Monday, April 18, 2016

वाराणसी में ज्ञान-पंचायतों का सिलसिला

वाराणसी में ज्ञान-पंचायतों का एक सिलसिला शुरू हो  चुका है।  ग्रामीण क्षेत्रों से शुरू हुआ यह सिलसिला अन्य जिलों के गाँवों व शहरों के बाज़ारो/कारीगर बस्तियों और  मोहल्लों की ओर बढ़ेगा।  ये ज्ञान-पंचायतें उन लोगों की होती हैं जो अपनी जीविका लोकविद्या के बल पर कमाते हैं -  जैसे किसान, कारीगर, आदिवासी और छोटी पूँजी की दुकानदारी करने वालों के परिवार हैं।  ये सब लोकविद्या-समाज के लोग हैं।  वाराणसी में अक्टूबर में प्रस्तावित किसान-कारीगर महापंचायत की  तैयारी में हो रही ये ज्ञान-पंचायतें यह दावा खड़ा कर रही हैं कि हर किसान और कारीगर परिवार की आय सरकारी कर्मचारी के बराबर हो और उसके जैसी नियमित और पक्की हो।
सभी ज्ञान परम्पराओं और धाराओं के बीच भाईचारे के लिए और समाज के सब लोगों का विचार सामने लाने  के लिए आयोजित इन ज्ञान-पंचायतों में आने वाला हर स्त्री/पुरुष अपने और दूसरे के ज्ञान को बराबरी की नज़र से देखता है। ये पंचायतें इस बात को उठा रही हैं कि समाज को शिक्षित/अशिक्षित की श्रेणियों में नहीं बांटा जाना चाहिए।  किसान और कारीगर परिवार के स्त्री-पुरुष ज्ञानी होते हैं और उनका ज्ञान स्कूल-कालेज के ज्ञान से अलग किस्म का होता है, लेकिन कम नहीं होता। ज्ञान के क्षेत्र में ऊँच-नीच नहीं होनी चाहिए।  

उम्मीद है कि ये ज्ञान पंचायतें एक बुनियाद का निर्माण करने की दिशा में बढ़ेंगी।  इस बुनियाद के तहत हर गाँव/बस्ती /मोहल्ले में एक सात सदस्यों की  'लोकविद्या-समाज समिति' बनाई जा रही है, जिसमें किसान, कारीगर, आदिवासी, महिला, छोटा दुकानदार और कलाकार समाजों का एक-एक प्रतिनिधि शामिल  होता है। हर गाँव/बस्ती /मोहल्ले में एक संयोजक होगा जो किसान-कारीगर पंचायत का स्थानीय स्तर का संयोजक होगा  और जो महापंचायत में स्थानीय भागीदारी के लिए ज़िम्मेदार होगा।  संयोजक अपने यहाँ की लोकविद्या-समाज समिति की सलाह से यह कार्य करेगा। संयोजक अपने गाँव/बस्ती /मोहल्ले में लोकविद्या पंजीकरण का एक रजिस्टर भरेगा, जिसमें हर बालिग स्त्री-पुरुष के पास जो ज्ञान (एक या अधिक) है और जिसके(जिनके) बल पर वह जीविका कमा रहा है या कमाना चाहता है उसे दर्ज करेगा और सरकारी कर्मचारी के बराबर आमदनी का दावा पेश करेगा। संयोजक और लोकविद्या-समाज समिति के सदस्य मिलकर हर 15 -20 दिनों में एक ज्ञान पंचायत बुलाएँगे। 
नीचे कुछ ज्ञान-पंचायतों के फोटो हैं -


