यह घोषणा नीचे हिंदी में दी गयी है।
Announcement/InvitationVidya Ashram National Meet is planned for 27-28 February 2016 at Vidya Ashram premises in Sarnath, Varanasi. The central topic for discussion in this meet is -
If Lokavidya Knowledge Claims are satisfied, what would/should the world look like?
For over ten years now, certain lokavidya knowledge claims have been articulated and put forward for open dialogue by Vidya Ashram. We have taken some steps towards a philosophy that may enable political imagination of change worthy of humanity in the unfolding reality of the present century. This Meet is to explore ways of moving forward.
One may like to see what we have been saying in this respect. All our publications are accessible on the Vidya Ashram website Publication Page (www.vidyaashram.org). Of particular interest may be the recently published book Lokavidya Perspectives : A Philosophy of Political Imagination for the Knowledge Age, published by Aakar Books.
Following are some hints for preparatory discussions -
- Is the severe gap between 'organized' and 'unorganized' sector, challenged squarely by the lokavidya knowledge claims ?
- Is there sufficient space for a friendly relationship between lokavidya and the new sciences ?
- Power industry and technology of the Industrial Age destroyed both living and non-living Nature. Should we therefore stop looking towards it completely and concentrate on a model of reconstruction critically dependent on lokavidya and the new connectivity. The mantra for reconstruction given by Gandhiji is 'based on our traditions and enriched by the later experiences'.
- What kind of constructive activity does Lokavidya Jan Andolan enable us to envisage?
- Is it reasonable to think that there is no civilization where there is no village/farmer ?
- Does resurrection of lokavidya create a radically fresh milieu for human emancipation ?
Further, before we get on to discussing these points and other issues, given below are the lokavidya knowledge claims for your ready reference and if desired for a fresh debate.
Very broadly and briefly the lokavidya knowledge claims are -
- All knowledge starts with lokavidya and must return to lokavidya. Knowledge that does not come back to lokavidya turns against humanity and nature.
- Knowledges born, grown and built in different locations and at different times by different people are in a fundamental sense equal to one another. All hierarchy in the world of knowledge is both untrue and oppressive.
- Everyone is knowledgeable.
- Lokavidya is situated in society, that is, where life is collective life. So, it is fair to say that lokavidya resides in villages and other settlements that is bastis. Thus, in a radical sense, lokavidya is always social knowledge ( both 'about' and 'of ' society).
- From the lokavidya point of view knowledge ought not to be private property or a source of profit and exploitation. Knowledge ought to be the basis and resource for good and noble living. It cannot be the resource for violence and destruction, on the contrary it must give direction to moral living along with being the critical resource for livelihood.
This is to invite you to join us in this Vidya Ashram National Meet and also find time to participate in this preparatory discussion on this blog.
Note :
Vidya Ashram
आश्रम जो कहता रहा है वह आश्रम की वेबसाइट www.vidyaashram.org के प्रकाशन पृष्ठ पर उपलब्ध है।
इस बैठक की तैयारी की वार्ताओं के लिए नीचे कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं -
Note :
- Posts may be written in Hindi or English. If you write in any other language, please send us the write up, we shall get it rendered into English/Hindi.
- Please subscribe to this blog, so that you may get blog posts straight into your mailbox and this would also enable you to write your posts directly on the blog. Slot for subscribing is in the top right side (just below the picture) on the blog page. In case of any difficulty, you may contact Dr. K.K. Surendran (k.k.surendran@gmail.com , 020-27298293).
Vidya Ashram
घोषणा/निमंत्रण
विद्या आश्रम की राष्ट्रीय बैठक 27-28 फरवरी 2016 को वाराणसी में आश्रम के सारनाथ परिसर में होगी। इस बैठक का मुख्य विषय यह है -
अगर लोकविद्या के ज्ञान के दावे मान लिए जायें तो दुनिया कैसी दिखेगी ?
