प्रिय सुनील जी,
मैं आम आदमी पार्टी के बारे में आपके विचारों से मोटे तौर पर सहमत होते हुए भी असहमत हूँ। पहले मैं आपको अपनी बात बता दूँ। मैं अरविंद और मनीष सीसोदिया को करीब ढाई तीन साल से जानता हूँ - आंदोलन के पहले से। आनंद और योगेंद्र को तो काफी लंबे समय से। पर मैं सिर्फ अरविंद की बात करता हूँ। इन वर्षो मे उससे 8-9 बार मिलना हुआ होगा। जब आप कई बार किसी से भी मिलते हैं तो आपके विचारों मे तब्दीली आती रहती है - कुछ बढ़ता है कुछ घटता है। कमियाँ भी दिखाई देने लगती हैं। पर हर मीटिंग के बाद मेरा अरविंद के प्रति सम्मान बढ़ा - घटा नहीं। उसमे एक ईमानदारी झलकती है, साहस और एक intuitive समझ भी है। मीडिया से जो दिखाई देता है, उसमे भी थोड़ी सच्चाई होगी ही, उससे जो तस्वीर उभरती है वह मेरे impression से अलग है।
अब बात आम आदमी पार्टी की करे। यह पार्टी दो साल पुरानी भी नहीं है। एक तरह से तो 1 वर्ष पुरानी भी नहीं। इसे बनाने में वक्त लगेगा। इनकी समझ बन रही है, अभी बनी नहीं है। ये आपके जैसे पृष्ठभूमि से आए लोग नहीं हैं। इस बात को आलोचना की दृष्टि से नहीं, इसे ध्यान में रखने की ज़रूरत है। इसमे ऐसे लोग हैं जिन्हे प्राचीलित मुहावरों, भाषा और प्राचीलित ideologies से कुछ निकलता नहीं लगता। इनमे एक impatience है, जो समझी जा सकती है - यह स्थिति हर प्रकार के आम आदमी की है, उनकी भी जिनके बीच आप काम कर रहे हैं, सिर्फ पढे लिखे professional किस्म के लोगों तक ही यह सोच सीमित हो, ऐसा नहीं। यह एक खीज की उपज है - आज की व्यवस्था से, भले ही इनमे व्यवस्थाओं की समझ बहुत गहरी न हो, या बहुत ही सतही हो। मेरा अपना मानना है अरविंद भ्रष्टाचार के मुद्दे को इतनी अहमियत इसलिए भी देते है क्योंकि यह बात आम आदमी को communicate होती है। साथ ही यह भी सही है ही कि भ्रष्टाचार का मुद्दा व्यवस्था और नीतियों से जुड़ा हुआ है। कम समय में, व्यवस्था की बाते, व्यापक समाज को ठीक से communicate नहीं हो पाती। उसके लिए मेहनत और समय की ज़रूरत होती है जो आज जिस हालात में वो अपने को पाते हैं उसमे, उनके पास नहीं है। शायद हमे लोकसभा चुनाव के बाद 3-4 महीने इंतज़ार करना चाहिए, उन्हे ठीक से जाँचने के लिए।
इसके अलावा आपका ध्यान इस बात पर भी दिलाना चाहूँगा कि बहुत सारी जगह उनकी तरफ से अच्छे प्रत्याशी खड़े हुए हैं। सोनी सोरेन छतीसगढ़ से खड़ी हुई हैं। महाराष्ट्र से कुछ पुराने आंदोलन और समाजवादी धारा से जुड़े लोग खड़े हुए है, बिहार के किशनगंज से भी एक पसमंदा मुसलमान प्रत्याशी अच्छा माना जा रहा है। और भी लोग केरल एवं तमिलनाडू जैसी जगह से खड़े हुए हैं। खैर यह मैं कोई उनकी पैरवी करने के आशय से नहीं बता रहा हूँ।
यह पार्ट अभी बन रही है, बनी नहीं है अभी प्रक्रिया चल रही है। इसमे संभावनाएं अभी समाप्त नहीं हुई हैं। महात्मा गांधी के हिंदुस्तान आने से पहले वाली कांग्रेस, और उनके आने के बाद वाली कांग्रेस में बड़ा बदलाव था। इस पार्टी ने हिलाया तो है। इसका असर हर जगह दिखाई देता है। इसने एक space बनाया है, या इन्हे credit न भी दे तो यह कह सकते हैं की अनजाने में एक space create हो गया है। अब इस अवकाश का हम और आप और बहुत सारे अलग अलग क्षेत्रों में लगे लोग, कैसे फायदा उठा सकते हैं - यह प्रमुख मुद्दा है। कुछ हद तक जड़ता टूटी है, लोग नए सिरे से सोचने को तैयार हैं - शायद। हम आम आदमी पार्टी से जुड़े या नहीं, इस अवसर का लाभ उठाया जा सकता है। साथ ही अरविंद जैसे लोगों को समझाया भी जा सकता है - इशारे में ही सही। मेरा विश्वास है की उसमे इतना माद्दा है की वह समझ लेगा।