गाँव सरायमोहाना जिला वाराणसी में लोकविद्या सत्संग के साथ ज्ञान-पंचायत 

सरायमोहाना की ज्ञान-पंचायत में फैसले लेते हुए लोग 

गाँव सलारपुर , जिला वाराणसी में ज्ञान-पंचायत 

गाँव रघुनाथपुर , जिला वाराणसी में ज्ञान-पंचायत 

विद्या आश्रम 

Saturday, April 16, 2016

इंदौर में ज्ञान पंचायतें

 लोकविद्या समन्वय समूह के तत्वावधान में इंदौर में 6 अप्रैल अमावस के दिन ज्ञान पंचायतें आयोजित की गईं। एक  मिल क्षेत्र के शिवाजी नगर में लगने वाले बुधवारी  हाट में तथा दूसरी  इंदौर प्रेस क्लब में।  मिल क्षेत्र की ज्ञान-पंचायत दिन में 10 बजे  से शुरू हुई और हाट  में आने वाले किसान , कारीगर , आदिवासी और पटरी-ठेले के दुकानदारों के स्त्री-पुरुषों की भागीदारी से संपन्न हुई। इन सब  लोगों ने अपने लिए भी वैसी ही आय की  बात की जैसी एक सरकारी कर्मचारी की होती है। ज्ञान-पंचायत का मुख्य फैसला  यही था कि लोकविद्या के बल पर काम करने वालों की आमदनी सरकारी कर्मचारी के बराबर होनी चाहिए। ज्ञान-पंचायत की शुरुआत वाराणसी से आये दिलीप कुमार के नेतृत्व में  इंदौर जिले के भिलानी और भकलई गाँव से आये आदिवासियों ने लोकविद्या सत्संग से की, जिसमें लोकविद्या का विश्वविद्यालय की विद्या से बराबरी का दावा पेश किया जाता है। इस ज्ञान पंचायत में निर्मला  देवरे , शेर सिंह , मगन सिंह, सुषमा यादव, सुमेर सिंह , मंगला हार्डिया ने लोकविद्या बाजार को बनाने का एक चित्र लोगों के सामने रखा। 

बुधवारी हाट, शिवाजी नगर में ज्ञान-पंचायत 


दोपहर को इंदौर प्रेस क्लब में सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के साथ एक ज्ञान-पंचायत हुई। ज्ञान पंचायत में बंगलुरु से भाग लेने आये डा. अमित बसोले ने कहा कि केवल पढ़े-लिखे ही समाज में क्या होना चाहिए इस पर सोचने-विचारने का हक़ रखते है, इस मान्यता को चुनौती देना ज़रूरी है। बहुसंख्यक लोगों का जीवन खुशहाल बनाने की क्षमता वर्तमान आर्थिक मॉडल में  नहीं है। और शासन का वर्तमान तरीका और बाजार नीति या अर्थनीति का कोई विकल्प नहीं है, यह सोच भी गलत है। लोकविद्या-समाज के पास ऐसे अनेक उपाय हैं , जिनसे न सिर्फ  प्रकृति के विनाश को रोका जा सकता है, बल्कि एक बेहतर समाज का मॉडल भी गढा जा सकता है। अब समय आ गया है कि देश भर में ऐसी सैंकड़ों ज्ञान-पंचायतें हों जिसमें किसान,कारीगर, आदिवासी, महिलाएं  अपने ज्ञान के बल पर समस्याओं की समझ बनाएं, आपस में चर्चा करें और शासन की कुनीतियों से मोर्चा लें।  

इंदौर प्रेस क्लब की ज्ञान-पंचायत में बोलते हुए डा. अमित बसोले।  साथ में दिलीप कुमार, तपन भट्टाचार्य, सिराज भाई जालीवाला और सुषमा यादव।


ज्ञान पंचायत में निर्मला देवरे लोकविद्या बाजार की कल्पना रखते हुए 

ज्ञान-पंचायत में सिराज भाई बोलते हुए 

लोकविद्या समाज की एकता और ज्ञान आंदोलन पर बात रखते दिलीप कुमार 

ज्ञान-पंचायत में आये तपन भट्टाचार्य, सिराज भाई जालिवाला, सुषमा यादव, निर्मला  देवरे, मंगला हार्डिया ने अपने विचार रखे और इस बात की ज़रूरत को रखा कि ऐसी ज्ञान-पंचायतों का सिलसिला देशभर में जगह -जगह होना चाहिए ताकि लोकविद्या-समाज के लोगों को और उनके ज्ञान को समाज में एक मुख्य भूमिका निभाने के अवसर मिलें।
वाराणसी से आये दिलीप कुमार ने लोकविद्या-समाज में एकता को स्थापित करने पर ज़ोर दिया और लोकविद्या को विश्वविद्यालय की विद्या के बराबर मान देने की बात रखी।  उन्होंने इसे लोकविद्या-समाज का ज्ञान आंदोलन कहा और कहा कि देश का सबसे बड़ा किसान संगठन, भारतीय किसान यूनियन इसे पूरा समर्थन देता है।