पिछले 10 वर्षों से विद्या आश्रम ने लोकविद्या के ज्ञान के दावे बनाएं हैं और उन्हें खुली बहस के लिए सामने रखा है। आश्रम ने एक ऐसे दर्शन के निर्माण की ओर कदम उठाये है, जो वर्तमान सदी की नई वास्तविकताओं में मनुष्योचित परिवर्तन की राजनीति के विकास का रास्ता प्रशस्त करने में मददगार साबित हो। यह बैठक आगे के रास्ते खोजने का प्रयास करेगी।
आश्रम जो कहता रहा है वह आश्रम की वेबसाइट www.vidyaashram.org के प्रकाशन पृष्ठ पर उपलब्ध है।
इस बैठक की तैयारी की वार्ताओं के लिए नीचे कुछ बिंदु दिए जा रहे हैं -
- क्या लोकविद्या के ज्ञान के दावे 'संगठित' और 'असंगठित' क्षेत्र के बीच की खाईं को चुनौती देने में सक्षम हैं ?
- क्या लोकविद्या और नए विकासशील साइंस के बीच मैत्री/सहयोग की संभावनाएं दिखाई देती हैं ?
- औद्योगिक युग के उद्योगों और प्रौद्योगिकी ने प्रकृति और समाज का बड़े पैमाने पर विनाश किया है। इसलिए क्या हमें उनकी ओर देखना पूरी तरह बंद करके, पुनर्रचना के ऐसे आदर्श खोजने और बनाने चाहिए जो लोकविद्या और नई संपर्क विधाओं पर आधारित हों ? गांधीजी द्वारा पुनर्रचना के लिए दिया हुआ मन्त्र है - " अपनी परम्पराओं पर आधारित और बाद के अनुभवों से समृद्ध "।
- लोकविद्या जन आंदोलन हमें कैसे रचनात्मक कार्यों के लिए प्रेरित करता है ?
- क्या यह सही सोच है कि जहाँ गाँव /किसान नहीं होते , वहाँ सभ्यता नहीं होती ?
- क्या लोकविद्या की पुनर्प्रतिष्ठा से समाज में नए सिरे से मनुष्य की मुक्ति के रास्ते खुलते हैं ?
लोकविद्या के ज्ञान के दावों के सन्दर्भ में वार्ता शुरू करने के लिए आपको याद दिलाने के लिए नीचे संक्षेप में इन दावों की एक सूची दी जा रही है --
- सभी ज्ञान लोकविद्या से शुरू होता है और लोकविद्या में वापस आना चाहिए। जो ज्ञान लोकविद्या में वापस नहीं आता वह मनुष्य और प्रकृति का विरोधी हो जाता है।
- विभिन्न स्थानों और समयों पर अलग-अलग लोगों द्वारा निर्मित और विकसित ज्ञान एक बुनियादी अर्थ में एक-दूसरे के बराबर होते हैं। ज्ञान की दुनिया में ऊँच-नीच झूठी है और शोषण का स्रोत है।
- हर व्यक्ति, स्त्री व पुरुष , ज्ञानी है।
- लोकविद्या समाज में रहती है, यानि समूह-जीवन में वास करती है। यानि लोकविद्या गाँवों और बस्तियों में रहती है अतः लोकविद्या हमेशा ही सामाजिक ज्ञान का रूप रखती है।
- लोकविद्या दृष्टिकोण से ज्ञान निजी संपत्ति नहीं हो सकता, न मुनाफे और शोषण का स्रोत अथवा साधन ही हो सकता है। ज्ञान में एक अच्छे और सभ्य जीवन का आधार होता है। यह हिंसा और विनाश का साधन नहीं हो सकता, उल्टे ज्ञान का काम तो जीविका जुटाने को आधार देने के साथ नैतिक जीवन के लिए दिशा देने का है।
आश्रम आपको इस राष्ट्रीय समागम में भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। कृपया समय निकालें और इस ब्लॉग पर तैयारी वार्ता में शामिल हों।
नोट :
- हिंदी या अंग्रेजी में ब्लॉग पर लिखें। अगर आप किसी और भाषा में लिखते हैं तो वह हम लोगों को भेज दें। हम उसका अनुवाद करके ब्लॉग पर डाल देंगे।
- कृपया इस ब्लॉग को सब्स्क्राइब (subscribe) करें। इसके लिए ब्लॉग में दाहिनी तरफ ऊपर चित्र के नीचे स्थान है। इससे ब्लॉग के पोस्ट सीधे आपके मेलबॉक्स में आ जायेंगे और आप ब्लॉग पर सीधे लिख भी सकेंगे। अगर आपको कोई दिक्कत आए तो डा. के. के. सुरेंद्रन से संपर्क करें - (k.k.surendran@gmail.com , 020-27298293) ।
विद्या आश्रम
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