विद्या आश्रम पर 30 अप्रैल की दोपहर को ' स्वराज ' के अर्थ पर किसान आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने विस्तृत चर्चा की। बोलने वालों में प्रमुख रहे वाराणासी मंडल के भारतीय किसान यूनियन (भाकियू ) के सचिव दिलीप कुमार 'दिली', हरियाणा भाकियू के प्रांतीय अध्यक्ष गुरुनाम सिंह, भारतीय किसान उत्कर्ष समिति, कर्नाटक के प्रांतीय संयोजक हेमंत कुमार , लोकविद्या जन आंदोलन की राष्ट्रीय संयोजक डा. चित्रा सहस्रबुद्धे, भाकियू के वाराणसी जिला अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद मौर्य , ग्राम बरईपुर सारनाथ संघर्ष समिति की संयोजक राधा देवी, ग़ाज़ीपुर के भाकियू के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मानव, सीटू के प्रान्तीय सचिव प्रेमनाथ, लोकविद्या भाईचारा विदयालय के संयोजक शिवमूरत मास्टर साहब , सर्वोदय आन्दोलन के अरुण कुमार , काशी विद्यापीठ के प्रो. रमन , वरिष्ठ वाम विचारक शिव प्रसन्न कुशवाहा और लोकविद्या विचारक सुनील सहस्रबुद्धे।
सभी ने ठोस किसान संघर्षों और व्यापक किसान आंदोलन के सन्दर्भ में अपनी बातें रखीं। विचार के स्तर पर प्रमुख रूप से यह बात हुई कि किस तरह अभी तक के आन्दोलन की मांगें , संघर्ष के तरीके और वैचारिक स्थापनाएं स्वराज के एक समकालीन दर्शन का आधार देते हैं और कैसे स्वराज का दर्शन किसानों के साथ पूरे लोकविद्या समाज को एकजुट करने के रास्ते खोलता है। व्यावहारिक स्तर पर किसान आंदोलन और आम आदमी पार्टी (आप ) के बीच रिश्ते के सवाल पर बहस हुई। कई जगह किसान आंदोलन के नेता और कार्यकर्ता 'आप ' में शामिल हुए हैं और चुनाव भी लड़े हैं। और जो बाहर हैं वे राजनीतिक पार्टियों से दूर रहने के अपने तर्कों पर कायम हैं। शामिल होने वाले उन तर्कों को मानते हुए यह कह रहे हैं कि आज जैसी स्थिति पहली बार पैदा हुई है और किसानों को कुछ मिल सके इसके लिये 'आप' में शामिल होना सही है क्योंकि 'आप' ने स्वामीनाथन आयोग की रपट लागू करना और ज़मीन अधिग्रहण के प्रश्न पर किसानों कि मांग, दोनोँ को ही पूरा का पूरा माना है। यानि अपने सिद्धांतों से समझौता किये बगैर राजनैतिक सत्ता में दखल देने का यह मौक़ा 40 साल पुराने इस आंदोलन को नही गँवाना चाहिए। उपस्थित लोगों के विचार में पार्टी से अलग रहने वालों और पार्टी में जाने वालों दोनों के दृष्टिकोणों के बीच संतुलन चाहिए, ऐसा सामने आया। एक को त्यागकर पूरा का पूरा दूसरी लाईन में चला जाना उचित नही माना गया।
अंत में इस बात पर चर्चा हुई कि स्वराज की दृष्टि से किसानों के साथ एकजुट होकर पूरा लोकविद्या समाज अगले 2-3 वर्षों में एक बहुत बड़ा आन्दोलन करे, इसका आधार क्या हो सकता है ? सभी एकमत थे कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुकूल आय इस देश के हर परिवार की होनी चाहिये, यही वह व्यापक आधार है। यह बात सभी ने मानी कि तमाम आम लोग अपने ज्ञान के बल पर ही अपनी जीविका चलाते हैं और उनके ज्ञान पर आधारित काम का वही पारिश्रमिक होना चाहिए जो उच्च शिक्षित लोगों को मिलता है। ज्ञान-ज्ञान में फर्क न करना, इसी में स्वराज की ओर बढ़ने वाले आंदोलन की नींव हो सकती है।
बैठक के कुछ फोटो --
विद्या आश्रम
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