जन-आंदोलन की स्वतंत्र दृष्टि को सामने लाने का यह अहम मौका है ! राजनीतिक दलों के सामने लोकविद्या जन आंदोलन के मुद्दों को सामने रखने का यह सुन्दर मौका है और ऐसा करते वक़्त किसी भी राजनीतिक दल से भेद भाव करना सही न होगा !
आम आदमी पार्टी को दूध से धुली हुवी मानकर चलना लोकविद्याधर समाज की मजबूरी नहीं हो सकती। उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में ऐसी मज़बूरी तो केवल उस समुदाय या जाति की हो सकती है जिन्हें कांग्रेस या फिर सपा का कोई विकल्प चाहिए और जो भाजपा को अछूत मानते हैं, बगैर अपने गिरेबान में झांके ! आम आदमी पार्टी के पास भ्रष्टाचार रोकने की कोई सोच नहीं है यह तो यह पता लगने पर तै हो गया कि चुनाव की टिकटें उन्होंने भी असामाजिक तत्वों को दी हैं और यह कोई ३० फीसद के आस पास है ! जन लोकपाल बिल पारित होने से भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी , इस पर तो पहले से ही प्रश्न चिन्ह था, लेकिन अब इसे भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है यह कह कर कि इसकी अनुपस्थिति में किसी भी प्रकार का प्रयास इस दिशा में नहीं किया जा सकता!
दिल्ली सरकार के सामने सुलझाने के लिए कई मुद्दे थे लेकिन जन लोकपाल बिल को मुद्दा बना कर 'आप' की सरकार ने अपने हाथ धो लिए ! जो जन लोकपाल की बात करते हैं, वे असामाजिक तत्वों को चुनावी टिकटें कैसे दे सकते हैं !
मोदी का विरोध और केजरीवाल का समर्थन ऐसी विचारधारा किन्हीं नैतिक मुद्दों को लेकर नहीं है ! कम से कम मोदी पर भ्रष्टाचार का आरोप तो नहीं है फिर भ्रष्टाचार को रोकने का नारा देने वाले इनका विरोध क्यों कर रहे हैं ? क्या केजरीवाल लोकविद्याधर समाज की ज़रूरतों व मुश्किलातों से अवगत हैं और क्या उनके पास इनके उद्धार के लिए किसी भी प्रकार की योजनाएं है!! नहीं ! क्या मोदी के पास हैं ?? नहीं ! फिर एक का समर्थन और दूसरे का विरोध क्यों ?
ऐसी सोच का आधार सिर्फ एक समुदाय की आशंकाओं पर निर्भर है ! केजरीवाल और मोदी विरोधिओं को कोई आपत्ति न थी जब श्री शिंदे ने यह हुकमनामा जारी किया कि यदि किसी एक विशेष समुदाय का सदस्य आतंकवाद से जुड़ा पाया गया तो उसे गिरफ्तार न किया जाये !! वह शिंदे से सहमत थे ! मोदी तो ऐसा हुक्मनामा जारी नहीं करने वाले हैं , यदि वह सत्ता में आये तो ! वह सब जो मोदी का विरोध करते हैं उनका मानना है की मुस्लिम समुदाय में से जो आतंकवाद पनपा वह बाबरी मस्जिद के ढह जाने के बाद से हुवा ! लेकिन मजहब के नाम पर करीब-करीब ४ लाख कश्मीरी पंडितों का जो कश्मीर से पलायन करवाया गया , वो मोदी विरोधक दलों के लिए आतंकवाद नहीं था क्योंकि पंडितों की गिनती से किसी भी राजनितिक दल को चुनाव जीतने में कोई सहायता न मिलने वाली थी ! अगर बाबरी मस्जिद का तोडना देश की संस्कृति पर एक गहरा दाग था तो पंडितों के पलायन ने क्या इसे सुशोभित किया था ? केजरीवाल भी यह बात सार्वजानिक सभा में नहीं कह पायेगें क्योंकि उन्हें भी वोटों की जरूरत है !
कहने का मतलब यह कि सिर्फ एक विशेष समुदाय के असामाजिक तत्वों को यह हक़ अदा करना कि उन्हें हर गुनाह माफ़ है यह तो कोई ईमानदारी न हुई ! जितने दंगे फसाद उत्तर प्रदेश में हुए हैं वह तो एक रिकॉर्ड है लेकिन फिर भी सपा अछूत नहीं और जहां गुजरात में एक भी फसाद नहीं हुआ है फिर भी मोदी अछूत है! इसका एक ही अर्थ निकलता है और वह यह कि यदि आप असामाजिक तत्वों को खुली छूट देते हैं तो आपका सामाजिक तत्व होना स्वीकार्य है और यदि आप असामाजिक तत्वों को खुली छूट नहीं देते तो आपको असामाजिक तत्व माना जायेगा !
मेरी समझ में इस प्रकार की सार्वजानिक बहस में लोकविद्याधर समाज की कोई भूमिका नहीं हो सकती -'मोदी का विरोध और केजरीवाल का समर्थन ' इस बेमतलब की बहस में न शामिल होते हुए लोकविद्या जन आंदोलन के मुद्दों को दलों के समक्ष रखने की प्रक्रिया पर ही सारी ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए !
ललित कौल
लोकविद्या जन आंदोलन, हैदराबाद
http://aam-vimarsh.blogspot.in/
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