12 मई को वाराणसी में लोकसभा का चुनाव है, जो मोदी और केजरीवाल के आमने-सामने होने से विशेष बन गया है। वाराणसी में एक महासंग्राम का माहौल बना हुआ है। अखबार के हिसाब से 50 हज़ार भाजपा के पक्ष में और 30 हज़ार 'आप' के पक्ष में बाहर से लोग आये हैं। कल ही मेधा पाटकर , आलोक अग्रवाल और दयामनी बारला ने भी शहर में बैठकें कीं। इनके अलावा कई तरह के ऐसे संगठन भी आये हैं जो किन्हीं पार्टियों के सीधे समर्थक नही हैं। इनमें आदिवासियों , किसानों , शहर के गरीबों , महिलाओं , आदि के मुददों पर काम करने वाले हैं , मानवाधिकार वाले हैँ और प्रगतिशील नाट्य व सिनेमा वाले हैं। लोकविद्या जन आंदोलन ने ऐसे लोगों से सम्पर्क किया है और आपस में वार्ता का एक दौर चलाया है।
वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल (ब्लॉग पोस्ट 18 अप्रैल 2014 ) पर शुरू की गयी प्रक्रिया को विस्तार देते हुए रोज़ रात को 8 बजे गंगाजी के किनारे किसी घाट पर एक ऐसी बैठक आयोजित की जाती है जिसमें वाराणसी के कार्यकर्ताओं के साथ बाहर से आये कार्यकर्त्ता अपने विचार , कार्य, अनुभव , स्थिति का जायज़ा और तौर तरीके साझा करते हैं। इनमें से अधिकांश किसी पार्टी के लिये काम करने नही आये हैं। वाराणसी के बाहर से आये संगठनों और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों का यह सिलसिला 6 मई से भैंसासुर घाट से शुरु हुआ। कल सिंधिया घाट पर बैठक हुई। वाराणसी, इलाहबाद , दिल्ली, मुंबई , बेंगलूरू , बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ , उडिसा, सिंगरौली, सोनभद्र, चित्रकूट, जौनपुर , गुजरात, अहमद नगर, उत्तराखंड आदि से संगठनों और कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही है। इन बैठकों में 60 - 65 लोगों की भागीदारी रहती है। वाराणसी में इस विशेष मौके पर अपने-अपने दृष्टिकोणों से समाज और जनता के हित की बातें लोगों के सामने रखने आये हैं। ये लोग दिन भर गाँवों में, बस्तियों और बाज़ारों में अपने पर्चे बांटते हैँ व लोगों से बात करते हैं। फिर रात में ये बैठकें उन्हें आपस में मिलने , एक दूसरे की बात सुनने और एक दूसरे के साथ सहयोग की सम्भावनायें खोजने का स्थान बनती हैं।
आज की बैठक शिवाला घाट पर है। कल या परसों तक ये बैठकें चलेंगी।
इन बैठकों में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग इस ख्याल के हैँ कि चुनाव के बाद जो भी परिस्थितियां बनेंगी वे अभी की परिस्थितियोँ से और ख़राब ही होंगी इसलिए यहाँ इकट्ठा हुए कार्यकर्ताओं के बीच, आपस में सम्पर्क , सहयोग और साझा कार्यक्रमों की ओर कैसे बढ़ेंगे, इस पर बात शुरु हो जानी चाहिए। आशा है कि कल तक ये बातें शुरु हो जाएँगी। जन आंदोलनों के नेताओं में से बडी तादाद में 'आप' के टिकट पर चुनाव लड़े जाने की यह परिस्थिति एकदम नई है, उतनी ही नई जितनी 'आप' खुद। चर्चा में ये बातें आना शुरू हो गयी हैं कि संघर्षों और समाजों के बीच समन्वय और एकता के कार्य संगठन और विचारधारा दोनो ही के स्तर पर इजाफे की मांग कर रहे हैं।
इन सारी बातों को 28 - 29 जून की नागपुर की प्रस्तावित बैठक (ब्लॉग पोस्ट 2 मई 2014 ) के सन्दर्भ में देखा जाये तो और सोचने के रास्ते खुलते हैं।
चित्रा सहस्रबुद्धे
विद्या आश्रम
वाराणसी के सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल (ब्लॉग पोस्ट 18 अप्रैल 2014 ) पर शुरू की गयी प्रक्रिया को विस्तार देते हुए रोज़ रात को 8 बजे गंगाजी के किनारे किसी घाट पर एक ऐसी बैठक आयोजित की जाती है जिसमें वाराणसी के कार्यकर्ताओं के साथ बाहर से आये कार्यकर्त्ता अपने विचार , कार्य, अनुभव , स्थिति का जायज़ा और तौर तरीके साझा करते हैं। इनमें से अधिकांश किसी पार्टी के लिये काम करने नही आये हैं। वाराणसी के बाहर से आये संगठनों और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकों का यह सिलसिला 6 मई से भैंसासुर घाट से शुरु हुआ। कल सिंधिया घाट पर बैठक हुई। वाराणसी, इलाहबाद , दिल्ली, मुंबई , बेंगलूरू , बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ , उडिसा, सिंगरौली, सोनभद्र, चित्रकूट, जौनपुर , गुजरात, अहमद नगर, उत्तराखंड आदि से संगठनों और कार्यकर्ताओं की भागीदारी रही है। इन बैठकों में 60 - 65 लोगों की भागीदारी रहती है। वाराणसी में इस विशेष मौके पर अपने-अपने दृष्टिकोणों से समाज और जनता के हित की बातें लोगों के सामने रखने आये हैं। ये लोग दिन भर गाँवों में, बस्तियों और बाज़ारों में अपने पर्चे बांटते हैँ व लोगों से बात करते हैं। फिर रात में ये बैठकें उन्हें आपस में मिलने , एक दूसरे की बात सुनने और एक दूसरे के साथ सहयोग की सम्भावनायें खोजने का स्थान बनती हैं।
आज की बैठक शिवाला घाट पर है। कल या परसों तक ये बैठकें चलेंगी।
इन बैठकों में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग इस ख्याल के हैँ कि चुनाव के बाद जो भी परिस्थितियां बनेंगी वे अभी की परिस्थितियोँ से और ख़राब ही होंगी इसलिए यहाँ इकट्ठा हुए कार्यकर्ताओं के बीच, आपस में सम्पर्क , सहयोग और साझा कार्यक्रमों की ओर कैसे बढ़ेंगे, इस पर बात शुरु हो जानी चाहिए। आशा है कि कल तक ये बातें शुरु हो जाएँगी। जन आंदोलनों के नेताओं में से बडी तादाद में 'आप' के टिकट पर चुनाव लड़े जाने की यह परिस्थिति एकदम नई है, उतनी ही नई जितनी 'आप' खुद। चर्चा में ये बातें आना शुरू हो गयी हैं कि संघर्षों और समाजों के बीच समन्वय और एकता के कार्य संगठन और विचारधारा दोनो ही के स्तर पर इजाफे की मांग कर रहे हैं।
इन सारी बातों को 28 - 29 जून की नागपुर की प्रस्तावित बैठक (ब्लॉग पोस्ट 2 मई 2014 ) के सन्दर्भ में देखा जाये तो और सोचने के रास्ते खुलते हैं।
चित्रा सहस्रबुद्धे
विद्या आश्रम
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