लोकविद्या समन्वय समूह, इंदौर
9926426858  

Friday, April 8, 2016

वाराणसी में किसान-कारीगर पंचायत

परचा संख्या - 1                                                                                        8 अप्रैल 2016

घोषणा / निमंत्रण 
वाराणसी चलें                                                                       गंगाजी के तट पर 
क्वार (आश्विन ) पूर्णिमा को भैंसासुर घाट पर 
विशाल किसान-कारीगर पंचायत 
16 अक्टूबर 2016 

वाराणसी में गंगाजी के तट पर क्वार  पूर्णमासी के दिन, रविवार, 16 अक्टूबर 2016 की दोपहर 12 बजे  से भैंसासुर घाट पर (राजघाट मालवीय पुल के नीचे) एक किसान-कारीगर महापंचायत आयोजित की जा रही है।  इस पंचायत में किसान और कारीगर संगठन मिलकर यह मांग उठने जा रहे है कि
हर किसान और कारीगर के परिवार की आय 
सरकारी कर्मचारी के बराबर हो 
और उसके जैसी ही 
 नियमित और पक्की हो।

आप इस आवाज़ को बुलंद करने में भागीदार बनें। 

इस महापंचायत की तैयारी में दो कार्य हो रहे हैं  -

  1. हर 15 दिन में किसान-कारीगर पंचायत के नाम से एक पर्चा प्रकाशित होगा, जिसमें तैयारी के विचार व ख़बरें प्रकाशित होंगी। 
  2. गाँवों में और बस्तियों व मोहल्लों में ज्ञान-पंचायतें होंगी, जिनमें महापंचायत के आयोजन का पूरा विचार रखा जायेगा और आपके विचारों से समृद्ध किया जायेगा।  

आप अपने गाँव /बस्ती/मोहल्ले में इस मांग पर जनमत बनाने में आगे आएं।  
बिरादरी के मुखियाओं से और किसान व कारीगर संगठनों से संपर्क कर 
यह बात उनके सामने रखें।  

- कार्यक्रम -
आने वाले दो सप्ताह में वाराणसी में सारनाथ के आसपास निम्नलिखित गाँवों में ज्ञान-पंचायतें लगेंगी -
दिन                                  गाँव /बस्ती/मोहल्ला                           संयोजक 
10 अप्रैल                           सरायमोहना                                     सुश्री आरती
11 अप्रैल                            बरईपुर                                           कृष्ण्कुमार क्रांति
12 अप्रैल                            सलारपुर                                         दिलीप कुमार कुशवाहा
15 अप्रैल                           रघुनाथपुर                                       नंदू
17 अप्रैल                            कोटवां                                           संजय भारती
21 अप्रैल                           अकथा                                             श्याम बिहारी

अपने यहाँ की ज्ञान-पंचायत  में एक मुट्ठी अनाज दें। 

- संपर्क - 
दिलीप कुमार 'दिली '                            प्रेमलता सिंह                            लक्ष्मण प्रसाद मौर्या 
लोकविद्या जन आंदोलन                  कारीगर नजरिया                       भारतीय किसान यूनियन 
9452824380                                     9369124998                               9026219913

विद्या आश्रम


Sunday, April 3, 2016

शिक्षा के आधार पर समाज का बंटवारा बंद हो।

दिलीप कुमार और लक्ष्मण प्रसाद हालिया छात्र आंदोलन के सन्दर्भ में अपना समर्थन व्यक्त करने और लोकविद्या का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए दिल्ली गए थे।  नीचे दिए हुए पर्चे को लेकर वे १५ मार्च के सर्व पक्षीय जुलूस में शामिल हुए और जग नारायण महतो के साथ जे.एन.यू. में शाम की सभा में शामिल हुए व आंदोलन के कुछ छात्रों से मिले। 
नए छात्र आंदोलन को समर्थन 
शिक्षा के आधार पर समाज का बंटवारा बंद हो।  