मैं आम आदमी पार्टी के बारे में आपके विचारों से मोटे तौर पर सहमत होते हुए भी असहमत हूँ। पहले मैं आपको अपनी बात बता दूँ। मैं अरविंद और मनीष सीसोदिया को करीब ढाई तीन साल से जानता हूँ - आंदोलन के पहले से। आनंद और योगेंद्र को तो काफी लंबे समय से। पर मैं सिर्फ अरविंद की बात करता हूँ। इन वर्षो मे उससे 8-9 बार मिलना हुआ होगा। जब आप कई बार किसी से भी मिलते हैं तो आपके विचारों मे तब्दीली आती रहती है - कुछ बढ़ता है कुछ घटता है। कमियाँ भी दिखाई देने लगती हैं। पर हर मीटिंग के बाद मेरा अरविंद के प्रति सम्मान बढ़ा - घटा नहीं। उसमे एक ईमानदारी झलकती है, साहस और एक intuitive समझ भी है। मीडिया से जो दिखाई देता है, उसमे भी थोड़ी सच्चाई होगी ही, उससे जो तस्वीर उभरती है वह मेरे impression से अलग है।
अब बात आम आदमी पार्टी की करे। यह पार्टी दो साल पुरानी भी नहीं है। एक तरह से तो 1 वर्ष पुरानी भी नहीं। इसे बनाने में वक्त लगेगा। इनकी समझ बन रही है, अभी बनी नहीं है। ये आपके जैसे पृष्ठभूमि से आए लोग नहीं हैं। इस बात को आलोचना की दृष्टि से नहीं, इसे ध्यान में रखने की ज़रूरत है। इसमे ऐसे लोग हैं जिन्हे प्राचीलित मुहावरों, भाषा और प्राचीलित ideologies से कुछ निकलता नहीं लगता। इनमे एक impatience है, जो समझी जा सकती है - यह स्थिति हर प्रकार के आम आदमी की है, उनकी भी जिनके बीच आप काम कर रहे हैं, सिर्फ पढे लिखे professional किस्म के लोगों तक ही यह सोच सीमित हो, ऐसा नहीं। यह एक खीज की उपज है - आज की व्यवस्था से, भले ही इनमे व्यवस्थाओं की समझ बहुत गहरी न हो, या बहुत ही सतही हो। मेरा अपना मानना है अरविंद भ्रष्टाचार के मुद्दे को इतनी अहमियत इसलिए भी देते है क्योंकि यह बात आम आदमी को communicate होती है। साथ ही यह भी सही है ही कि भ्रष्टाचार का मुद्दा व्यवस्था और नीतियों से जुड़ा हुआ है। कम समय में, व्यवस्था की बाते, व्यापक समाज को ठीक से communicate नहीं हो पाती। उसके लिए मेहनत और समय की ज़रूरत होती है जो आज जिस हालात में वो अपने को पाते हैं उसमे, उनके पास नहीं है। शायद हमे लोकसभा चुनाव के बाद 3-4 महीने इंतज़ार करना चाहिए, उन्हे ठीक से जाँचने के लिए।
इसके अलावा आपका ध्यान इस बात पर भी दिलाना चाहूँगा कि बहुत सारी जगह उनकी तरफ से अच्छे प्रत्याशी खड़े हुए हैं। सोनी सोरेन छतीसगढ़ से खड़ी हुई हैं। महाराष्ट्र से कुछ पुराने आंदोलन और समाजवादी धारा से जुड़े लोग खड़े हुए है, बिहार के किशनगंज से भी एक पसमंदा मुसलमान प्रत्याशी अच्छा माना जा रहा है। और भी लोग केरल एवं तमिलनाडू जैसी जगह से खड़े हुए हैं। खैर यह मैं कोई उनकी पैरवी करने के आशय से नहीं बता रहा हूँ।
इस सिलसिले मे आप से कुछ share करना चाहता हूँ। दिल्ली सरकार के चले जाने के बाद मध्यम और उच्च मध्यम वर्गी और professional किस्म के लोगों का एक बड़ा तबका आम आदमी पार्टी से दूर हुआ है। मेरा अपना मानना है यह इसीलिए दूर हुआ क्योंकि उन्हे कहीं लगने लगा की ये लोग तो व्यवस्था ही तोड़ना या हिलाना चाहते हैं। जबकि इन लोगों को व्यवस्था से कोई खास शिकायत नहीं है। ये वो लोग हैं जो भ्रष्टाचार और वर्तमान व्यवस्था को अलग अलग देखते हैं जिनकी आपने अपने ब्लॉग में चर्चा की है। मेरे लिए यह एक अच्छा संकेत है। आप भी इस पर सोचे।
इस सब के बावजूद मुझे भी कुछ आशंकाए हैं। उनकी टीम मे उन्ही लोगों की जगह लगती है जो राजनैतिक रूप से परिपक्व नहीं। वे 50 वर्ष से ऊपर के लोगों को दूर ही रखना चाहते हैं। ऐसा लगता है। इसलिए शायद्द हम जैसे लोगो को एक दूरी बना कर ही चलना ठीक रहेगा पर सहानुभूति के साथ। पर जो हम करना चाहते थे पर जड़ता की वजग से कर नहीं पा रहे थे वह जगह खुली है और हमे उसे देखना और समझ कर उसका लाभ उठाने की सोचनी चाहिए।
सादर
आपका
पवन
सिद्ध, मसूरी
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