाकार को सत्य वाणी कौन दें ?नीचे दी गयी कविता मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कलाकारों से हुई वार्ताओं का हिस्सा रही और उन्हें ज्ञान-पंचायतों में आने की अपील करती है। 8 से 10 फरवरी 2017 को महाराष्ट्र में शिरडी के पास वैजापुर में कलाकारों की एक बहुआयामी ज्ञान-पंचायत का आयोजन है। इसे उसका निमंत्रण मानें।
लोकविद्या-समाज का ज्ञान-आंदोलन कलाकार-समाज को यह पुकार कर कहता है कि ---
कलाकार! तुम दार्शनिक!
मानवीय चेतना को ज़िंदा रखने वाले,
पाखंड को उजागर करने वाले,
मूल्यों का सतत नवीनीकरण करते,
सत्य का निर्माण करने वाले,
कलाकार !
क्या आज भी लोगों के नज़दीक हो तुम ?
हवा का झोंका पत्तों को उड़ा ले गया,
ज्ञान-क्षेत्र में आया बवंडर तुम्हें उड़ा ले गया?
जब विश्वविद्यालय का पक्ष-विपक्ष एक ही दिखाई दे रहे
लोकदृष्टि का नजरिया तुम्हें ढूंढ रहा।
कलाकार! तुम दार्शनिक!
क्या लोगों के नज़दीक हो तुम ?
कलाकार ! कहाँ हो तुम ?
कही अहम् को बढ़ने के मार्ग तो नहीं गढ़ रहे ?
सृजन छोड़ सृजनकर्ता के नाम के पीछे तो नहीं ?
नहीं! नहीं ! यकीं नहीं होता है।
दर्शक को ज्ञानी मान
उसकी प्रतिक्रिया पर गंभीर होने वाले,
ज्ञान मार्गी तुम ,
ज्ञान को सामाजिक गुण मानने वाले,
उत्सर्ग की स्थिति को प्राप्त कर
लोगों को मुक्ति का मार्ग दिखाने वाले,
कलाकार ! तुम कहाँ हो ?
अरे... हो sss नहीं! नहीं !
ओ sss फ़क़ीर, सच कहते हो
इस बवंडर में
किंकर्तव्यविमूढ़ , हतप्रभ से हो
हम भी गुड़के , गुलाटी खाये
लेकिन, अपनी गाँठ के ज्ञान को टटोलते
तुम्हारी हांक से नींद से जागते
हम आ रहे......
सुनो, अरे, किसानों , कारीगरों,
ओ आदिवासियों और छोटे दुकानदारों ,
और सबके परिवारों की ज्ञानी महिलाओं
आप ही है लोकविद्या के मालिक
और लोकहित के पारखी ,
हमारी चित्रकला, नाट्य, अभिनय,
गीत, संगीत और लेखन को
बेहिचक लोकहित की तराजू में तौलिये।
सही है कि ज्ञान क्षेत्र में भूचाल आया है
लेकिन क्या अबकी बार भी
तुम्हारे ज्ञान संसार को समझने में
कलाकार चूक कर रहे हैं ?
फैसला आप करेंगे ,
हम आपकी ज्ञान-पंचायत में ज़रूर आयेंगे।
--संजीव दाजी
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