जिस  शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित विमला ने अपनी जान गँवा दी, उसे चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय पैमाने पर छात्र आंदोलित हो उठे हैं।  केंद्र सरकार के दमन के खिलाफ खड़े हो कर जे.इन.यू. के छात्रों ने इस छात्र आंदोलन में नए आयाम जोड़ दिए। हैदराबाद और दिल्ली के आलावा जादबपुर, इलाहबाद, पटना, वाराणसी व अन्य विश्वविद्यालयों में भी हलचल दिखाई देती है।

जब से हिंदुस्तान में पूँजीवाद  का आग़ाज़ हुआ है, समाज को नए सिरे से पूँजीवाद की सेवा में बाँटने का औजार आधुनिक शिक्षा बनी है।  समाज के इस बंटवारे को चुनौती देना उस आज़ादी के लिए ज़रूरी है, जो इस नए छात्र आंदोलन की मांग है और जिसे जे.एन.यू. के छात्र नेता कन्हैया ने अपने भाषण में बड़ी सफाई से सामने रखा  है।
यह चुनौती एक तरह से आरक्षण आंदोलन ने स्वीकार की थी लेकिन पूँजीवादी समाज के मेरिट के विचार को बुनियादी चुनौती नहीं दी जा सकी।  क्या जे.इन.यू., आई.आई.टी., आई.आई.एम., केंद्रीय विश्वविद्यालय या फिर किन्हीं  भी उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्र किसानों और कारीगरों से अधिक ज्ञानी होते हैं ? या बात सिर्फ इतनी है कि वे पूँजी और उसपर आधारित बाजार व राजनीति  की दुनिया में टहलना और लेन-देन  करना सीख जाते हैं।  यह न भूला जाये कि देश की जनता के लिए रोटी, कपड़ा, मकान और  तरह - तरह की जीवन की ज़रूरतों को पूरा करने का काम वहीँ लोग करते हैं जो कभी विश्वविद्यालय नहीं गये ।  यानि इस देश को चलाने का आधार वहीँ लोग देते हैं, जिनका ज्ञान न आयातित है और न बड़े शिक्षा संस्थानों में प्राप्त किया गया है।  इनमें किसान, कारीगर, आदिवासी, पटरी-ठेले-गुमटीवाले और मज़दूर  इन सभी के परिवार आते हैं।  इनके ज्ञान को लोकविद्या कहा जाता है और ये सब मिलकर लोकविद्या-समाज बनाते हैं।  लोकविद्या  तो समाज में बसती है और लोगों की ज़रूरतों, अनुभव तथा उनकी तर्क बुद्धि के बल पर सतत निखरती रहती है।  इसलिए लोकविद्या हमेशा समयानुकूल होती है।  इस लोकविद्या का अपना जानकारियों का भंडार होता है, अपने मूल्य होते हैं और तर्क का अपना विधान होता है।  थोड़ा सा रूककर चिंतन करें तो लोकविद्या के गुण  दिखाई देंगे और यह महसूस होगा कि लोकविद्या किसी भी अर्थ में विश्वविद्यालय की विद्या से कम नहीं होती।

इस देश की जनता के लिए आज़ादी का एक ही अर्थ है कि उनके ज्ञान (लोकविद्या) को भी वैसा ही सम्मान मिले जैसा विश्वविद्यालय की शिक्षा को मिलता है।  इसका यह अर्थ है कि उनकी आमदनी भी उतनी ही हो जितनी एक सरकारी कर्मचारी की होती है।  हर सरकार की यह बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें।  इसमें उस आज़ादी का भ्रूण हो सकता है जिसकी बात यह नया छात्र आंदोलन कर रहा है।

जे.एन.यू. के छात्रों ने बड़ा सवाल उठाया है , छात्र के रूप में, देश के भविष्य निर्माण के लिए, अपनी भूमिका के निर्वहन में वे निर्भीक होकर सामने आये हैं। इस देश के सारे छात्र और नौजवान किस तरह इस भूमिका में अपने को शामिल करें  उन रास्तों की खोज जारी दिखाई देती है।

लोकविद्या जन आंदोलन की और से जारी ---

बी. कृष्णराजुलु , राष्ट्रीय संयोजक, हैदराबाद  (9866139091)
दिलीप कुमार 'दिली', वाराणसी (9452824380)
लक्ष्मण प्रसाद , वाराणसी (9026219913)